शिक्षक दिवस पर विशेष: सरकारी स्कूलों के शिक्षक बन गए मिसाल
जेब से पैसे खर्च कर दूर की स्कूल की बदहाली
स्कूल की बाउंड्री का करवाया निर्माण
गांव से लिया चंदा, सभी को बनाया भागीदार
8 महीने में बदली स्कूल की रंगत
मल्हौर प्राथमिक विद्यालय प्रथम की प्रिंसिपल अनिशा दीक्षित ने साल 2010 में यहां कार्यभार संभाला था। यहां छह जर्जर कमरे और एक मैदान से अतिरिक्त कुछ नहीं था। उन्होंने बताया कि मैंने आते ही पहले स्कूल की बाउंड्री बनवाई। हर साल क्लास बदलने का नियम बनाया और पीरियड के मुताबिक शिक्षा शुरू की। स्कूल में घंटी नहीं बजती थी उसे शुरू कराया। छोटे छोटे प्रयासों से आज स्कूल की पूरी काया पलट हो गई है। बच्चे भी पहले से दोगुने हो गए हैं।
काकोरी के उच्च प्राथमिक विद्यालय कठिंगरा के शिक्षक शाहिद अली साल 2013 में यहां के इंचार्ज बने। यहां का स्कूल तबेले की तरह इस्तेमाल होता था। 15 अगस्त को पहली बार प्रोग्राम कराया। गांव वालों की मदद से स्कूल में पेड़ लगवाए। चंदा लेकर स्कूल की बदहाली दूर की। पढ़ाई में सभी सहयोगी शिक्षकों की क्लासेज लगाईं और नियमित मॉनिटरिंग की। स्कूल में भू-माफिया का कब्जा था उसे भी हटवाया।
अलीगंज प्राथमिक विद्यालय में नवंबर, 2016 को पूनम मिश्रा सहायक अध्यापिका के तौर पर आईं। तब यहां की बाउंड्री वॉल टूटी हुई थी और बिल्डिंग जर्जर हालत में थी। इसके बाद इन्होंने इसे संवारने का बीड़ा उठाया। मेरे अलावा किरण तिवारी, प्रेमलता सिंह, ममता मिश्रा और सिम्मी गुप्ता ने 5-5 हजार रुपये मिलाकर इसे संवारने का काम शुरू किया। एनजीओ क्योर फाउंडेशन ने काम होता फंडिंग की।• जीशान हुसैन राईनी, लखनऊ
अगर दिल में दृढ़ संकल्प हो तो किसी भी मंजिल को हासिल किया जा सकता है। इस बात को शहर के सरकारी स्कूलों के कुछ शिक्षकों ने सच कर दिखाया है। उन्होंने अपने प्रयासों से न सिर्फ स्कूल की सूरत बदली बल्कि शिक्षा में भी बदलाव किया। विभाग से फंड नहीं मिला तो अपनी सैलरी से पैसा लगाया, गांव के लोगों से चंदा लिया लेकिन स्कूल को बदल दिया। आज वो क्षेत्र के लिए मिसाल बन गए हैं। शिक्षक दिवस के मौके पर शहर के कुछ ऐसे ही शिक्षकों के प्रयासों पर एक रिपोर्ट-
जेब से पैसे खर्च कर दूर की स्कूल की बदहाली
स्कूल की बाउंड्री का करवाया निर्माण
गांव से लिया चंदा, सभी को बनाया भागीदार
8 महीने में बदली स्कूल की रंगत
मल्हौर प्राथमिक विद्यालय प्रथम की प्रिंसिपल अनिशा दीक्षित ने साल 2010 में यहां कार्यभार संभाला था। यहां छह जर्जर कमरे और एक मैदान से अतिरिक्त कुछ नहीं था। उन्होंने बताया कि मैंने आते ही पहले स्कूल की बाउंड्री बनवाई। हर साल क्लास बदलने का नियम बनाया और पीरियड के मुताबिक शिक्षा शुरू की। स्कूल में घंटी नहीं बजती थी उसे शुरू कराया। छोटे छोटे प्रयासों से आज स्कूल की पूरी काया पलट हो गई है। बच्चे भी पहले से दोगुने हो गए हैं।
काकोरी के उच्च प्राथमिक विद्यालय कठिंगरा के शिक्षक शाहिद अली साल 2013 में यहां के इंचार्ज बने। यहां का स्कूल तबेले की तरह इस्तेमाल होता था। 15 अगस्त को पहली बार प्रोग्राम कराया। गांव वालों की मदद से स्कूल में पेड़ लगवाए। चंदा लेकर स्कूल की बदहाली दूर की। पढ़ाई में सभी सहयोगी शिक्षकों की क्लासेज लगाईं और नियमित मॉनिटरिंग की। स्कूल में भू-माफिया का कब्जा था उसे भी हटवाया।
अलीगंज प्राथमिक विद्यालय में नवंबर, 2016 को पूनम मिश्रा सहायक अध्यापिका के तौर पर आईं। तब यहां की बाउंड्री वॉल टूटी हुई थी और बिल्डिंग जर्जर हालत में थी। इसके बाद इन्होंने इसे संवारने का बीड़ा उठाया। मेरे अलावा किरण तिवारी, प्रेमलता सिंह, ममता मिश्रा और सिम्मी गुप्ता ने 5-5 हजार रुपये मिलाकर इसे संवारने का काम शुरू किया। एनजीओ क्योर फाउंडेशन ने काम होता फंडिंग की।• जीशान हुसैन राईनी, लखनऊ
अगर दिल में दृढ़ संकल्प हो तो किसी भी मंजिल को हासिल किया जा सकता है। इस बात को शहर के सरकारी स्कूलों के कुछ शिक्षकों ने सच कर दिखाया है। उन्होंने अपने प्रयासों से न सिर्फ स्कूल की सूरत बदली बल्कि शिक्षा में भी बदलाव किया। विभाग से फंड नहीं मिला तो अपनी सैलरी से पैसा लगाया, गांव के लोगों से चंदा लिया लेकिन स्कूल को बदल दिया। आज वो क्षेत्र के लिए मिसाल बन गए हैं। शिक्षक दिवस के मौके पर शहर के कुछ ऐसे ही शिक्षकों के प्रयासों पर एक रिपोर्ट-
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