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Tuesday, October 10, 2017

राजस्थान के फार्मूला पर चलेगी ये सरकार, परिषदीय स्कूल एनजीओ को देने की तैयारी

बेसिक शिक्षा परिषद के प्राथमिक व उच्च प्राथमिक स्कूलों में शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार के लिए कई कदम उठाने की तैयारी चल रही है। राजस्थान की तर्ज पर यहां भी परिषदीय स्कूल एनजीओ को गोद दिए जा सकते हैं। दरअसल सरकार नई व्यवस्था से स्कूलों में शैक्षिक गुणवत्ता में सुधार करने के लिए प्रतिस्पर्धा को आधार बनाना चाहती है। माना जा रहा है कि अगले शैक्षिक सत्र से नई व्यवस्था को अमलीजामा पहना दिया जायेगा।

प्रदेश में सत्ता की बागडोर संभालने के साथ भाजपा सरकार ने शिक्षा क्षेत्र में सुधार के लिए कई घोषणाएं कीं। परिषदीय स्कूलों के बच्चों को ड्रेस, किताबें, बैग, जूते-मौजे देने की कार्रवाई ी बार से की गई। हालांकि जिले में अभी तक पूरी किताबें नही आ सकी है। दो किश्तों में आना वाला ड्रेस का पैसा स्कूलों को भेजा जा चुका है और बैग का वितरण चल रहा है। इस सबके बावजूद शैक्षिक गुणवत्ता की स्थिति अच्छी नही है। कई शिक्षक संघों के वर्चस्व के चलते बेसिक शिक्षा विभाग लखनऊ से लेकर जिला स्तर पर दबाव में रहता है। बताते हैं कि वर्ष-2016 में कई सुधार प्रस्ताव पर अंतिम रूप से मोहर लगाने का फैसला हो चुका था, लेकिन सरकार की आपसी खींचतान के चलते पूरा मामला फाइलों में उलझकर रह गया।

भाजपा सरकार के तल्ख तेवर

भाजपा सरकार के दिग्गजों द्वारा कई बार यह संकेत दिए कि बेसिक शिक्षा में सुधार के कदमों से सरकार पीछे हटने वाली नही है। आमूल-चूल परिवर्तन के साथ बच्चों के हित में जो भी बेहतर होगा, वह फैसला लागू किया जायेगा। सूत्रों के मुताबिक कई प्रदेशों की प्राथमिक शिक्षा नीति के अध्ययन के बाद राजस्थान नीति को लागू करने का सैद्धांतिक निर्णय लिया गया। बताते है चुनिंदा जिलों में पायलट प्रोजेक्ट के रूप में 10 प्रतिशत स्कूल एनजीओ को दिए जाने की योजना है।

जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी रमेन्द्र कुमार सिंह का कहना है कि राजस्थान में सरकारी स्कूल एनजीओ को दिए जाने की जानकारी मिली थी। प्रदेश में इस नीति के लागू होने की उन्हें कोई सूचना नही है।’

उच्च स्तर पर बनाई जा रही कार्ययोजना

क्या है राजस्थान का फामरूला?

राजस्थान में पायलट प्रोजेक्ट के रूप में करीब 300 स्कूल एनजीओ को दिया जायेगा और इन स्कूलों के स्टाफ को निकटवर्ती स्कूलों में भेजा जायेगा। सरकार की ओर से इन स्कूलों व बच्चों को मिल रही सुविधाएं पूर्व की तरह मिलती रहेंगी। बताते चले कि यूपी में हर जिले में एक-दो कस्तूरबा स्कूल का संचालन महिला समाख्या द्वारा किया जा रहा है। सरकार का मानना है कि कस्तूरबा की तर्ज पर प्राथमिक व उच्च प्राथमिक स्कूलों के बारे में भी यही नीति अपनाई जा सकती है।



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