छाया की छांव में बचपन निहाल, यही उनका पैगाम
छरहरी काया, नाम है छाया। यथा नाम तथा गुण। वो शीतल छांव बन गई है उस बचपन की जिनका भविष्य गरीबी और तंगहाली की गर्मी से तप रहा है। है तो सरकारी शिक्षक, मगर जो कर रही है, उससे वो अनूठी हो गई है।
लीक से अलग हटकर, बिना किसी स्वार्थ के वो मुफ्त में तालीम दे रही है उन बच्चों को जिनके मां- पिता के लिए पढ़ना-पढ़ाना मायने नही रखता। जब भी स्कूल से समय मिलता है, कक्षा लगा लेती है। हर रोज एक पाठ पढ़ाती है। अगले दिन टेस्ट होता है। छात्र का प्रदर्शन अच्छा हुआ तो बिस्कुट मिलता है, गड़बड़ हुआ तो हिदायत के साथ फिर से तैयारी का जिम्मा। यहां के सदर ब्लाक के पूर्व माध्यमिक विद्यालय सरौता में सितंबर 2015 से बतौर प्रधानाध्यापिका तैनात छाया चौधरी रसायन विज्ञान व शिक्षा शास्त्र में परास्नातक हैं। साथ ही उन्होंने बीएड की डिग्री भी हासिल की है। यहां चुनौतियां कुछ कम न थीं। अध्यापकों की तैनाती न होने से यह विद्यालय बंद पड़ा था। अपने अथक प्रयास से छाया ने पहले इसको संचालित किया। घर-घर घूमकर ग्रामीणों को जागरूक करते हुए बच्चों को स्कूल भेजने की अपील की। किसी तरह विद्यालय का संचालन प्रारंभ हुआ। अब तो हर रोज बच्चे भी नियमित स्कूल आते हैं।
ठंडक और बरसात को छोड़कर बाकी दिनों में छाया की पाठशाला कलेक्ट्रेट परिसर में हर शाम लगती है। स्कूल से लौटने के बाद कुछ देर के निजीकार्य निपटाने के साथ ही उनके छात्र परिसर में मौजूद लान में इकट्ठा हो जाते हैं।
छात्र वो होते हैं जो आसपास की चाय की दुकानों पर या तो काम करते हैं या फिर बेसहारा होते हैं। बच्चों के बीच मैडम जी और बड़ी दीदी के तौर पर पहचान बना चुकी छाया ने अपने छात्रों के लिए निजी खर्च से कापी, पेन, किताबों का भी प्रबंध कर रखा है। फिलहाल इनकी पाठशाला में अलग अलग उम्र वय के दस बच्चे हैं। छाया ने इनका दाखिला भी पास के सरकारी स्कूल में करवा दिया है। छाया न केवल अक्षर ज्ञान कराती है बल्कि कुछ बच्चों को गणित, विज्ञान और नैतिक शिक्षा के भी सबक सिखाती हैं
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