वाह रे व्यवस्था। एक तरफ विद्यालयों के शौचालयों को साफ सुथरा ही नहीं बालक और बालिकाओं के लिए अलग अलग करने की बात कही जा रही है। शासन और प्रशासन इस पर जोर भी दे रहा है, कई बार निरीक्षण में शौचालय गंदा मिलने पर शिक्षक शिक्षिकाओं पर कार्रवाई भी हुई लेकिन जमीनी हकीकत पर कोई ध्यान नहीं दे रहा है। अध्यापकों का कहना है कि वह लोग विद्यालयों में बच्चों को पढ़ाएं या फिर शौचालयों की सफाई कराएं। साफ सफाई और स्वच्छता पर केंद्र और प्रदेश सरकार जोर दे रहे हैं स्वच्छता के लिए न जाने कितने अभियान चलाए जा रहे लेकिन यह सब कागजों तक ही सीमित होकर रह गए हैं। हालत तो यह है कि विद्यालयों में झाड़ू लगाने वाला तक कोई नहीं है। शिक्षा के मंदिरों में सुबह सुबह गंदगी से ही सामना होता है। ऐसा नहीं कि इंतजाम नहीं हैं, इंतजाम हैं पर मनमानी भारी है। विद्यालय भले ही ग्राम पंचायत के आधीन हैं और उसी के क्षेत्र में भी आते हैं। प्रधानों का पूरा हस्तक्षेप भी है लेकिन सफाई के लिए तैनात सफाई कर्मी विद्यालयों को अपने क्षेत्र में नहीं मानते हैं। जिससे झाड़ू लगाने वाला तक कोई नहीं है। दूसरी तरफ विद्यालयों के शौचालयों पर जोर दिया जा रहा है लेकिन उनकी जमीनी हकीकत देखने वाला कोई नहीं है। शिक्षक शिक्षिकाओं का कहना है कि वह पढ़ाई भी कराएं, खाना भी बनवाएं और फिर झाड़ू लगाकर शौचालयों को भी साफ कराएं। आज से नहीं यह हमेशा से परेशानी चली आ रही है लेकिन इसकी तरफ कोई ध्यान देने वाला नहीं है।
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