सरकारी कर्मचारियों के लिए वैसे तो निलंबन एक बड़ी सजा के रूप में देखा जाता है। इससे कर्मचारी की नौकरी पर प्रभाव पड़ता है। उसके सर्विस काल में पदोन्नति से लेकर अन्य विभागीय लाभ में व्यवधान पड़ता है लेकिन बेसिक शिक्षा विभाग में निलंबन शिक्षकों को सजा नहीं एक वरदान जैसा है। निलंबन की अवधि में शिक्षक अपने व्यक्तिगत कार्य पूरे करते हैं और जब जरूरत होती है तो सवेतन बहाल हो जाते हैं। इससे शिक्षण कार्य तो प्रभावित होता है पर शिक्षक को कोई नुकसान नहीं होता। विभाग में हो रहे खेल की शासन तक आवाज भी पहुंची और कुछ दिन पूर्व निलंबन और बहाली का बेसिक शिक्षा निदेशक ने पूरे प्रदेश से ब्योरा तलब किया था पर उसे भी नहीं भेजा गया है। सरकारी कर्मचारी सेवा अधिनियम के तहत प्रावधान है कि अगर सरकारी कर्मचारी सेवा नियमों की अवहेलना करता है तो उसके खिलाफ वेतन रोकने से लेकर निलंबन व बर्खास्तगी तक की कार्रवाई की जा सकती है। इस कार्रवाई का असर सरकारी कर्मियों की सेवा में पड़ता है और उसको पदोन्नति आदि के लाभ से वंचित रह जाता है। वहीं बेसिक शिक्षा विभाग में इसका उल्टा है। शिक्षक को मनचाहा विद्यालय चाहिए तो विभागीय मिलीभगत से उसे निलंबित कर दिया जाता है। उसके बाद प्रशासनिक स्तर पर स्थानांतरित कर सजा के रूप में मनचाहा विद्यालय दे दिया जाता है। निलंबन के साथ ही उसे दूसरे स्कूल से संबद्ध कर दिया जाता है, जहां पर शिक्षक को अपनी उपस्थित दर्ज करानी होती है। निलंबन की अवधि में शिक्षक को जीवनयापन भत्ता दिया जाता है। प्रावधान के अनुसार निलंबित शिक्षक की सेवा पुस्तिका में उसकी इस सजा का अंकन किया जाना चाहिए और इसकी एक प्रति वित्त एवं लेखाधिकारी कार्यालय को प्रेषित की जानी चाहिए, ताकि अगर कभी शिक्षक को पदोन्नति सहित विभागीय लाभ दिया जाना है तो सेवा पुस्तिका में दर्ज दंड को ध्यान में लेकर उस पर रोक लगाई जाए लेकिन विभाग में यह प्रक्रिया सिर्फ पटल सहायक से शुरू होकर खंड शिक्षा अधिकारी के पास जाकर समाप्त हो जाती है। वहीं शिक्षक जब तक चाहता है तब तक निलंबित रहता है, उसके बाद उसको सवेतन बहाल कर पूरा वेतन जारी कर दिया जाता है। बीएसए मसीहुज्जमा सिद्दीकी का कहना है कि निलंबन कार्रवाई के लिए ही किया जाता है। जो जांच में निदरेष मिलता उसे ही वेतन के साथ बहाल किया जाता है। अगर कुछ गड़बड़ी मिली तो किसी को प्रतिकूल प्रविष्टि तो किसी का वेतन रोक दिया जाता है।
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