उच्च शिक्षा : अम्ब्रेला एक्ट लागू होने बाद भी निजी विश्वविद्यालयों की निगरानी का तंत्र फेल, उच्च शिक्षा परिषद को है निगरानी का जिम्मा।
निजी विश्वविद्यालयों की निगरानी का तंत्र फेल
August 11, 2019
लखनऊ : सूबे के 27 निजी विश्वविद्यालयों की मनमानी पर ब्रेक लगाने के लिए अंब्रेला एक्ट तो लागू कर दिया गया है लेकिन निगरानी का तंत्र पूरी तरह फेल है। निजी विश्वविद्यालयों में नियमानुसार ही काम हो इसकी निगरानी उच्च शिक्षा परिषद को सौंपी गई है लेकिन इसमें अध्यक्ष, उपाध्यक्ष सहित कुछ सदस्यों के पद लंबे समय से खाली चल रहे हैं।
उच्च शिक्षा परिषद में एक अध्यक्ष, दो उपाध्यक्ष सहित कुल 16 सदस्यीय टीम है। निजी विश्वविद्यालयों पर शिकंजा कसने और एक छतरी के नीचे लाने के लिए बने अंब्रेला एक्ट 2019 के लागू होने के बाद इसकी भूमिका काफी बढ़ गई है। करीब दो वर्षो से अध्यक्ष व उपाध्यक्ष की कुर्सी खाली है। इसके अलावा सदस्य के रूप में चार विश्वविद्यालयों के जिन कुलपतियों को शामिल किया जाता है, वह भी नहीं किया गया। सूची में पूर्व कुलपतियों के नाम हैं, जिनका कार्यकाल अब खत्म हो चुका है। एक्ट के माध्यम से शिकंजा कसकर विद्यार्थियों व अभिभावकों को राहत तो देने का काम किया गया, लेकिन इनकी शिकायत पर कार्रवाई करने का सिस्टम पूरी तरह ध्वस्त है। उच्च शिक्षा परिषद के खाली पदों को भरने के लिए अभी तक कोई प्रयास भी नहीं शुरू हुए है। ऐसे में निजी विश्वविद्यालय एक्ट बनने के बावजूद बेखौफ हैं।
निजी विश्वविद्यालयों की निगरानी का तंत्र फेल
August 11, 2019
लखनऊ : सूबे के 27 निजी विश्वविद्यालयों की मनमानी पर ब्रेक लगाने के लिए अंब्रेला एक्ट तो लागू कर दिया गया है लेकिन निगरानी का तंत्र पूरी तरह फेल है। निजी विश्वविद्यालयों में नियमानुसार ही काम हो इसकी निगरानी उच्च शिक्षा परिषद को सौंपी गई है लेकिन इसमें अध्यक्ष, उपाध्यक्ष सहित कुछ सदस्यों के पद लंबे समय से खाली चल रहे हैं।
उच्च शिक्षा परिषद में एक अध्यक्ष, दो उपाध्यक्ष सहित कुल 16 सदस्यीय टीम है। निजी विश्वविद्यालयों पर शिकंजा कसने और एक छतरी के नीचे लाने के लिए बने अंब्रेला एक्ट 2019 के लागू होने के बाद इसकी भूमिका काफी बढ़ गई है। करीब दो वर्षो से अध्यक्ष व उपाध्यक्ष की कुर्सी खाली है। इसके अलावा सदस्य के रूप में चार विश्वविद्यालयों के जिन कुलपतियों को शामिल किया जाता है, वह भी नहीं किया गया। सूची में पूर्व कुलपतियों के नाम हैं, जिनका कार्यकाल अब खत्म हो चुका है। एक्ट के माध्यम से शिकंजा कसकर विद्यार्थियों व अभिभावकों को राहत तो देने का काम किया गया, लेकिन इनकी शिकायत पर कार्रवाई करने का सिस्टम पूरी तरह ध्वस्त है। उच्च शिक्षा परिषद के खाली पदों को भरने के लिए अभी तक कोई प्रयास भी नहीं शुरू हुए है। ऐसे में निजी विश्वविद्यालय एक्ट बनने के बावजूद बेखौफ हैं।
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