जून की तपन में बच्चों को गर्मी से बचाने के लिए स्कूलों को बंद कर दिया जाता है। कुछ ऐसा ही हाल कड़ाके की ठंड में भी होता है। इससे इतर स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों से कम उम्र के मासूमों को मुट्ठी भर पंजीरी के लिए तपन भरे दिनों में भी आंगनबाड़ी केंद्रों पर बुलाया जाता है। इन केंद्रों पर पंखे तक नहीं हैं।
बच्चों, माताओं व किशोरियों को कुपोषण से बचाने के लिए गांवों से लेकर शहरों तक संचालित आंगनबाड़ी केंद्रों पर उनको पोषाहार देने की व्यवस्था है। तीन से छह वर्ष तक के बच्चों के लिए गर्म भोजन और पंजीरी की व्यवस्था होती है। खाने के लिए साढ़े तीन रुपये प्रति बच्चे की दर से सरकार धन देती है। आंगनबाड़ी केंद्रों की सहायिका मेन्यू के अनुसार भोजन पकाती हैं। हॉट कुक्ड भोजन के लिए अक्टूबर में धन आया था, जिससे नवंबर में हॉट कुक्ड भोजन बच्चों को दिया गया था। मार्च में करीब पंद्रह दिनों के लिए हॉटकुक्ड भोजन का धन दिया गया है। इसके बाद से अब तक केंद्रों पर चूल्हे नहीं जले। अब बच्चों को प्रतिदिन केवल पचास ग्राम पंजीरी दी जाती है।
अभिभावकों का कहना है कि इतने छोटे बच्चों को इस तरह की गर्मी में आंगनबाड़ी केंद्रों पर बुलाया जाता है, जबकि वहां पंखे तक नहीं लगे हैं। ऐसे में मासूमों के बीमार होने का खतरा बना रहता है। आंगनबाड़ी कर्मचारी संघ की प्रदेश संगठन मंत्री एवं गोसाईगंज के रसूलपुर केंद्र की संचालिका रामदेवी वर्मा कहती हैं कि गर्मी व सर्दी में इंटर तक के स्कूल बंद कर दिए जाते हैं, लेकिन आंगनबाड़ी केंद्र कभी बंद नहीं किए जाते। ऐसा तब है जबकि यहां तीन से छह साल तक के बच्चे पढ़ते हैं। हॉटकुक्ड साल में सिर्फ दो-चार महीने ही बन पाता है। इसके अलावा पोषाहार भी समाप्त कर दिया जाता है।
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