इलाहाबाद : उप्र लोकसेवा आयोग के कुछ सदस्यों की नियुक्ति को हाईकोर्ट में चुनौती दी जा चुकी है। अब आयोग के मौजूदा अध्यक्ष डा. अनिरुद्ध सिंह यादव की नियुक्ति पर सवाल उठे हैं। आरोप है कि डा. यादव ने शासन को दिये गए आत्म विवरण में अपने शैक्षणिक व सेवारत वर्षो का उल्लेख नहीं किया, फिर भी शासन ने उन्हें अहम पद पर नियुक्त कर दिया। वहीं, आयोग अध्यक्ष ने आरोपों को सिरे से नकारते हुए कहा कि ये बातें मनगढ़ंत हैं, शासन ने उनका चयन नियमों के अनुरूप व पारदर्शी तरीके से किया है।
आयोग के पूर्व अध्यक्ष अनिल यादव की नियुक्ति को हाईकोर्ट से रद कराने में पैरवी करने वाले अवनीश पांडेय ने मौजूदा अध्यक्ष डा. अनिरुद्ध सिंह यादव की नियुक्ति में गड़बड़ी के आरोप लगाए हैं। आयोग अध्यक्ष वर्ष 2002 से जीबी पंत कालेज कछला बदायूं में प्राचार्य के पद पर रहे हैं। उन्होंने आयोग में तैनाती से पहले अपने ऊपर किसी प्रकार के वाद से इन्कार किया है। आरोप है कि डा. यादव ने तथ्यों को छिपाकर अध्यक्ष पद के लिए आवेदन किया। डा. यादव का प्राचार्य पद पर चयन उच्चतर शिक्षा सेवा आयोग की विज्ञापन संख्या 25 के तहत हुआ है। आरोप है कि उच्चतर शिक्षा चयन आयोग इलाहाबाद की विज्ञापन संख्या 23 से लेकर 39 तक की नियुक्त सभी प्राचार्यो को कोर्ट से पद से हटाने का आदेश है। इसीलिए डा. यादव ने शासन को दिये गए आत्म विवरण में शैक्षणिक वर्षो व सेवारत वर्षो का उल्लेख नहीं किया है। आयोग अध्यक्ष पर विधि में स्नातक व पीएचडी की डिग्री नौकरी करते हुए हासिल करने का आरोप है।
उधर, आयोग अध्यक्ष ने दैनिक जागरण से कहा कि सभी आरोप मनगढ़ंत हैं। उनका चयन 1999-2000 में हुआ था। उस समय की भर्ती पर कोर्ट ने कोई टिप्पणी नहीं की है। बोले, शासन ने उनका चयन नियमों के अनुरूप व पारदर्शी तरीके से किया है। यह आयोग को बदनाम करने की साजिश है।
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