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Friday, January 1, 2016

जमाल के कमाल को सबका सलाम, उसरू गांव बना बेसिक शिक्षा में बदलाव का ध्वजवाहक, अभिनव प्रयोगों से बनी अलग पहचान

📌 विषयों के साथ दी जाती है संगीत की शिक्षा

फैजाबाद ।  जब सरकार के बेसिक शिक्षा को सुधारने के सारे जतन फेल हो गए, सारी उम्मीदों पर पानी फिर गया हो। ऐसे समय में सदर तहसील के मसौधा ब्लॉक का एक सामान्य सा गांव उसरू नई उम्मीद बनता दिखे तो बरबस ही याद आता है रवींद्र नाथ टैगोर का ‘एकला चलो रे’। उसरू गांव की प्रधानाध्यापक रितु जमाल ने न तो सुविधाओं का इंतजार किया और न ही लोगों से मदद मांगी। सरकार से मिली सुविधाओं से ही स्कूल का पूरा ढर्रा बदल दिया। आज हर कोई उनके कमाल को सलाम करता है।

रितु जमाल अकेले ही उम्मीद की ध्वजवाहक बन निकल पड़ीं साथी शिक्षकों में भी प्रेरणा जगी और देखते ही देखते स्कूल की तस्वीर बदल गई। आज यहां के बच्चे कांवेंट स्कूल को टक्कर देते दिखते हैं। यह एक ऐसा परिषदीय विद्यालय बन गया जहां भविष्य की उम्दा तस्वीर गढ़ी जा रही है। आज फर्राटेदार अंग्रेजी बोलना और लिखना प्राथमिक विद्यालय उसरू के बच्चों की पहचान है। कान्वेंट स्कूलों की तरह ही इस विद्यालय में कक्षा एक व दो के बच्चों को प्ले-वे से पढ़ाया और सिखाया जाता है।

इसी साल अप्रैल माह में विद्यालय में प्रधानाध्यापक के तौर पर तैनाती मिलने के साथ ही रितु जमाल ने प्रयोगों का सिलसिला आरंभ किया, जो अब भी जारी है। इसी के तहत उन्होंने बच्चों के लिए शिक्षा के साथ-साथ निश्चित अंतराल पर कार्यशाला का आयोजन शुरू किया है, जिसमें बच्चों को ‘वेस्ट मटीरियल’ से खिलौने व अन्य दूसरी उपयोगी वस्तुएं बनाना सिखाया जाता है। इसका मकसद बच्चों को शुरुआती दौर से ही रचनात्मक बनाना है। यही नहीं कार्यशाला में विशेषज्ञों को बुलाकर कलाकृतियां बनाना व चित्रकारी सिखाई जाती है। खास बात यह है कि शिक्षक और छात्र-छात्रएं सभी अंग्रेजी में ही बातचीत करते हैं। विद्यालय में बच्चों को पढ़ाई के साथ-साथ संगीत की शिक्षा भी दी जाती है। रितु जमाल ने विद्यालय की कमान संभालने के बाद से ही नृत्य व संगीत की नियमित रूप से कक्षाएं आरंभ कराई है। इसका मकसद बच्चों को अन्य विधाओं में भी पारंगत करना है और पढ़ाई को रुचिपूर्ण बनाना है। बच्चों में पर्यावरण की जागरूकता विकसित करने के लिए प्रमुख अवसरों पर पौधरोपण कराया जाता है। विद्यालय में अब तक ढाई सौ पौधे लगाए गए हैं। यहां से पहले मिल्कीपुर के चकनथा विद्यालय में तैनाती के दौरान भी इन्हीं प्रयोगों को कराया था और करीब पांच सौ पौधों को भी रोपित कराया था। प्रधानाध्यापक रितु इसका श्रेय सभी शिक्षकों को देती हैं।

दिया नया नारा : प्रधानाध्यापक रितु जमाल ने नया नारा भी दिया है। उन्होंने ‘विद्यालय मेरा दूसरा घर, अध्यापक मेरे मित्र’ का नारा देकर बच्चों को स्कूल से जोड़ा। इसी का नतीजा है कि प्राथमिक विद्यालय उसरू में बच्चों की संख्या डेढ़ सौ है और रोजाना उपस्थिति नब्बे फीसदी तक रहती है।

बच्चों को कराए जाते हैं टूर : प्राथमिक विद्यालय उसरू के बच्चों को टूर भी कराया जाता है। प्रधानाध्यापक ने इसी साल छात्र-छात्रओं को अन्यत्र होने वाले आयोजनों में ले जाने का सिलसिला आरंभ किया। जिससे बच्चों को सैद्धांतिक के साथ-साथ प्रायोगिक जानकारी भी दी जा सके।

मनाए जाते हैं सभी तीज-त्योहार : प्राथमिक विद्यालय उसरू में रक्षा बंधन, दीपावली, ईद समेत सभी धर्मों के त्योहारों को मनाया जाता है, जिससे छात्र-छात्रओं की रुचि विद्यालय आने में बनी रहे और उत्सव भी हो।

सभी बच्चों के पास है आइ-कार्ड : अक्सर प्राथमिक विद्यालयों के बच्चों के पास यूनीफार्म नहीं होने की खबरें सुर्खियां बनती हैं, लेकिन प्राथमिक विद्यालय उसरू के सभी बच्चों को यूनीफार्म के साथ-साथ आइ-कार्ड, टाई व बेल्ट का भी वितरण किया गया है। साथ ही इस नियम को भी सख्ती से लागू किया गया है कि सभी बच्चों को अपना आइ-कार्ड रोजाना साथ लाना होगा और यूनीफार्म में ही आना होगा। प्रधानाध्यापक रितु जमाल कहती हैं कि इस प्रकार से बच्चों को अनुशासित भी रखा जाता है।

अधिकारी मानते हैं गौरव : बेसिक शिक्षा अधिकारी प्रदीप कुमार द्विवेदी का कहना है कि रितु जमाल के अनूठे प्रयोगों से ही विद्यालय की जिले में अलग पहचान बनी है। यह निश्चित रूप से सभी के लिए उदाहरण है और उनके प्रयोगों को अन्य विद्यालयों में भी लागू करने का प्रयास किया जाएगा। ये गौरव की बात है।

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