अपने प्रयासों से सरकारी स्कूलों को कान्वेंट की तरह बनाया, लैपटॉप के जरिए बच्चों को देते हैं ज्ञान, दुर्घटना बहुल क्षेत्रों में लगवाए यातायात संकेतक
परिषदीय स्कूलों के दो शिक्षकों ने ई पाठशाला का सपना साकार किया है। प्रदेश की राजधानी से सटे जिले में शिक्षक आशुतोष आनंद अवस्थी व सुशील कुमार के जुनून ने सरकारी स्कूलों को कान्वेंट स्कूल की तर्ज पर विकसित कर दिया हैं। यहीं नहीं शिक्षकों ने शिक्षा के साथ-साथ बच्चों को समाजसेवा से जोड़ने का भी बीड़ा उठाया हैं।
सिर्फ नौनिहालों के भविष्य संवारने का जुनून : शिक्षक बनकर नौनिहालों का भविष्य संवारना ही केवल आशुतोष आंनद अवस्थी का मकसद नहीं रहा। बल्कि समाज में व्याप्त समस्याओं के निराकरण करना भी मकसद बन गया। दरियाबाद ब्लाक के पूर्व माध्यमिक विद्यालय मियांगंज में तैनात शिक्षक आशुतोष न केवल नौकरी को अपना कर्तव्य मानते हैं। यहां गांव के पूर्व माध्यमिक विद्यालय विद्यालय में बच्चों के लिए कंप्यूटर तक की व्यवस्था है। स्कूल की पढ़ाई भी किसी भी मांटेसरी स्कूल जैसी। सुनकर चौकन्ने होंगे लेकिन हकीकत यही है। यहां आशुतोष की लगन का नतीजा है कि बच्चे कंप्यूटर पर गणित के सवाल नहीं लगाते बल्कि नोट्स भी पढ़ते हैं। स्कूल के बाद शिक्षक आशुतोष बच्चों को पाठ पढ़ाते है। मास्टर ऑफ साइंस व बैचलर ऑफ एजुकेशन की परीक्षाएं प्रथम श्रेणी में प्राप्त करने वाले आशुतोष पहले भी हाईस्कूल व इंटर के निर्बल वर्ग के बच्चों को नि:शुल्क शिक्षण कार्य करा चुके हैं। स्कूलों में नौनिहालों को ज्ञान के अलावा समाजसेवा का भी बीड़ा उठा रखा हैं। स्वयं उन्होंने अपनी जेब से खर्च करके दुर्घटना बाहुल्य जगहों पर संकेतक लगवाएं हैं। करीब चार वर्ष पूर्व ब्लॉक के गांव मंझार में जब आग लग गई थी तो सूचना पाते ही आशुतोष ने मीना मंच के बैंक में जमा धनराशि व अपने पास से धनराशि का इंतजाम कर स्कूली बच्चों के साथ आग पीड़ितों की मदद करने पहुंचे थे।
स्कूल को बना दिया हाईटेक : शिक्षाशास्त्र से एमए व बायोलोजी से बीएससी कर चुके शिक्षक सुशील कुमार लैपटाप के जरिए बच्चों को आधुनिक ज्ञान करा रहे हैं। जिले के हरख ब्लॉक के प्राथमिक विद्यालय गुलरिहा नामीगिरामी स्कूलों को एक बार बगले झांकने को विवश जरूर करेगा। काश ऐसा ही प्रदेश का हर प्राथमिक विद्यालय हो जाए तो फिर शिक्षा का बचपन अपने आप संवर जाएगा। शिक्षक सुशील का सपना है कि लोग सरकारी विद्यालयों को एक रोल मॉडल के रूप में देखे। नीरस वातावरण को दूर करने के लिए आधुनिक तौर तरीकों का इस्तेमाल करना चाहिए। जिससे विद्यालय में आने वाले बच्चों की पढ़ाई के प्रति दिलचस्पी बनी रहे। सीमित संसाधनों में इस स्कूल ने तो कमाल ही कर दिया। यहां पर कान्वेंट स्कूलों की तर्ज पर पढ़ाई के अलावा रहन सहन भी कान्वेंट स्कूल की तरह है। कान्वेंट स्कूल की तरह क्यारी भी व्यवस्था भी देखते ही बनती हैं।
No comments:
Write comments