उत्तराखंड में सरकारी कार्मिकों यानी लोक सेवकों को 50 साल के बाद नौकरी जारी रखनी है तो अपने कामकाज में दक्षता साबित करनी होगी। अन्यथा उन्हें सरकारी नौकरी से हाथ धोना पड़ेगा। राज्य कर्मचारियों की अनिवार्य सेवानिवृत्ति की ठंडे बस्ते में पड़ी इस व्यवस्था को नई सरकार ने लागू कर दिया है। सभी महकमों में 50 वर्ष की आयु पूरी करने वाले अधिकारियों व कर्मचारियों की दक्षता जानने को स्क्रीनिंग कमेटी की हर वर्ष बैठक होगी। मुख्य सचिव एस रामास्वामी ने इस संबंध में आदेश जारी किए हैं। आदेश में पिछले वित्तीय वर्ष 2016-17 के संबंध में स्क्रीनिंग कमेटी की तत्काल बैठक कर निर्णय लेने को कहा गया है। सरकारी नौकरी एक बार हासिल करने के बाद पूरे सेवाकाल में मौज काटते रहने के बारे में प्रचलित आम धारणा अब गुजरे जमाने की बात होने जा रही है। कार्मिकों को 50 साल के बाद सरकारी नौकरी में बने रहना है तो अपनी सेवाओं में भी दक्षता सुनिश्चित करनी होगी। प्रदेश में प्रचंड बहुमत से सत्ता में पहुंची भाजपा सरकार ने राज्य कर्मचारियों के लिए अनिवार्य सेवानिवृत्ति के प्रावधान को फिर से ‘अनिवार्य’ बना दिया है। हर साल 31 मार्च तक देनी है रिपोर्टकार्मिक महकमे की ओर से 20 फरवरी, 2002 और 30 जून, 2003 को शासनादेश जारी किया जा चुका है। आदेश में वित्तीय हस्तपुस्तिका के मूल नियम-56 की व्यवस्था के तहत 50 वर्ष की आयु पूरी कर चुके सरकारी सेवक को अनिवार्य रूप से सेवानिवृत्त किए जाने के संबंध में प्रति वर्ष स्क्रीनिंग कमेटी की बैठक आयोजित किए जाने के निर्देश दिए गए हैं। आदेश में कहा गया है कि प्रत्येक विभाग में स्क्रीनिंग कमेटी के गठन कर कमेटी की बैठक प्रति वर्ष नवंबर माह में अवश्य कराई जाए। इस संबंध में पूरी कार्यवाही की सूचना 31 मार्च तक कार्मिक विभाग को निर्धारित प्रपत्र पर उपलब्ध कराई जाए। मुख्य सचिव एस रामास्वामी ने कहा कि बीते कुछ वर्षो में उक्त शासनादेश के अनुसार प्रति वर्ष स्क्रीनिंग कमेटी की बैठक नहीं की जा रही है। नतीजतन 50 वर्ष की आयु पूरी होने के बाद लोक सेवकों की सेवाओं में दक्षता सुनिश्चित नहीं हो पा रही है। इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट और गुजरात हाईकोर्ट की ओर से अनिवार्य सेवानिवृत्ति के संबंध में पारित सिद्धांतों का हवाला दिया गया है।
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