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Friday, December 1, 2017

दिल्ली : विशेष शिक्षकों की भर्ती मामले में सरकार को फटकार, अतिथि शिक्षकों को नियमित करने में असफल रही सरकार


विडंबना
हाई कोर्ट ने कहा- दिल्ली सरकार दिव्यांग बच्चों की शिक्षा को नहीं कर सकती है नजरअंदाज, 23 जनवरी को अगली सुनवाई

बच्चे स्कूल से दूर, सरकार को सरोकार नहीं

जासं, नई दिल्ली : दिव्यांगों के लिए दिल्ली सरकार व नगर निगम के स्कूलों में विशेष शिक्षकों की भर्ती को लेकर लापरवाह रवैया अपनाने पर हाई कोर्ट ने बृहस्पतिवार को दिल्ली सरकार को जमकर फटकार लगाई। कार्यकारी मुख्य न्यायाधीश गीता मित्तल व न्यायमूर्ति सी हरिशंकर की पीठ ने कहा कि यह मामला गंभीर चिंता का विषय है और दिव्यांगों के लिए विशेष शिक्षकों की भर्ती के मामले को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। मामले की अगली सुनवाई 23 जनवरी को होगी। 1कोर्ट ने कहा कि विशेष शिक्षकों की भर्ती का मामला दिव्यांगों के विकास पर गहरा प्रभाव डाल सकता है। कोर्ट ने शिक्षा निदेशालय से पूछा कि विशेष शिक्षकों की गैरमौजूदगी में दिव्यांग बच्चों को किस तरह की शिक्षा दी जा सकती है। दिल्ली सरकार विशेष शिक्षकों की भर्ती करने में पूरी तरह से फेल साबित हुई है और गैर कानूनी तरीके से अतिथि विशेष शिक्षकों की भर्ती कर रही है। कोर्ट की यह टिप्पणी एक महिला की उस याचिका पर आई, जिसके दो दिव्यांग लड़के सरकारी स्कूलों में कई साल से पढ़ रहे थे और उन्होंने कुछ भी नहीं सीखा। याचिकाकर्ता ममता देवी व उनके पति श्याम नंदन कटवरिया सराय इलाके में सब्जी बेचते हैं। इससे पूर्व भी दिल्ली सरकार व नगर निगम के स्कूलों में विशेष शिक्षकों की भर्ती प्रक्रिया में देरी होने से नाराज कोर्ट ने दिल्ली अधीनस्थ सेवा चयन बोर्ड (डीएसएसएसबी) से ब्योरा पेश करने को कहा था। इस पर डीएसएसएसबी के वकील नौशाद अहमद ने बताया कि शिक्षा निदेशालय को बोर्ड ने 2010 में 858 पदों पर नियुक्ति के लिए कहा था और 2011 में इसका विज्ञापन भी दिया गया था, लेकिन एक जून 2012 को इन सभी पदों को रद कर दिया गया था। उन्होंने कोर्ट को बताया कि अक्टूबर 2012 में 927 पदों पर भर्ती के लिए विज्ञापन दिया गया था और इसमें 232 प्रतिभागियों को योग्य पाया गया था। ऐसे में बोर्ड की तरफ कोई देरी नहीं हुई है। वकील से कार्यकारी मुख्य न्यायाधीश गीता मित्तल ने पूछा कि आखिर शिक्षा निदेशालय ने नियुक्तियों को रद क्यों किया। उन्होंने चेताया कि शिक्षा निदेशक को बुलाकर पूछा जाएगा कि इसके पीछे आखिर क्या कारण थे।जासं, नई दिल्ली : सत्ता में आने से पहले आम आदमी पार्टी ने अतिथि शिक्षकों को नियमित करने का वादा किया था। इसके बाद अतिथि शिक्षक संगठनों ने नव गठित आम आदमी पार्टी को खुल कर समर्थन दिया था। नतीजतन अरविंद केजरीवाल की बतौर मुख्यमंत्री ताजपोशी संभव हुई थी। तब से अब तक अतिथि शिक्षक नियमित होने का इंतजार कर रहे हैं, लेकिन दिल्ली सरकार अतिथि शिक्षकों को नियमित करने में असफल साबित हुई है।अतिथि शिक्षकों को नियमित करने संबंधी केजरीवाल सरकार के वादे को लेकर आल इंडिया गेस्ट टीचर्स एसोसिएशन के पदाधिकारी शोएब राणा का कहना है कि सरकार गठन के बाद अतिथि शिक्षकों को नियमित करने का मुद्दा बीते सालों में पीछे छूट गया था। सरकार की योजना के चलते अतिथि शिक्षकों को प्रत्येक वर्ष जुलाई में अपनी नौकरी के नवीनीकरण के लिए आवेदन करना पड़ता था। इस वजह से अतिथि शिक्षकों को अपनी नौकरी बचाने तक की मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा था। इस संबंध में अतिथि शिक्षकों ने कैट का दरवाजा खटखटाया, जिसने अतिथि शिक्षकों के पक्ष में फैसला सुनाया था, लेकिन मार्च 2016 में अतिथि शिक्षकों को इसे लागू करवाने के लिए 10 दिन का आमरण अनशन करना पड़ा था।