शिक्षा का अधिकार कानून स्कूल नहीं मानते, इस बात से प्रशासन बेखबर है। बच्चे के साथ इतना कुछ हो गया लेकिन जिम्मेदार बेखबर है। अधिकारियों पर दायित्व है कि दुर्बल आय वर्ग के बच्चों के दाखिले सुनिश्चित कराएं लेकिन वह अपने दायित्वों से मुंह मोड़ रहे हैं। महानगर के पुराना घोसियाना के रहने वाले मो. शान को एक माह पढ़ाने के बाद डॉ. वीरेंद्र स्वरूप स्कूल ने बाहर का रास्ता दिखा दिया। स्कूल प्रबंधतंत्र ने शैक्षिक मूल्यों की परवाह करनी उचित न समझी और एलकेजी-2 के बच्चे के लिए स्कूल के दरवाजे बंद कर दिए। इसी तरह कई और स्कूल इन्कार कर चुके हैं लेकिन सख्त कार्रवाई नहीं हो पा रही है। आरटीई के तहत दुर्बल आय वर्ग के बच्चों के दाखिले के मामले में हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने सरकारी मशीनरी व स्कूलों पर शिकंजा कसते हुए फटकार लगाई थी। न्यायालय ने कहा कि बच्चे फुटबाल नहीं हैं जिसे इधर उधर किया जाता रहे। उनके दाखिले में किसी तरह की रुकावट न आए इसकी जिम्मेदारी संबंधित अधिकारियों की है। आरटीई के तहत बच्चों के दाखिले के संबंध में देश की सर्वोच्च अदालत की फटकार से भी शायद शिक्षा विभाग के अधिकारी बेखबर हैं। बच्चे के पीड़ित पिता की ओर से मामले की शिकायत बेसिक शिक्षा अधिकारी से की गई। लेकिन दो दिन बीतने पर भी ऐसे तुगलकी फरमान जारी करने वाले स्कूलों पर कार्रवाइ शून्य है। फिलहाल अभी कई नामचीन स्कूलों ने भी आरटीई के तहत दाखिला नहीं दिया है लेकिन प्रभावी कार्रवाई न हो पाने के कारण स्कूलों के हौसले बुलंद हो रहे हैं
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