नई दिल्ली : शिक्षा का क्षेत्र सिर्फ निवेश का ही क्षेत्र माना जाता रहा है, लेकिन मोदी सरकार ने इस मिथक को तोड़ने की कोशिश की है। उसने अपने संस्थानों को विश्वस्तरीय बनाने जैसी एक बड़ी योजना पेश की है। सरकार का मानना है कि दुनिया के दूसरे देश जब उच्च शिक्षा के क्षेत्र में विकास कर अच्छा पैसा कमा सकते हैं, तो वह भी ऐसा क्यों नहीं कर सकते हैं। हालांकि, इस लक्ष्य को हासिल करना आसान नहीं है।
अभी बड़ी संख्या में भारतीय छात्र उच्च शिक्षा के लिए अमेरिका-इंग्लैंड जैसे देशों में जाते हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक उच्च शिक्षा के लिए विदेश जाने वाले यह छात्र हर साल करीब 66 हजार करोड़ रुपए खर्च करते हैं। अमेरिका जैसे देशों की अर्थव्यवस्था में दूसरे देशों से आने वाले छात्रों की बड़ी भागीदारी है।1भारत सरकार का उद्देश्य साफ है कि अपने संस्थान विश्वस्तरीय हों, तो इससे दुनिया में भारत की साख बढ़ेगी। बाहर के छात्र भारत पढ़ने आएंगे। भारत इससे विदेशी पूंजी भी जुटा सकेगा। अपने छात्र लाभान्वित होंगे और वह जो धन विदेश में खर्च करते हैं, अपने देश में रह जाएगा।
इस बदलाव के लिए संस्थानों के इंफ्रास्ट्रक्चर की मजबूती के साथ-साथ उनकी स्वायत्तता और गुणवत्ता पर जोर है। शोध को बढ़ावा दिया जा रहा है। एक हजार करोड़ का एक फंड बना है। हेफा जैसे वित्तीय सहायता देने वाली एजेंसी का भी गठन किया है। इसके जरिए संस्थानों को अब शोध के लिए भरपूर पैसा दिया जा रहा है। सरकार 20 संस्थानों को विश्वस्तरीय बनाने की योजना पर काम कर रही है।
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