नई दिल्ली : केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने गुरुवार को राज्यसभा को भरोसा दिया कि सरकार विश्वविद्यालय शिक्षकों की भर्ती में आरक्षण पर आंच नहीं आने देगी। इसके लिए सुप्रीम कोर्ट में कानूनी लड़ाई लड़ेगी।
जावड़ेकर ने कहा कि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने पांच मार्च को एक 13 सूत्रीय रोस्टर जारी किया है। इसमें शिक्षकों की भर्ती में अनुसूचित जाति, जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग के आरक्षण को कम करने का प्रयास किया गया है। यद्यपि यह रोस्टर इलाहाबाद हाई कोर्ट के उस फैसले पर आधारित है, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने भी सही ठहराया था। लेकिन सरकार इससे कतई सहमत नहीं है और इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में लड़ाई लड़ेगी।
इस संबंध में सरकार और यूजीसी की ओर से एक-एक विशेष अनुमति याचिका दाखिल की गई है। उन्होंने कहा, ‘हमें उम्मीद है कि हम एससी, एसटी और ओबीसी आरक्षण को बचाने में सफल होंगे।’ जावड़ेकर के मुताबिक, अदालती फैसले में आरक्षण की ऐसी त्रुटिपूर्ण व्यवस्था की गई है जिसके तहत शिक्षकों के कुल पदों की गणना विश्वविद्यालय या कॉलेज के अनुसार न करके विभाग या विषय के हिसाब से की जाती है। इससे पहले पूरे विश्वविद्यालय को एक इकाई मानकर और किसी श्रेणी विशेष के सभी पदों को मिलाकर आरक्षण कोटे का आकलन किया जाता था।
मसलन, सहायक प्रोफेसर की भर्ती में कोटे का आकलन सभी विभागों में सहायक प्रोफेसर के पदों को मिलाकर होता था। उन्होंने कहा, ‘आरक्षण संवैधानिक अधिकार है। हम आरक्षण के साथ हैं और इसे एससी, एसटी तथा ओबीसी को देने के लिए संकल्पबद्ध हैं।’ जावड़ेकर के अनुसार, उनके मंत्रलय ने याचिकाओं पर फैसला आने तक बुधवार को ही विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में शिक्षकों की भर्ती पर रोक लगाने के आदेश दे दिए थे।
विपक्ष ने उठाया मुद्दा: इससे पहले सपा के रामगोपाल यादव ने शून्यकाल में इस मसले को उठाया था। उन्होंने यूजीसी के नए रोस्टर का हवाला देते हुए कहा कि संविधान के मुताबिक एससी, एसटी और ओबीसी को क्रमश: 15, 7.5 और 27 प्रतिशत आरक्षण प्रदान किया जाता है।
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