दांव पर है अतिथि शिक्षकों का भविष्य1अतिथि शिक्षक अरुण डेढ़ा का कहना है कि दिल्ली सरकार की राजनीति का खामियाजा अतिथि शिक्षकों को भुगतना पड़ रहा है। 16 हजार से अधिक अतिथि शिक्षकों का भविष्य दांव पर है। पहले तो सरकार ने उपराज्यपाल को आठ पेज का पत्र लिखकर अतिथि शिक्षकों को नियमित करने पर हाथ खड़े कर दिए खड़े कर दिए और गेंद एलजी के पाले में डाल दी। जब अन्य राजनीतिक दलों ने सवाल उठाए तो आनन-फानन में अतिथि शिक्षकों को नियमित करने के लिए फैसला लेते हुए विधानसभा में बिल पास कर दिया। अब बिल की स्थिति के बारे में न दिल्ली सरकार कोई जानकारी दे रही है और न ही उपराज्यपाल की तरफ से कोई जानकारी मिल रही है।दिहाड़ी मजदूर की तरह काम कर हैं अतिथि शिक्षक 1अतिथि शिक्षक पायल का कहना है कि दिल्ली सरकार समय-समय पर अतिथि शिक्षकों को समान कार्य-समान वेतन देने का वादा करती है, लेकिन इस वादे के इतर आज भी अतिथि शिक्षक दिहाड़ी मजदूर के तौर पर स्कूलों में अपनी सेवाएं दे रहे हैं। वहीं श्रेणियों में बांटकर दिल्ली सरकार अतिथि शिक्षकों के साथ भेदभाव कर रही है, इसके चलते बड़ी संख्या में कुछ अतिथि शिक्षकों को अन्य अतिथि शिक्षकों की तुलना में प्रति माह सात हजार रुपये तक कम पैसे मिल रहे हैं। उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया स्वयं इस समस्या का समाधान करने का वादा दो बार कर चुके हैं। तब से अब तक नौ महीने गुजर गए हैं लेकिन इस समस्या का निदान नहीं हो पाया है।जासं, नई दिल्ली : राजधानी में ही बच्चों के हक पर सरकार की सुस्ती व लापरवाही भारी पड़ रही है। एक तरफ तो दिल्ली सरकार शिक्षा का बजट बढ़ाने को अपनी उपलब्धि बता रही है, दूसरी तरफ दिल्ली में लाखों बच्चों को पढ़ने का अवसर तक नहीं मिल रहा है। राजधानी में 12 साल तक के आठ लाख बच्चे किसी भी स्कूल में पंजीकृत नहीं हैं और दिल्ली सरकार को इससे कोई सरोकार नहीं हैं।1शिक्षा का अधिकार अधिनियम (आरटीई) 2009 के तहत 14 वर्ष तक के सभी बच्चों को शिक्षित करने का लक्ष्य रखा गया है, लेकिन दिल्ली सरकार इसमें असफल है। इस संबंध में अखिल भारतीय अभिभावक संघ के अध्यक्ष अधिवक्ता अशोक अग्रवाल कहते हैं कि दो साल पहले तक करीब छह लाख बच्चे राजधानी के किसी भी स्कूल में पंजीकृत नहीं थे, वर्तमान में यह आंकड़ा आठ लाख के पार पहुंच गया है। इन बच्चों को स्कूल तक लाने की जिम्मेदारी राज्य सरकार की होती है, इस संबंध में आरटीई में स्पष्ट कानून है। इसके बाद भी सरकार के पास कोई कार्ययोजना नहीं बना पाई है। उन्होंने कहा कि असल में इन बच्चों को स्कूल तक लाने की नैतिक जिम्मेदारी मुख्यमंत्री की होती है। सरकार इस पर कोई कानून बनाए और निगम के साथ मिलकर इसे लागू करे। उन्होंने बताया कि इस संबंध में सोशल ज्यूरिस संगठन ने कुछ वर्ष दिल्ली के 20 स्थानों पर कैंप लगाए थे। इसमें 1000 से अधिक ऐसे बच्चों ने आवेदन किए, जिन्होंने अभी तक किसी भी स्कूल में पंजीकरण नहीं कराया था। इसी तर्ज पर दो महीने पहले हाई कोर्ट ने दिल्ली सरकार को कैंप लगाने का आदेश दिया था, लेकिन उस आदेश पर दिल्ली सरकार आज तक कोई काम नहीं कर पाई हैं।’>>हाई कोर्ट ने सरकार को पंजीकरण के लिए कैंप लगाने का दिया था आदेश1’>>कोर्ट के आदेश के बाद भी बच्चों को स्कूल तक लाने में सरकार असफल

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