बस्ती जिले के सरकारी स्कूल में एडमिशन के लिए लगी लाइन, स्मार्ट क्लास, स्किल डिवेलपमेंट जैसी सुविधाएं
स्कूल में हर तरह की सुविधा होने के बावजूद यहां तक पहुंचने के लिए रास्ता नहीं है। कच्चे रास्ते से होकर बच्चों को स्कूल आना पड़ता है और बरसात में रास्ता चलने लायक नहीं रह जाता है। डीएम अरविंद कुमार सिंह ने कहा कि यह प्राइमरी स्कूल दूसरे स्कूलों के लिए रोल मॉडल है। पक्का रास्ता बनाने का विकल्प खोजा जा रहा है।
अखबार का भी प्रकाशन
मूड़घाट स्कूल, बस नाम सरकारी...सुविधाओं में प्राइवेट पर भारी
प्रॉजेक्टर पर दिखाई जा रही हैं शैक्षिक फिल्में।
स्कूल परिसर में पेड़-पौधे भी लगाए हैं।
पहले स्कूल में 19 बच्चे थे और अब उनकी संख्या 211 है।
स्कूल हर महीने ‘बाल अखबार’ प्रकाशित करता है, जिसका नाम मूड़घाट टाइम्स रखा गया है। इसमें बच्चे अपनी रुचि के सब्जेक्ट्स पर आर्टिकल, पोएट्री और लोकल प्रॉब्लम्स को लिखते हैं। यही नहीं, स्कूल का अपना फेसबुक पेज और ईमेल आईडी भी है, जिसे बच्चे खुद ही हैंडल करते हैं।
19 बच्चे ही पढ़ रहे थे। यह देखकर उन्हें स्कूल की छवि सुधारने का जुनून सवार हुआ। उनके लिए सबसे बड़ी चुनौती स्कूल में बच्चों का एडमिशन करवाना था, लेकिन उनकी मेहनत और लगन का नतीजा है कि अब स्कूल में 211 बच्चे हो गए हैं।
प्रिंसिपल मिश्र बताते हैं कि पहले वह आस-पास के गांव में गए और लोगों को अपने बच्चों को स्कूल में भेजने की अपील की। शुरुआत में कोई भी पेरंट्स बच्चों को स्कूल भेजने को राजी नहीं हुआ। शहर के प्राइवेट स्कूलों में भारी-भरकम फीस के दबाव के बावजूद सरकारी स्कूल में बच्चों को मुफ्त शिक्षा देने के लिए कोई तैयार नहीं था। इसके बाद उन्होंने खुद करीब डेढ़ लाख रुपये खर्चकर स्कूल की सूरत बदली। स्कूल में हुए बदलाव के बाद देखते ही देखते बच्चों की संख्या बढ़कर 155 हो गई। अब यह बढ़कर 211 पहुंच गई है। यह सभी बच्चे प्राइवेट स्कूल छोड़कर आये हैं।
स्कूल में हर तरह की सुविधा होने के बावजूद यहां तक पहुंचने के लिए रास्ता नहीं है। कच्चे रास्ते से होकर बच्चों को स्कूल आना पड़ता है और बरसात में रास्ता चलने लायक नहीं रह जाता है। डीएम अरविंद कुमार सिंह ने कहा कि यह प्राइमरी स्कूल दूसरे स्कूलों के लिए रोल मॉडल है। पक्का रास्ता बनाने का विकल्प खोजा जा रहा है।
अखबार का भी प्रकाशन
मूड़घाट स्कूल, बस नाम सरकारी...सुविधाओं में प्राइवेट पर भारी
प्रॉजेक्टर पर दिखाई जा रही हैं शैक्षिक फिल्में।
स्कूल परिसर में पेड़-पौधे भी लगाए हैं।
पहले स्कूल में 19 बच्चे थे और अब उनकी संख्या 211 है।
स्कूल हर महीने ‘बाल अखबार’ प्रकाशित करता है, जिसका नाम मूड़घाट टाइम्स रखा गया है। इसमें बच्चे अपनी रुचि के सब्जेक्ट्स पर आर्टिकल, पोएट्री और लोकल प्रॉब्लम्स को लिखते हैं। यही नहीं, स्कूल का अपना फेसबुक पेज और ईमेल आईडी भी है, जिसे बच्चे खुद ही हैंडल करते हैं।
19 बच्चे ही पढ़ रहे थे। यह देखकर उन्हें स्कूल की छवि सुधारने का जुनून सवार हुआ। उनके लिए सबसे बड़ी चुनौती स्कूल में बच्चों का एडमिशन करवाना था, लेकिन उनकी मेहनत और लगन का नतीजा है कि अब स्कूल में 211 बच्चे हो गए हैं।
प्रिंसिपल मिश्र बताते हैं कि पहले वह आस-पास के गांव में गए और लोगों को अपने बच्चों को स्कूल में भेजने की अपील की। शुरुआत में कोई भी पेरंट्स बच्चों को स्कूल भेजने को राजी नहीं हुआ। शहर के प्राइवेट स्कूलों में भारी-भरकम फीस के दबाव के बावजूद सरकारी स्कूल में बच्चों को मुफ्त शिक्षा देने के लिए कोई तैयार नहीं था। इसके बाद उन्होंने खुद करीब डेढ़ लाख रुपये खर्चकर स्कूल की सूरत बदली। स्कूल में हुए बदलाव के बाद देखते ही देखते बच्चों की संख्या बढ़कर 155 हो गई। अब यह बढ़कर 211 पहुंच गई है। यह सभी बच्चे प्राइवेट स्कूल छोड़कर आये हैं।
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