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Saturday, June 24, 2017

उपेक्षा पड़ी भारी : यूपी बोर्ड में शामिल कई क्षेत्रीय भाषाओं की हालत पतली

⚫ हाईस्कूल में असमी, उड़िया, तमिल और मलयालम का परिणाम शून्य

⚫ इंटरमीडिएट में मराठी और उड़िया भाषा में कोई पंजीकरण नहीं



इलाहाबाद : हाईस्कूल और इंटरमीडिएट की परीक्षाओं में कई क्षेत्रीय भाषाओं की हालत पतली हो गई है। 10वीं स्तर पर 21 में से एक भाषा में पंजीकरण शून्य है। दो भाषाओं में केवल एक छात्र पंजीकृत हुआ व दो अन्य भाषाओं में पांच पांच छात्र का पंजीकरण है। इसी प्रकार इंटरमीडिएट में शामिल 20 भाषाओं में दो ऐसी हैं जिनमें किसी छात्र का पंजीकरण ही नहीं है। कुछ में एक से तीन तक पंजीकरण है। हैरानी वाली बात जिन भाषाओं एक से पांच छात्र पंजीकृत हैं वह परीक्षा भी पास नहीं कर पाए हैं। 



उप्र माध्यमिक शिक्षा परिषद के हालिया हाईस्कूल और इंटर के परिणाम में कई भारतीय भाषाओं में अभ्यर्थियों की संख्या शून्य हो चुकी है। इंटरमीडिएट कक्षाओं में भाषाओं की स्थिति पर नजर डालें तो इसमें 20 भाषाएं सूचीबद्ध हैं। गुजराती, मराठी, बंगला, असमी, उड़िया कन्नड़, तमिल, तेलगू, मलयालम, सिंधी और नेपाली में सबसे कम परीक्षार्थी पंजीकृत हुए हैं। इनमें छात्रों का पंजीकरण एवं उनका उत्तीर्ण प्रतिशत काफी दयनीय है। गुजराती में प्रदेश में मात्र एक छात्र पंजीकृत हुआ। लेकिन उसने परीक्षा नहीं दी। इसी प्रकार बंगला में मात्र 15 छात्र पंजीकृत हुए इसमें मात्र पांच ने परीक्षा दी, पांचों उत्तीर्ण हुए। 




आसामी में एक छात्र पंजीकृत हुआ, परन्तु उसने परीक्षा नहीं दी। उड़िया में कोई भी छात्र पंजीकृत नहीं हुआ। कन्नड़ में 12 छात्र पंजीकृत हुए। इसमें मात्र एक छात्र ने परीक्षा दी, वह भी फेल हो गया। तमिल में नौ छात्र पंजीकृत हुए। एक परीक्षा में शमिल हुआ परन्तु अनुत्तीर्ण हो गया। तेलगू में मात्र 1 छात्र पंजीकृत हुआ। परन्तु उसने परीक्षा नहीं दी। मलयालम में मात्र एक छात्र पंजीकृत हुआ। वह पास हो गया। नेपाली में 3 पंजीकृत हुए और 1 परीक्षा में शामिल हुआ। कुछ बेहतर स्थिति वाली भाषाओं में अरबी विषय में 131 पंजीकृत हुए, 116 परीक्षा में शामिल हुए, 112 पास हुए। फारसी में 69 पंजीकृत, 64 परीक्षा में शामिल और 55 पास हुए। पालि में 88 पंजीकृत हुए। 85 ने परीक्षा दी। 74 पास हुआ। सिंधी में 61 छात्र पंजीकृत रहे। इसमें 42 ने परीक्षा दी, सभी पास हुए। पंजाबी में 102 छात्र-छात्रएं पंजीकृत हुए थे। इसमें 87 ने परीक्षा दी, 86 पास हुए।




 वहीं हाईस्कूल की बात करें तो पांच ऐसी भाषाएं हैं जिसमें छात्रों का पंजीकरण शून्य से पांच रहा। चार भाषाओं का परीक्षाफल शून्य है। आसामी में कोई भी पंजीकरण नहीं हुआ। उड़िया और मलयालम में मात्र 1-1 छात्र पंजीकृत हुआ, वह भी फेल हो गए। इसी प्रकार तमिल और नेपाली में मात्र पांच पांच छात्र पंजीकृत हुए। दो छात्रों ने परीक्षा दी लेकिन फेल हो गए। नेपाली में मात्र तीन छात्र शामिल हुए, एक पास हुआ। गुजराती, कश्मीरी और तेलगू भाषाओं की स्थिति कुछ ठीक रही। इनमें क्रमश: 87, 99 और 29 छात्र पंजीकृत हुए। इससे अच्छी स्थिति में अरबी में 385, पालि में 242 एवं फारसी में 194 पंजीकरण सूबे स्तर पर रहे।



80 के दशक तक लोग अपने प्रांत की भाषाओं के प्रति संवेदनशील हुआ करते थे। तब उनकी संख्या स्कूलों हुआ करती थी। बाद में छात्र और अभिभावक क्षेत्रीय भाषाओं के प्रति उदासीन होते गए। गत 20 वर्षो में इन भाषाओं की स्थिति चिंताजनक है। स्थिति ये है कि राजकीय इंटर कालेज एवं सरकारी सहायता प्राप्त इंटर कालेजों क्षेत्रीय भाषाओं को समाप्त ही कर दिया जा रहा है। छात्र न होने की स्थिति में शिक्षक भर्ती नहीं हो रहे है।  डीके सिंह, प्रधानाचार्य-राजकीय इंटर कालेज इलाहाबाद।

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