देवरिया : अत़्याचार - ए - निजी स्कूल : अधिक फीस और ड्रेस से लेकर कॉपी-किताब अधिक दाम पर लेने की मजबूरी पर बढ़ रहा अभिभावकों का गुस्सा , जिला प्रशासन की खामोशी से उठ रहे सवाल
देवरिया: मनमानी फीस के विरोध में अभिभावकों का स्वर तेज हो गया हैं। जिला प्रशासन से लेकर शासन तक शिकायतें दर्ज करा रहे हैं। इसको लेकर अधिकारियों की तरफ से कार्रवाई का इंतजार है।
मनमानी
किताबों पर 50 फीसद तक मुनाफा
जागरण संवाददाता, देवरिया: उमानगर निवासी अजय दीक्षित पेशे से शिक्षक हैं। अपने बच्चों के बेहतर भविष्य को लेकर बेहद सतर्क हैं। शहर के एक नामी स्कूल में उन्होंने छोटे बेटे शाश्वत का कक्षा एक में व बड़े बेटे ओम का कक्षा चार में दाखिला कराया। इन बच्चों से टर्म फीस के नाम पर 4800-4800 व एक माह की फीस के रूप में 1500-1500 रुपये वसूला गया। टर्म फीस का विरोध करने पर प्रधानाचार्य ने बिलिं्डग, बिजली व अन्य संसाधनों का हवाला देकर चुप करा दिया। अजय को बताया गया कि बच्चों की कापी-किताबें अंसारी रोड स्थित एक दुकान पर ही मिलेगा। अजय ने दुकान पर पहुंचकर स्कूल व कक्षा का नाम बताया। दुकानदार ने पहले से पैक कर रखी गई कापी-किताबों का बंडल सामने लाकर रख दिया। कक्षा एक में पढ़ाई जाने वाली किताबें व कापी की कीमत 2927 व कक्षा चार के लिए 3600 रुपये भुगतान किया। सभी किताबें निजी पब्लिशर्स की थीं। कक्षा चार में पढ़ाई जाने वाली किताबों पर बात करें तो भाषा परिचय 295 रुपये, इंग्लिश रीडर 399, मेधा भाग चार 345, आईटी एप्स 239 रुपये अंकित था। यही हाल पाठ्यक्रम में शामिल अन्य विषय की किताबों का था। अजय कहते हैं कि स्कूल और दुकानदार के बीच कमीशन का खेल चल रहा है। तभी तो निजी पब्लिशर्स की महंगी किताबें पाठ्यक्रम में शामिल किया गया है। जबकि एनसीईआरटी की किताबें सस्ती व अच्छी हैं, लेकिन उनसे पढ़ाई नहीं कराई जाती। आखिर निजी स्कूल वाले कब तक शोषण करते रहेंगे। अजय का दर्द बाजिव है। यह दर्द निजी स्कूलों में बच्चों का भविष्य संवारने वाले हर एक अभिभावक का है, जो पेट काटकर अपने बच्चों के भविष्य संवारने का सपना देखते हैं। जिला प्रशासन की खामोशी से सवाल उठ रहे हैं। नौनिहालों के भविष्य को संवारने के नाम पर चल रहा खेल , जिला प्रशासन की खामोशी से उठ रहे सवाल
देवरिया: किताबों की बिक्री में दुकानदार ही नहीं प्रकाशक भी स्कूलों को मोटा कमीशन देते हैं। एक बुक सेलर से बातचीत में यह चौंकाने वाली बातें सामने आई हैं। दरअसल, सत्र शुरू होने से पहले ही बुकसेलर्स स्कूलों से संपर्क करते हैं। इसके लिए मोटा कमीशन तय होता है। इसके बाद शुरू होता है खेल। स्कूल संचालक अभिभावकों को किताबों के लिए केवल उसी दुकानदार के पास भेजते हैं। कई किताबें ऐसी रखी जाती हैं, जो सिर्फ उसी दुकानदार के पास मिलती हैं। परेशान अभिभावक महंगी किताबें खरीदने को मजबूर होते हैं। बुक छापने वाली कंपनियां भी स्कूलों की खूब कमाई कराती हैं। एक दुकानदार ने बताया कि एक किताब पर 50 फीसद तक मुनाफा मिल जाता है। जिसका आधा हिस्सा स्कूल को दे दिया जाता है। स्कूल वाले हर साल किताबें बदल देते हैं, ताकि अभिभावक नई किताब हर साल खरीदे। वाणिज्य कर अधिकारी कानून का हवाला देकर हाथ खड़े कर देते हैं। छपी किताबों पर कोई कर लगता नहीं है।अभिभावकों की शिकायतें लगातार मिल रही हैं। इसके लिए जल्द ही बैठक कर रणनीति बनाई जाएगी। नियमानुसार कार्रवाई की जाएगी।राजीव कुमार यादव, जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी
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