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Monday, July 25, 2016

लिखित परीक्षा के अंक बने चयन का आधार, कुछ पर बोर्ड भी मेहरबान, अंकों का फार्मूला बढ़ा रहा फासला

शिक्षक चयन को पारदर्शी बनाने के लिए चयन बोर्ड में अंकों का जो फामरूला लागू किया गया, वही फासला बढ़ा रहा है। अभ्यर्थी एवं साक्षात्कार लेने वालों ने इस फामरूले की काट खोज ली है। शायद इसीलिए बने कुछ साक्षात्कार बोर्ड से ही अधिकांश अभ्यर्थी चयनित हो रहे हैं। साक्षात्कार के बाकी बोर्ड नियमों की दुहाई देते हुए पीछे छूट रहे हैं। यह प्रकरण चयन बोर्ड में इन दिनों सतह पर है, बड़े अफसरों के संज्ञान में यह मामला आने के बाद भी प्रभावी अंकुश नहीं लग पा रहा है।

सूबे के अशासकीय माध्यमिक विद्यालयों के लिए शिक्षक चयन की प्रक्रिया चल रही है। माध्यमिक शिक्षा सेवा चयन बोर्ड उप्र में इन दिनों प्रवक्ता वर्ष 2013 के विभिन्न विषयों का साक्षात्कार लिया जा रहा है। इधर कई विषयों का अंतिम परीक्षा परिणाम भी जारी हुआ है उसे देखकर साक्षात्कार के नियमों को लेकर हड़कंप मचा है। दरअसल में चयन बोर्ड ने इस बार से अभ्यर्थियों का नाम, पता उजागर न होने पाए इसके लिए कोडिंग सिस्टम लागू किया। वहीं इंटरव्यू में किसी अभ्यर्थी के साथ पक्षपात न हो इसके लिए एवरेज मार्किंग सिस्टम यानी न्यूनतम व अधिकतम का फामरूला लागू किया गया। चयन बोर्ड ने यह माना कि इससे पारदर्शिता बनी रहेगी और गड़बड़ी की गुंजाइश भी कम होगी, लेकिन नियम लागू होने के कुछ ही दिनों में नियमों की काट खोज ली गई।

चयन बोर्ड के आला अफसर खुद यह मानते हैं कि कोडिंग सिस्टम का प्रभाव नहीं दिखा है, क्योंकि जो कोड अभ्यर्थी को बताया गया है यदि उसका किसी से संपर्क है तो उसने उसी कोड की पैरवी का अनुरोध कर दिया। इससे नाम व पता छिप नहीं सका। एवरेज मार्किंग फामरूले में यह निर्देश दिया गया कि किसी अभ्यर्थी को 90 फीसद से अधिक एवं 40 प्रतिशत से कम अंक नहीं दिए जाएंगे। इसमें यह बात सामने आ रही है कि कई साक्षात्कार बोर्ड अभ्यर्थियों को अधिकतम सीमा यानी 90 फीसद अंक बांट रहे हैं। वहीं गिने-चुने बोर्ड ऐसे भी हैं जो औसत अंक दे रहे हैं। ऐसे में अधिकतम अंक जिन अभ्यर्थियों को मिल रहे हैं उन्हीं का चयन हो रहा है, औसत अंक पाने वाले बाहर हो रहे हैं। प्रतियोगियों ने बाकायदे बोर्ड तक तय किया है कि फलां बोर्ड में जाने का अर्थ चयन नहीं होगा और इसकी लिखित शिकायतें भी हुई है। हालांकि इस संबंध में सभी सदस्यों को हिदायत दी गई है, लेकिन उसका असर नहीं पड़ रहा है। सदस्यों का दबी जुबान कहना है कि औसत अंक देने का अर्थ लिखित परीक्षा के अंकों पर मुहर लगाना है। यदि ऐसा ही करना है तो फिर साक्षात्कार कराया क्यों जा रहा है। चयन बोर्ड का इन दिनों नजारा बदला है पहले यहां लोग विभागीय अफसरों से संपर्क खोजते थे, वह अब बोर्ड के ‘माननीयों’ से नजदीकियां बढ़ा रहे हैं।

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