इलाहाबाद : यूपी बोर्ड इन दिनों माध्यमिक शिक्षा की प्रयोगशाला बना है। तकनीक का साथ लेने में आमतौर पर अव्वल रहने वाला बोर्ड परीक्षा की सख्ती में हर बार फेल हो रहा है। दो साल पहले परीक्षार्थियों की उपस्थिति जांचने का मोबाइल एप फेल हो गया, वहीं इस वर्ष कंप्यूटर के जरिये परीक्षा केंद्र निर्धारण भी कारगर नहीं हो पा रहा है। जिला विद्यालय निरीक्षक लगातार असहयोग कर रहे हैं।
यूपी बोर्ड में वैसे तो परीक्षार्थियों व जनता से जुड़ा लगभग हर कार्य तकनीक के जरिए ही हो रहा है। इसके लिए भले ही पर्याप्त नहीं हैं लेकिन, एजेंसियों के दम पर लक्ष्य हासिल हो रहा है। कक्षा 9 व 11 का ऑनलाइन पंजीकरण, कक्षा 10 व 12 के परीक्षा फार्म, ऑनलाइन मान्यता आवेदन, प्रवेशपत्र व परीक्षकों की सूची आदि उपलब्ध कराई जा रही है। यह तकनीक लिखित परीक्षा का कार्य आते ही सवालों के घेरे में आ जाती है। दो वर्ष पहले शासन ने परीक्षार्थियों की उपस्थिति जांचने के लिए मोबाइल एप शुरू किया। सभी केंद्र व्यवस्थापकों को प्रशिक्षण व मोबाइल सिम मुहैया कराया गया लेकिन, पहले दिन ही सभी जिलों की रिपोर्ट नहीं आई। कई जिलों में सिम ने कार्य नहीं किया तो तमाम जगहों पर शिक्षकों ने इसमें रुचि न लेकर योजना को फेल कर दिया। अब वेबसाइट के जरिये उपस्थिति ली जा रही है।
इस बार शासन ने परीक्षा में नकल पर प्रभावी अंकुश लगाने के लिए बोर्ड परीक्षा केंद्र तय होने पर ही शिकंजा कसा। साथ ही कंप्यूटर से केंद्र निर्धारण का आदेश दिया। बोर्ड मुख्यालय ने इसका साफ्टवेयर तैयार किया और क्षेत्रीय कार्यालयों के अपर सचिवों के जरिये इसका परीक्षण भी किया। जिला विद्यालय निरीक्षकों ने नकल माफियाओं के दबाव में इस प्रयोग का शुरू से ही असहयोग करके मानों विरोध करना शुरू किया। इसीलिए तमाम निर्देशों के बाद भी विद्यालय के संसाधनों का सत्यापन और उनका अंकन सही से नहीं किया गया। इसीलिए अनंतिम सूची के केंद्र निर्धारण पर सवाल उठे।अंतिम सूची का जिम्मा जिला समिति को मिलने पर केंद्र निर्धारण में मनमानी के तमाम प्रकरण सामने आ चुके हैं।
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