इलाहाबाद : यूपी बोर्ड के बारे में कहा जाता है कि मुखिया की कुर्सी पर कोई भी बैठा हो, परीक्षा व अन्य कार्य तय समय पर ही होंगे। इसकी वजह यह है कि यहां कोई एक व्यक्ति नहीं, बल्कि पूरा सिस्टम एक साथ, एक ही धुन में वर्षो से चल रहा है। बोर्ड ने समय के साथ तकनीक का साथ लिया जरूर है, लेकिन मुख्यालय व क्षेत्रीय कार्यालयों में आधुनिकता कहीं नजर नहीं आती। परीक्षार्थियों की संख्या के लिहाज से दुनिया के सबसे बड़े शैक्षिक संस्थान में हर मेज पर कंप्यूटर नहीं है, यहां कागज पर पेन ही दौड़ रही है। माध्यमिक शिक्षा परिषद यानी यूपी बोर्ड के सचिव का दफ्तर हो या फिर अपर सचिव प्रशासन व अन्य उप सचिवों का यहां कुछ कार्यालयों में कहीं कोने में कंप्यूटर रखा दिख जाएगा, लेकिन उस पर अफसरों की अंगुलियां दौड़ती नहीं है। बोर्ड मुख्यालय का परिषद सेल, परीक्षा केंद्र निर्धारण, पाठ्य पुस्तक या फिर शोध सेल हर जगह की तस्वीर एक जैसी है। सबको छोड़िए परिषद का सिस्टम सेल सबसे अहम है यहां पर भी मुश्किल से दो-तीन कंप्यूटर ही हैं और उन पर चुनिंदा लोग ही माउस दौड़ाते नजर आएंगे। यूपी बोर्ड में लाखों छात्र-छात्राओं के पंजीकरण, परीक्षा फार्म भराने, परिणाम तैयार करने, वेबसाइट पर कुछ जोड़ने या हटाने जैसे लगभग सभी कामों के लिए निजी एजेंसियों की मदद ली जा रही है। इसी तरह से क्षेत्रीय कार्यालयों में भी काम दूसरों पर ही निर्भर है। बोर्ड में सचिव शैल यादव की तैनाती के बाद यहां के कुछ जरूरी हिस्सों में सीसीटीवी कैमरे लगाने का इंतजाम हुआ है। तमाम कार्य ऑनलाइन कराए गए हैं और कुछ नये कंप्यूटर भी लगे, लेकिन आज भी मुख्यालय की टेलीफोन इंटरकॉम सेवा धड़ाम पड़ी है। अफसर व कर्मचारी अपने मोबाइल से ही एक-दूसरे से संपर्क करते हैं। परिषद सचिव ने इन कार्यो के लिए ही बजट का इंतजाम किया था, लेकिन उसे भी राजकोष में जमा करा दिया गया है। अब यहां का कायाकल्प शासन के भरोसे है।
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