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Tuesday, December 12, 2017

सुप्रीम कोर्ट ने की टिप्पणी, दो सप्ताह में घोषित करें टीजीटी रिजल्ट, बीच रास्ता निकाल सबकी नौकरी बचाई


2009 टीजीटी भर्ती मामले में शीर्ष कोर्ट ने बीच रास्ता निकाल सबकी नौकरी बचाई

उत्तर प्रदेश का ट्रेंड ग्रेजुएट टीचर भर्ती मामला शायद भर्ती परीक्षाओं में कोर्ट की दखलंदाजी और उम्मीदवारों के वर्षो अदालतों का चक्कर काटते रहने का एक उत्तम उदाहरण है। यह मामला जनवरी 2009 की भर्ती परीक्षा का है जिसमें तीन बार उत्तर पुस्तिकाओं का मूल्यांकन हुआ और आठ साल में भी मामला फाइनल नहीं हुआ। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को इस स्थिति पर दुख जताते हुए उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा चयन बोर्ड को दो सप्ताह के भीतर तीसरी बार किए गए मूल्यांकन का परिणाम घोषित करने का आदेश दिया है। हालांकि कोर्ट ने बीच का रास्ता अपनाते हुए पिछले दो बार की चयन सूची में स्थान पाने वाले और नौकरी कर रहे लोगों को राहत दी है। तीसरे दौर के मूल्यांकन में असफल घोषित होने वालों को नौकरी से नहीं हटाने का आदेश दिया है।

यह आदेश न्यायमूर्ति मदन बी. लोकुर व न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता की पीठ ने रण विजय सिंह व अन्य की याचिकाओं का निपटारा करते हुए दिया है। कोर्ट ने भर्ती परीक्षाओं में अदालत के पुनर्मूल्यांकन को क्षेत्रधिकार का अतिक्रमण माना है। पीठ ने कहा कि अगर नियम अनुमति नहीं देते तो भर्ती परीक्षाओं का पुनमरूल्यांकन नहीं होना चाहिए। हाई कोर्ट की एकलपीठ द्वारा परीक्षा के सात प्रश्नों का स्वयं पुर्नमूल्यांकन करने को क्षेत्रधिकार का अतिक्रमण माना है।

पीठ ने कहा कि उन्हें यह दर्ज करते हुए बड़ा कष्ट हो रहा है कि ट्रेंड ग्रेजुएट टीचर्स भर्ती परीक्षा का विज्ञापन जनवरी 2009 में निकला था। 36000 लोगों ने लिखित परीक्षा में भाग लिया था। करीब आठ साल बीतने के बाद अभी तक मामला फाइनल नहीं हुआ है।

पीठ ने कहा कि सार्वजनिक परीक्षा तंत्र को सावधानी के साथ जांचने परखने की जरूरत है ताकि चयनित उम्मीदवार वर्षो चलने वाली मुकदमेबाजी में न फंसे। सुप्रीम कोर्ट ने विचार करने के बाद बीच का रास्ता अपनाते हुए बोर्ड को हाई कोर्ट के दो नवंबर 2015 के आदेश के मुताबिक हुए पुनमरूल्यांकन का परिणाम दो सप्ताह में घोषित करने को कहा।

सार्वजनिक परीक्षा तंत्र को सावधानी से जांचने परखने की जरूरत है ताकि चयनित उम्मीदवार वर्षो चलने वाली मुकदमेबाजी में न फंसे कितना घालमेल है। एक भर्ती परीक्षा का तीन बार हुआ मूल्यांकन और आठ साल बाद भी मामला नहीं हो पाया फाइनल

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