केवल अध्ययन-अध्यापन की स्थली नहीं है, बल्कि यह व्यक्तित्व निर्माणशाला भी है। इसके लिए शिक्षकों को बच्चों पर विशेष प्रयास करने होंगे। इन प्रयासों में प्रमुख है कि बच्चे स्वयं को पहचाने, लेकिन यह उतना आसान नहीं है। बहुत बार हममें कौन सी क्षमताएं है क्या खूबियां हैं क्या कमजोरियां हैं इसके बारे में खुद को मालूम नहीं होता है। सबसे पहले अपने को जानना जरूरी होता है। तभी अपनी बेहतरी के लिए क्या करना है, समझ में आता है।
राज्य शैक्षिक प्रबंधन एवं प्रशिक्षण संस्थान (सीमैट) उप्र इलाहाबाद के निदेशक संजय सिन्हा ने कस्तूरबा गांधी आवासीय बालिका विद्यालय के शिक्षक/शिक्षिकाओं के प्रशिक्षण के प्रथम चरण की समाप्ति पर यह बातें कहीं। सिन्हा ने कहा कि बच्चों की प्रतिभा की पहचान करना तथा उसमें निखार लाना, यह अध्यापक का दायित्व ही नहीं है, बल्कि यह अध्यापक की प्रतिष्ठा भी बढ़ाता है। बच्चे अपना विकास कर जीवन में जिस भी स्थान पर पहुंचते हैं वे अपने अध्यापक को जरूर स्मरण करते हैं, विशेष रूप से उन अध्यापकों को जिसका योगदान उनके भविष्य निर्माण में रहा हो। कार्यक्रम समन्वयक प्रभात मिश्र ने कहा कि प्रशिक्षण की सफलता इस बात में है कि प्रशिक्षण से प्राप्त ज्ञान को अध्यापिकाएं कक्षा कक्ष तक कितना उतारती हैं। विभागाध्यक्ष, डॉ. अमित खन्ना, समन्वयक अविनाश वर्मा का योगदान रहा है। पवन सावंत ने कहा कि प्रशिक्षण की सफलता में प्रशिक्षकों के साथ-साथ, इससे जुड़े अन्य अभिकर्मियों का भी उल्लेखनीय योगदान होता है। विशिष्ट कौशल विकास विषय पर आधारित इस प्रशिक्षण में इलाहाबाद, प्रतापगढ़, जौनपुर, मीर्जापुर, कौशांबी, भदोही, फतेहपुर, गौतमबुद्ध नगर के कुल 86 प्रतिभागी मौजूद रहे।
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