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Tuesday, September 5, 2017

हाथरस : कहीं दर दर भटकने वालों को मिल रहा ज्ञान, कहीं सरिता से निकली ज्ञान की गंगा, कोई जहाँ पढ़ा वहीँ पढ़ाकर पाया राष्ट्रपति पुरस्कार

मुरसान/हाथरस हिन्दुस्तान संवादजब किसी डूबते हुए को तिनके सहारा मिल जाए तो बुलंदियां छूने में देर नहीं लगती। बच्चों में शिक्षा की ज्योति जला रही ओमवती इन दिनों सारथी बनी हुई हैं। दर दर भटकने वालों को दीदी शिक्षा का ज्ञान दे रही हैं। मुरसान में शिक्षा का उजियारा फैल रहा है। वर्ष 2003 से अब करीब ढाई से बच्चों के हाथों में कलम किताब थमा चुकी हैं। जिन बच्चों के अभिभावकों पर पढ़ाई लिखाई के लिए पैसे का अभाव हैं। वह उनका खुद खर्चा भी वहन करती हैं। ऐसे मे वह बच्चों को लिए मील का पत्थर साबित हो रही है।संस्कारशाला में बनी सारथी: जन्म देने वाली मां को तो सब बच्चे जानते हैं, लेकिन शिक्षा के संस्कारशाला में बच्चों की सारथी बनी ओमवती गुप्ता को बच्चे दीदी व मां कहकर पुकराते हैं। जब उन्हें कोई बच्च रेलवे स्टेशन, बसस्टैंड, व सड़क पर घूमता हुआ या भीख मांगते हुआ बच्च मिल जाए तो वह उसके अभिभावकों से संपर्क करती है। बच्चों व अभिभावकों को पढ़ाई के लिए प्रोत्साहित करती है। साथ ही ड्रेस, बैग, किताब आदि दिलवाती है। बच्चों को निकट के विद्यालय में प्रवेश दिलाती है। उनका कहना है कि बच्चें पढेंगे तो देश का भविष्य बनेगा। जो देश का नाम उच्च करेगा। बच्चों को लाती, छोड़ने भी जाती : उन्होंने बताया कि वह पहले बीआरसी पर तैनात थी। इन दिनों प्राथमिक विद्यालय नगला धर्मा में है। उन्होने किला मढ़ैया के आधा दर्जन से अधिक बच्चों को अपने विद्यालय प्रवेश दिया है। सुबह बच्चों को खुद स्कूल के लिए साथ बुलाकर लाती है। वापस छोड़ने भी जाती हैं। वह गरीब और असहाय बच्चों को शिक्षित कर उनके जीवन के उत्थान में लगी हैं। ओमवती ऐसे गरीब और असहाय बच्चे जिनके जीवन में दो जून की रोटी के ही लाले थे, ऐसे ही करीब 250 बच्चों को वह शिक्षित बना चुकी हैं।ऐसे में ओमवती गरीब बच्चों के लिए एक मिसाल है उनका कहना कि जितना फायदा बच्चों को मिल सकता है उतना फायदा वह देने की काशिश करती है
प्रमोद सिंह ’हाथरस 1मेहनत व लगन के बूते जिले के शिक्षा जगत में सरिता शर्मा बड़ा नाम बनकर उभरी हैं। जिस प्राथमिक विद्यालय में उनकी तैनाती है, उसे उन्होंने खुद के प्रयासों से आधुनिक रूप दिया है। पूरी तरह से सीबीएसई बोर्ड के स्कूल जैसा माहौल बना दिया है। यही वजह है कि इस विद्यालय को जिले में बच्चों की सर्वाधिक संख्या का गौरव मिला है। यहां जब भी अफसर आकस्मिक निरीक्षण को पहुंचे, सरिता की तारीफ ही करते नजर आए। इसका सिला भी मिला। समय से पहले उन्हें इसी विद्यालय की हेड शिक्षिका बना दिया गया। 1परिचय : मूलरूप से सिकंदराराऊ की रहने वाली सरिता के पिता वीरेंद्र कुमार शर्मा सरस्वती विद्या मंदिर में प्रधानाचार्य रहे। सरिता की प्रारंभिक शिक्षा सिकंदराराऊ में ही हुई। फिर उन्होंने बीएड, परास्नातक व बीटीसी की। वर्ष 2008 में उनकी शादी यहां नवीपुर में जितेंद्र शर्मा के साथ हो गई। शादी के बाद भी सरिता ने अध्ययन जारी रखा और भविष्य संवारने में लगी रहीं। 1पति से मिली प्रेरणा : सरिता को राजकीय इंटर कॉलेज व महाविद्यालय में भी नौकरी के अवसर मिले, मगर पति जितेंद्र शर्मा बेसिक शिक्षा विभाग में सहायक अध्यापक के पद हैं सो उन्होंने भी पति से प्रेरित होकर बेसिक शिक्षा विभाग को ही चुनने का मन बना लिया। वर्ष 2013 में सहायक अध्यापक के पद पर मुरसान ब्लाक के प्राथमिक विद्यालय, कोटा में उन्हें तैनाती मिल गई।1गरीब बच्चों की मदद : प्राथमिक विद्यालय में तैनाती के बाद वे स्कूल आने वाले गरीब बच्चों से रूबरू हुईं तो मन द्रवित होने लगा। वे अपने वेतन से गरीब बच्चों को टाई-बेल्ट, आइकार्ड आदि उपलब्ध कराने लगीं। इससे स्कूल में बच्चों की संख्या बढ़ी। इसके बाद उन्होंने स्कूल परिसर का सुंदरीकरण कराना शुरू किया। बाउंड्रीवाल से लेकर वृक्षारोपण तक कराया। आधुनिक ब्लैकबोर्ड आदि के बंदोबस्त किए और सरकारी प्राइमरी स्कूल को पूरी तरह से सीबीएसई बोर्ड के स्कूल जैसे माहौल में ढाल दिया। समय-समय पर सांस्कृतिक कार्यक्रम भी वे स्कूल में कराती हैं। 1डीएम ने दी थी शाबाशी : वर्ष 2014 में तत्कालीन जिलाधिकारी शमीम अहमद ने कोटे के पूर्व माध्यमिक विद्यालय व प्राथमिक विद्यालय का निरीक्षण किया था। तब लापरवाही मिलने पर जूनियर विद्यालय के दो शिक्षकों को निलंबित कर दिया। वहीं प्राथमिक विद्यालय में बेहतर व्यवस्था मिलने पर अकेली शिक्षिका सरिता शर्मा की तारीफ की। इसके बाद भी कई अधिकारी इस विद्यालय में गए और बगैर सराहना किए न रहे। इसी का नतीजा रहा कि विभागीय अधिकारियों ने पद खाली होने पर शिक्षिका को सहायक की जगह हेड शिक्षिका की जिम्मेदारी दे दी। 

