नई दिल्ली : बाल यौन शोषण के खिलाफ सख्त कानून बनाने और लोगों को इस बारे में जागरूक करने के लिए बाल अधिकार कार्यकर्ता और नोबेल पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी आज से भारत यात्रा पर निकलेंगे। सत्यार्थी का मानना है कि बच्चे यौन हिंसा का शिकार न बने, इसके लिए समाज की मानसिकता बदलनी भी जरूरी है। इसके साथ ही स्कूलों में बच्चों को सेक्स एजुकेशन दी जानी चाहिए।
■ समाज में गड़बड़ : सत्यार्थी ने एनबीटी से बात करते हुए कहा कि एक तरह से हम ओपन सोसाइटी में जी रहे हैं। सब कुछ ऑनलाइन उपलब्ध है और बच्चों की पहुंच में भी है, जबकि दूसरी तरह बच्चों को यौन शिक्षा (सेक्स एजुकेशन) नहीं दी जा रही, बल्कि इसके उलट उन्हें घरों से लेकर स्कूल तक में मर्यादा, इज्जत, परंपरा, चरित्र के नाम पर खुलकर जीने नहीं दिया जाता। खुलकर बोलने नहीं दिया जाता। समाज की मानसिकता बदलने की जरूरत है। यौन हिंसा को किसी दूसरे एक्सिडेंट या चोट की तरह लेना चाहिए, न कि पीड़ित की इज्जत की तरह। इसी सोच की वजह से यौन हिंसा के शिकार पीड़ितों के शारीरिक तौर पर तो घाव भर जाते हैं पर मानसिकता पर लगी चोट नहीं भर पाती।
उन्होंने कहा कि भारत यात्रा के दौरान हमारी यही कोशिश होगी कि लोगों को जागरूक किया जाए कि वह इस मसले पर खुलकर बोलें। बच्चों से खुलकर बात करें। उन्होंने कहा कि बच्चे किसी चीज के बारे में जानना चाहते हैं और कई बार जिज्ञासा की वजह से यौन हिंसा के शिकार बनते हैं। इसलिए उनकी उम्र के हिसाब से उन्हें सेक्स एजुकेशन देना जरूरी है। भारत के सामाजिक सांस्कृतिक परिवेश के हिसाब से स्कूलों में सेक्स एजुकेशन देनी चाहिए।
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