महराजगंज : महराजगंज स्थित माध्यमिक विद्यालय पड़री बुजुर्ग के शिक्षक संतोष वर्मा अपनी आंखों से दुनिया नहीं देख सकते। जन्म के चंद दिनों बाद चेचक के चलते आंखों की रोशनी चली गई, इसके बाद भी जीवन पथ की मुश्किलें उन्हें मंजिल पाने से नहीं रोक पाई । अभिशाप को वरदान बनाने का साहस था इनमें, तभी तो कमजोरियों को ताकत बना एक नई सुबह की ओर बढ़े, और आज आदर्श शिक्षक के रूप में बच्चों के बीच ज्ञान बांट रहे हैं। 2009 में प्राथमिक विद्यालय में बतौर सहायक अध्यापक नियुक्त हुए संतोष आज पदोन्नति पाकर पूर्व माध्यमिक विद्यालय में पहुंच चुके हैं। समय के साथ अब यह विद्यालय उनका घर तो बच्चे परिवार के सदस्य बन चुका हैं। नियमित स्कूल पहुंच कर प्रार्थना करा क्लास रूम में जाना उनकी दिनचर्या है। आंख से दिखाई न देने के चलते संतोष वर्मा ब्लैकबोर्ड पर लिख तो नहीं सकते, लेकिन ब्रेनलिपि के माध्यम से बच्चों को पढ़ाते हैं। यह संतोष वर्मा के प्रेरणा और परिश्रम का ही प्रतिफल है कि शैक्षणिक सत्र के दो माह में ही पाठ्यक्रम में शामिल अधिकांश पाठ पढ़ाए जा चुके हैं। छात्रों को करियर बनाने में दिक्कत न हो इसके लिए वह स्कूल में सामान्य ज्ञान प्रतियोगिता भी हर रोज कराते हैं। छात्र घर जाकर पढ़ाई करें इसके लिए वह होमवर्क देना नहीं भूलते। विद्यालय के प्रधानाध्यापक जयशंकर प्रसाद कहते हैं कि संतोष ने अपनी कार्यप्रणाली के बदौलत गुरु होने की सार्थकता को सिद्ध किया है। हमें उन पर गर्व है।
संतोष सर के फैन हैं बच्चे : पूर्व माध्यमिक विद्यालय पड़री के छात्र दीपू, खुशबू, नीलम, रेशमी, सपना, संदीप, अनामिका ने कहा कि संतोष सर कठिन से कठिन विषय को भी इतने सरल तरीके से पढ़ाते हैं कि बात आसानी से समझ में आ जाती है। हर रोज होने वाली सामान्य ज्ञान प्रतियोगिता से भी हमारा ज्ञान बढ़ता है। उनके जैसा शिक्षक हमें मिला इस बात की खुशी है। बचपन में जब आंख चली गई, तो लगा कि जीवन में कुछ बचा ही नहीं। परिवार ने हौसला दिया तो पढ़ाई पूरी कर शिक्षक बन गया। अब बच्चों के माध्यम से पूरी दुनिया देख रहा हूं। प्रयास है कि जो भी ज्ञान है, उसे बच्चों के बीच बांट दूं। मेरे पढ़ाए बच्चे आगे चल कर देश के काम आएं तो लगेगा कि मेरी आंखों की रोशनी वापस आ गई।
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