रायबरेली। इसके हिसाब-किताब पर तो सबकी नजर रहती है कि एमडीएम बन रहा है या नहीं पर प्रति बच्च कितना राशन दिया गया, इस तरफ किसी का ध्यान नहीं है। नियमानुसार, सौ ग्राम गेहूं और चावल हर बच्चे के लिहाज से गेहूं-चावल मिलना चाहिए। ‘हिन्दुस्तान’ की पड़ताल में यह सामने आया कि ब्लॉकों से स्कूलों को प्रति बच्चा सौ ग्राम गेहूं-चावल दिया ही नहीं जाता। मसलन, डीह ब्लॉक के इस स्कूल को लीजिए-यहां जनवरी-फरवरी-मार्च के लिए 52 किलो 800 ग्राम गेहूं और 105 किलो छह सौ ग्राम चावल दिया गया। इस स्कूल में बच्चे थे 119। अब इसी ब्लॉक के दूसरे स्कूल का जायजा लीजिए। यहां 63 किलो 800 ग्राम गेहूं और 27 किलो 600 ग्राम चावल दिया गया। इस स्कूल में मार्च में कुल बच्चों की उपस्थिति है एक हजार 597। प्रति बच्च सौ ग्राम राशन के इस लिहाज से स्कूल को एक कुंतल 60 किलो गेहूं-चावल मिलना चाहिए। मिला सिर्फ एक कुंतल। यहां प्रधान ने अपने प्रभाव से एक कुंतल गेहूं यह कहकर इस स्कूल को दिया कि जब राशन आएगा तब एडजस्ट कर लेंगे। ऐसे में क्या स्कूल आने वाले सभी बच्चों को मध्यान्ह भोजन मिलना संभव है, आप खुद सोचिए।
बीती 16 अप्रैल को दीनशाह गौरा ब्लाक के प्राथमिक विद्यालय पूरे राठौरन पहुंचे बीएसए को एक भी बच्चा मौजूद नहीं मिला। हेडमास्टर भी गायब थे।
रायबरेली। इस बार अप्रैल महीना मई-जून को मात कर रहा है। कई गुरुओं और अभिभावकों ने यह बात उठाई कि स्कूल का टाइम चेंज होना चाहिए। नौ बजे ही पारा इतना चढ़ जाता है कि निकलना मुश्किल लगने लगता है। दोपहर एक बजे छुट्टी में घर लौटना बेहद कठिन है। जरूरी है कि महकमा और जिला प्रशासन स्कूल टाइमिंग पर एक बार फिर सोचे। इनका सुझाव है कि सुबह सात से दस या 11 बजे तक ही स्कूल होना चाहिए।
रायबरेली। तवे सरीखी जलती धरती पर पैर रखने मतलब अपने को जला लेना है। पर आप यहजानकर हैरत में पड़ जाएंगे। कि प्राइमरी स्कूलों के कई बच्चे नंगे पैर स्कूल आते-जाते हैं। ‘हिन्दुस्तान’ की पड़ताल टीम ने खुद ऐसे कई बच्चे देखे जिनके पैरों में चप्पले नहीं थीं। प्राइमरी स्कूल जगदीशुपर मेंनिखिल नंगे पैर आया था। उसकी चप्पलें टूट गईं और पान की दुकान चलाने वाले पिता कमलेश उसे नई चप्पल खरीद नहीं पाए। वह आजकल नंगे पैर ही स्कूल आ-जा रहा है। आदित्य की चप्पल स्कूल में ही खो गईं। उसके पिता भी गरीबी के चलते उसे नई चप्पल खरीद नहीं पा रहे। आरती-ज्योति इसह स्कूल की कक्षा-पांच की ऐसी छात्रएं हैं जिनके पास जरूरत का कुछ भी नहीं है।। ऐसी ही एक बच्ची खुशी भी नंगे पैर ही स्कूल आई।
रायबरेली। भीषण गर्मी में सब कुछ जल रहा है लेकिन अधिकांश प्राइमरी स्कूलों में एमडीएम के चूल्हे ठंडे हैं। कारण, एफसीआई से कोटे की उठान न होना है। हालांकि एमडीएम के जिला समन्वयक आशीष का दावा है केवल 31 स्कूलों में ही भोजन नही बन पा रहा। इसके उलट ‘हिन्दुस्तान’ की पड़ताल कहती है कि जिले के आधे से अधिक स्कूलों में राशन है ही नहीं। कई जगह कनवजर्न कास्ट भी उपलब्ध नहीं है।
42 पार पारे से प्राइमरी शिक्षा भी मुरझा सी गई है। स्कूलों में बच्चों की उपस्थिति बिलकुल न के बराबर है। सहालग और गेहूं की कटाई-मड़ाई भी इसमें सहायक सिद्ध हो रहे हैं। ऐसे में पब्लिक स्कूलों की तर्ज पर शुरू किया गया प्राइमरी स्कूलों का नया शिक्षा सत्र बेमानी ही साबित हो रहा है। प्राइमरी स्कूलों का नया शिक्षा सत्र एक अप्रैल से शुरू हो गया है। 20 मई को स्कूलों में गर्मी की छुट्टी इसलिए तय की गई थी कि उस समय गर्मी तेज हो जाती है। इस बार अप्रैल में ही पड़ रही गर्मी मई-जून को मात कर रही है। गर्मी का ही असर है कि प्राइमरी स्कूलों में बच्चों का आना एकदम से कम हो गया है। स्कूलों के सभी कक्षों के ताले भी नहीं खुलते। स्कूलों में गुरुजी मेज-कुर्सी पर जमे बच्चों के नामांकन की तैयारी बनाते रहते हैं। हालांकि, अधिकांश स्कूलों में बच्चों के न आने से गुरुजी भी गैरहाजिर हो जाते हैं। निरीक्षण पर लगातार निकल रहे बीएसए खुद इस स्थिति को देख-सुन रहे हैं। कहीं-कहीं तो वह शिक्षकों के वेतन काटने के आदेश भी जारी कर रहे हैं।
डीह ब्लॉक का प्राइमरी स्कूल अयासपुर डीही। यहां रजिस्टर्ड तो 114 बच्चे हैं पर आए थे सिर्फ नौ। नौ में भी दो बच्चे आपस में लड़ने के बाद बरामदे में ही सो गए।
प्राइमरी स्कूल अयासपुर डीही में बरामदे में हो रही पढ़ाई और सो रहे दो बच्चे
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