देवरिया : गाढ़ी कमाई से गढ़ रहे बच्चों का भविष्य : अपने वेतन से बनवाई बेन्च , स्कूल को ऑयल पेन्ट से रंगवाया , बच्चों को मिल रहा पढ़ाई का बेहतर माहौल
स्कूल में पुस्तकालय खोलने की तैयारी , प्रधानाध्यापक नरेंद्र सिंह बताते हैं कि बच्चों के शैक्षणिक विकास के लिए 15 अगस्त तक पुस्तकालय खोलने का विचार है। इसके साथ ही प्रोजेक्टर के जरिये ज्ञानवर्धक चीजों को दिखाने की योजना है। जुलाई में विद्यालय खुलने पर इसका इंतजाम किया जाएगा।
अपने वेतन से बनवाई बेंच, स्कूल को आयल पेंट से रंगवाया, बच्चों को मिल रहा पढ़ाई का बेहतर माहौल
बेहतर स्कूल कैंपस हो तो बने बात, प्राथमिक विद्यालय सरौरा प्रथम अन्य सरकारी विद्यालयों से कई मायने में बेहतर है। इस विद्यालय का कैंपस किसी उपवन से कम नहीं दिखता। पठन-पाठन का माहौल भी इसे अन्य विद्यालयों से अलग करता है। ऐसे में लोगों की धारणा भी अन्य विद्यालयों से जुदा है। विभागीय अधिकारी भी मानते हैं कि प्रधानाध्यापक के मेहनत का नतीजा है। सभी सरकारी विद्यालयों को भी इनसे प्रेरणा लेनी चाहिए। नरेंद्र सिंह कहते हैं कि बच्चों को संस्कारवान बनाना हमारा उद्देश्य है। बच्चे देश के भविष्य हैं, इसलिए उनके भीतर छिपी प्रतिभा को आगे लाने की हमारी कोशिश जारी है।
देवरिया सदर ब्लाक का प्राथमिक विद्यालय सरौरा प्रथम अन्य परिषदीय विद्यालयों से अलग दिख रहा है। प्रधानाध्यापक नरेंद्र सिंह अपनी गाढ़ी कमाई से न केवल बच्चों का भविष्य गढ़ रहे हैं, बल्कि विद्यालय को बेहतर तरीके से संवार रहे हैं। विद्यालय भवन को आयल पेंटिंग से रंगवाया है। उन्होंने प्रत्येक कमरे में कक्षा के मुताबिक टीचिंग लर्निंग मैटेरियल टीएलएम लिखवाया है। कक्षा दो से पांच तक के बच्चों को बैठने के लिए बेंच बनवाया है। इतना ही नहीं, विद्यालय परिसर फूलों और पौधों से सुगंधित हो रहा है। यहां सभी बच्चों को अच्छी शिक्षा मिल रही है। ज्यादातर अभिभावक अपने बच्चों को यहीं पढ़ाना चाहते हैं।वर्ष 2011 में नरेंद्र सिंह जब प्राथमिक विद्यालय सरौरा में तैनात हुए तो उस समय विद्यालय की दशा बहुत अच्छी नहीं थी। बच्चों को बेहतर माहौल देने के साथ ही पठन-पाठन के माहौल को बेहतर करने में जुट गए। सरकार की तरफ से बच्चों को एमडीएम के लिए थाली खरीदने की अभी योजना शुरू नहीं हुई थी।बच्चों की तकलीफ को देखते हुए अपने वेतन से थाली खरीदा। 25 जुलाई 2011 से बच्चे थाली में एमडीएम ग्रहण करते हैं। बच्चों के नाखून व बाल बड़े देखकर नाऊ बुलाकर नाखून व बाल कटवाते हैं। बाल गंदे होने पर शैंपू का भी इंतजाम करते हैं। बच्चों को बैठने में परेशानी को देख अपने वेतन से 22 सेट बेंच बनवाया है। कक्षा दूसरी से छठवीं तक बच्चे बेंच पर बैठकर पढ़ते हैं।पूरे विद्यालय कैंपस को आयल पेंट से रंगवाया। प्रत्येक कमरों की दीवारों पर कक्षावार टीचिंग लर्निंग मैटेरियल लिखवाया है। साथ ही महापुरुषों के चित्र भी बनवाए हैं। बाहर से देखने पर यह विद्यालय किसी उपवन से कम नहीं लगता। बच्चों के राइटिंग पर विशेष ध्यान दिया जाता है। हर शनिवार को होने वाले बाल सभा में ज्ञानवर्धक बातें बताई जाती हैं। सोमवार से शुक्रवार तक पढ़ाए गए विषयों के पाठों पर चर्चा कराते हैं। एक बच्चा सवाल करता है तो दूसरे से जवाब देने के लिए प्रोत्साहित करते हैं। बच्चों में राष्ट्रभक्ति की भावना पैदा करने के लिए प्रेरित करते हैं। बच्चे संस्कारित हों, इसके लिए विशेष ध्यान दिया जाता है। फूलों और पौधों से विद्यालय परिसर सजा है। बच्चे हरियाली के बीच शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं।
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