सरकारी मदद के अभाव में कई परिषदीय विद्यालय जर्जर हैं, जिसकी सुध लेने वाला कोई नहीं है। जनपद में एक तरफ जहां अच्छे विद्यालयों की कमी नहीं है, तो वहीं सैकड़ों की तादात में ऐसे विद्यालय भी हैं, जो देखरेख के अभाव में खंडहर होने लगे हैं।
जनपद में कई शिक्षक ऐसे हैं, जो निजी संसाधनों से विद्यालयों को सजा और संवार रहे हैं। कई ऐसे भी हैं, जो अपनी जेब से रख-रखाव और मरम्मत के नाम पर धेला तक खर्च करना पसंद नहीं करते। इसकी एक वजह भी है, क्योंकि इनकी मरम्मत पर हजारों का खर्च आता है। इन विद्यालयों के फर्श टूटे हैं।
शौचालयों की हालत अच्छी नहीं है। कक्षा-कक्ष और खिड़की दरवाजे खस्ताहाल हैं। कई की चारदीवारी भी नहीं है। ऐसे विद्यालयों की मरम्मत करने का बीड़ा दो वर्ष पहले ग्राम पंचायतों के माध्यम से विकास विभाग ने उठाया था। विद्यालयों को सरकारी संपती मानते हुए तत्कालीन मुख्य विकास अधिकारी राकेश चंद्रा ने सभी विद्यालयों से प्रस्ताव भी मांगे, लेकिन उनके जाने के बाद ठंडे बस्ते में पड़ गए। गत वर्ष भी प्रस्ताव मांगे गए, लेकिन अभी तक कार्रवाई आगे नहीं बढ़ सकी है। हालांकि जिला प्रशासन ने ग्राम प्रधानों को इस आशय के निर्देश भी जारी किए, जिसमें राज्य वित्त और 14वें वित्त से विद्यालयों की मरम्मत और रख-रखाव करने की बात कही गई। प्रधानों ने जिला प्रशासन के आदेश को हवा में उड़ाया। इतना ही नहीं, शासन के आदेश के बाद भी सफाई कर्मी विद्यालयों में सफाई करने तक नहीं पहुंच रहे हैं। ऐसे में शिक्षक बच्चों की मदद से सफाई करने को मजबूर हैं।
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