हाथरस : यह एक ऐसे शिक्षक की कहानी है, जिन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में समर्पित भाव से सेवाएं देकर कई अवार्ड पाए और राष्ट्रपति पुरस्कार तक पहुंचे। वे सिकंदराराऊ के जिस स्कूल में पढ़े, वहीं पढ़ाया और उस स्कूल की दशा बदल डाली। अब सेवानिवृत्ति के बाद भी उनका इस स्कूल से मोह भंग नहीं हुआ है। वे लगातार स्कूल पहुंचते हैं और बच्चों को पढ़ाते हैं। 1परिचय : सिकंदराराऊ के मोहल्ला लश्करगंज के सुभाष चंद्र शर्मा की प्रारंभिक शिक्षा कस्बे के ही जूनियर हाईस्कूल में हुई। तब उनके पिता लक्ष्मीनारायण शर्मा यहां शिक्षक थे। बाद में तीन विषय हंिदूी, राजनीति शास्त्र और इतिहास में परास्नातक की डिग्री हासिल की। एडी बेसिक से दीक्षा मुक्ति डिग्री मिलने के बाद 26 अक्टूबर 1988 में कस्बे के प्राइमरी स्कूल हुरमतगंज में सहायक अध्यापक की नौकरी मिली। इसके बाद उनकी तैनाती उसी जूनियर हाईस्कूल में हो गई, जहां उन्होंने शिक्षा ग्रहण की थी और उनके पिता पढ़ाते थे।1सुधारी स्कूल की दशा : जूनियर हाईस्कूल में तैनाती मिलते ही सुभाष को वे दिन याद आए जब वे यहां पढ़ते थे। बस उन्होंने इस स्कूल को उत्कृष्ट बनाने की मन में ठान ली। अपने पिता की स्मृति में विद्यालय में हाल, बाउंड्रीवाल, पुस्तकालय, प्रयोगशाला आदि बनवाईं। वर्ष 2012 में बेहतर कार्य करने पर तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने उन्हें सम्मानित किया। इसी साल मार्च माह में सेवा विस्तार का लाभ खत्म हो जाने पर वे रिटायर हो गए। इस दौरान उन्हें और भी तमाम अवार्ड मिले।1गरीब बच्चों की सहायता : राष्ट्रपति पुरस्कार प्राप्त शिक्षक ने रिटायर होने के बाद भी शिक्षा का अलख जगाना बंद नहीं किया। वे नियमित विद्यालय पहुंचते हैं और बच्चों को पढ़ाते हैं। पढ़ाई में कमजोर व गरीब बच्चों पर उनका विशेष ध्यान रहता है। जो बच्चे पैसों के अभाव में कोचिंग नहीं ले पाते, उन्हें वे परीक्षा के समय घर-घर जाकर पढ़ाते हैं।1जनजागरण भी : आज भी गरीबी के कारण जो बच्चे शिक्षा की मुख्य धारा से दूर हैं, उन्हें देखकर रिटायर्ड शिक्षक का मन कराह उठता है। ऐसे बच्चे जो होटल, ढाबों पर मजदूरी करके परिवार का सहारा बने हुए हैं उनके अभिभावकों से मिलकर बच्चों को पढ़ाने के लिए प्रेरित करते हैं। स्कूल चलो अभियान के तहत अभिभावकों को जागरूक करके उनके बच्चों को विद्यालय में प्रवेश दिलाते हैं। 1राष्ट्रपति पुरस्कार प्राप्त शिक्षक सुभाषचंद्र शर्मा स्कूल में बच्चों के साथ ’ जागरणबेहतर कार्य पर सम्मान 1राष्ट्रपति पुरस्कार प्राप्त शिक्षक को पूर्व एमएलए सुरेश प्रताप गांधी ने सम्मानित किया। डीआइएएम विश्वविद्यालय के अध्यक्ष डॉ. ओएस साचू ने भी उन्हें सम्मानित किया। इंडियन पीस विश्वविद्यालय, चेन्नई ने उन्हें डॉक्टर्स आफ ऑनर्स की उपाधि दी।’सिकंदराराऊ के सुभाषचंद्र शर्मा ने शिक्षा के क्षेत्र में पाए कई अवार्ड1’रिटायर होने के बाद भी स्कूल से लगाव, पहुंचते हैं बच्चों को पढ़ाने



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