घर से मेरी बिटिया को 30 किमी स्कूल जाना पड़ता है और मेरी बहू तो 42 किमी जाती है। बस स्टैंड के बाद तीन किमी तो पैदल चलना पड़ता है। इस बार यहां से स्थानान्तरण नहीं हुआ तो इलाहाबाद जाने से भी गुरेज नहीं करूंगा। ज्यादातर शिक्षकों के घर-घर में यही कहानी चल रही है। दरअसल, स्थानान्तरण संबंधी सहारनपुर के अधिकार इलाहाबाद में कैद होने के कारण ये हालात बने हैं। बेसिक स्कूलों में स्थानांतरण को इस बार शिक्षक और परिजन साम, दाम, दंड और भेद कोई भी नीति अपनाने को तैयार है।बेसिक शिक्षा परिषद के अंतर्गत परिषदीय प्राथमिक व जूनियर स्कूलों में सहायक अध्यापक व प्रधानाध्यापकों को वार्षिक स्थानान्तरण नीति का बेताबी से इंतजार है। शिक्षक राजनीति के माहिर कई नेता इलाहाबाद से अपना स्थानान्तरण आदेश लाने में कामयाब हो गए थे। ग्रीष्मावकाश के बाद स्कूल खुलने में 11 दिन शेष हैं। महिला शिक्षकों के परिजन विभाग की परिक्रमा कर रास्ते की खोज करने में लगे हैं। कई को सीधा जवाब मिलता है कुछ दमखम रखते हो तो सीधे इलाहाबाद पहुंच जाओ। बताते हैं कि सचिव बेसिक शिक्षा परिषद इलाहाबाद को जिला स्तरीय स्थानान्तरण का अधिकार है और कई शिक्षक तो नामी बाबुओं को खजाना सौंपकर नि¨श्चत हो चले है कि इस बार उन्हें मनचाहा स्कूल मिल ही जाएगा।तीन दर्जन से अधिक के हुए स्थानान्तरण1विभागीय सूत्रों की मानें तो जनवरी से अब तक तीन दर्जन से अधिक शिक्षक इलाहाबाद से अपने स्थानांतरण कराने में कामयाब रहे हैं। हालांकि विभाग इस संख्या को अधिक बता रहा है। इतना साफ है कि स्थानान्तरण सचिव बेसिक शिक्षा परिषद इलाहाबाद के आदेश पर ही हुए है। बताते चलें कि जिले में कार्यरत सात हजार शिक्षकों में से 1500 शिक्षक स्थानान्तरण कराने की जोड़तोड में लगे है। बताते चले कि प्राथमिक स्कूलों में सृजित पदों के सापेक्ष 95 तथा जूनियर स्कूलों में 65 शिक्षक अधिक है।अंतर्जनपदीय स्थानान्तरण की आस जिले में कार्यरत करीब 1000 शिक्षक गैर जिलों के निवासी है। ये भी अपने स्थानांतरण की बाट जोह रहे हैं। नीति कब घोषित होगी इसे लेकर दिनोंदिन इनकी बैचेनी भी बढ़ रही है।
No comments:
Write comments