नय चतुर्वेदी, सिकंदराराऊ :1हमारे संविधान निर्माताओं ने शिक्षा के अधिकार की परिकल्पना तो की थी मगर यह कानून बना छह दशक बाद। विडंबना देखिये कि इसे लागू हुए भी कई साल बीत गए मगर सिकंदराराऊ नगर क्षेत्र के प्राथमिक एवं उच्च प्राथमिक विद्यालयों में शहरी गरीब बच्चे बेसिक ज्ञान तक से महरूम हैं। क्योंकि यहां पिछले 44 साल से अध्यापकों की नियुक्ति ही नहीं हुई। सिर्फ मृतक आश्रित में नियुक्त हुए शिक्षक ही सरकारी शिक्षा की पतवार बने हुए हैं। शिक्षकों की भारी कमी के बावजूद स्कूलों में तैनात शिक्षकों को अन्य सरकारी कामों में लगा दिया जाता है। सिकंदराराऊ नगर क्षेत्र में 15 सरकारी स्कूल संचालित हैं। 13 प्राथमिक तथा दो जूनियर हाईस्कूल। इनमें मात्र 18 अध्यापक हैं। इनके ऊपर एक हजार बच्चों को पढ़ाने की जिम्मेदारी है। तीन शिक्षक अगले वर्ष मार्च में सेवानिवृत्त हो जाएंगे। ऐसा लगता है कि अब सरकारी शिक्षा का मतलब सिर्फ बच्चों को फल, दूध व एमडीएम बांटना ही रह गया है। अध्यापक विहीन स्कूलों की ओर किसी भी राजनेता या अधिकारी का ध्यान ही नहीं गया है। बगिया बारहसैनी, हुरमतगंज कन्या पाठशाला, नगला शीशगर तथा नौरंगाबाद पश्चिमी बालक विद्यालय में कोई अध्यापक नहीं है। वाचनालय पाठशाला, कन्या बारहसैनी पाठशाला तथा दमदमा विद्यालय में सिर्फ एक-एक अध्यापक हैं। इनमें कोई भी शिक्षक किसी वजह से अवकाश पर गया तो उस दिन स्कूल बंद। 1नगर में नौ विद्यालय ऐसे हैं, जहां प्रधानाध्यापक ही नहीं हैं। सूत्रों के मुताबिक वर्ष 1972 के बाद नगर क्षेत्र में संचालित स्कूलों में अध्यापकों की नियुक्ति नहीं हुई है। 18 में से 11 शिक्षिकाओं को छोड़कर अन्य सभी सात अध्यापक जो यहां तैनात हैं, उनमें सुभाष चन्द्र शर्मा, रवेन्द्र सक्सेना, राजेश गुप्ता, ललित मोहन भारद्वाज, नवेद अंसारी, दीपक कुमार, तसलीम सरदार ऐसे हैं, जो मृतक आश्रित में नियुक्त हुए थे। यही वजह है कि सरकारी स्कूलों में बच्चों की संख्या दिन-प्रतिदिन घटती जा रही है। सरकारी स्कूलों की बदहाली के चलते गरीब तबके के लोगों के लिए भी प्राइवेट स्कूलों में बच्चों को पढ़ाना मजबूरी बन गया है। सूबे की सरकार स्कूलों में फल, दूध एवं एमडीएम वितरण पर तो ध्यान दे रही है, मगर बच्चों की पढ़ाई की फिक्र जरा भी नहीं है।विनय चतुर्वेदी, सिकंदराराऊ :1हमारे संविधान निर्माताओं ने शिक्षा के अधिकार की परिकल्पना तो की थी मगर यह कानून बना छह दशक बाद। विडंबना देखिये कि इसे लागू हुए भी कई साल बीत गए मगर सिकंदराराऊ नगर क्षेत्र के प्राथमिक एवं उच्च प्राथमिक विद्यालयों में शहरी गरीब बच्चे बेसिक ज्ञान तक से महरूम हैं। क्योंकि यहां पिछले 44 साल से अध्यापकों की नियुक्ति ही नहीं हुई। सिर्फ मृतक आश्रित में नियुक्त हुए शिक्षक ही सरकारी शिक्षा की पतवार बने हुए हैं। शिक्षकों की भारी कमी के बावजूद स्कूलों में तैनात शिक्षकों को अन्य सरकारी कामों में लगा दिया जाता है। सिकंदराराऊ नगर क्षेत्र में 15 सरकारी स्कूल संचालित हैं। 13 प्राथमिक तथा दो जूनियर हाईस्कूल। इनमें मात्र 18 अध्यापक हैं। इनके ऊपर एक हजार बच्चों को पढ़ाने की जिम्मेदारी है। तीन शिक्षक अगले वर्ष मार्च में सेवानिवृत्त हो जाएंगे। ऐसा लगता है कि अब सरकारी शिक्षा का मतलब सिर्फ बच्चों को फल, दूध व एमडीएम बांटना ही रह गया है। अध्यापक विहीन स्कूलों की ओर किसी भी राजनेता या अधिकारी का ध्यान ही नहीं गया है। बगिया बारहसैनी, हुरमतगंज कन्या पाठशाला, नगला शीशगर तथा नौरंगाबाद पश्चिमी बालक विद्यालय में कोई अध्यापक नहीं है। वाचनालय पाठशाला, कन्या बारहसैनी पाठशाला तथा दमदमा विद्यालय में सिर्फ एक-एक अध्यापक हैं। इनमें कोई भी शिक्षक किसी वजह से अवकाश पर गया तो उस दिन स्कूल बंद। 1नगर में नौ विद्यालय ऐसे हैं, जहां प्रधानाध्यापक ही नहीं हैं। सूत्रों के मुताबिक वर्ष 1972 के बाद नगर क्षेत्र में संचालित स्कूलों में अध्यापकों की नियुक्ति नहीं हुई है। 18 में से 11 शिक्षिकाओं को छोड़कर अन्य सभी सात अध्यापक जो यहां तैनात हैं, उनमें सुभाष चन्द्र शर्मा, रवेन्द्र सक्सेना, राजेश गुप्ता, ललित मोहन भारद्वाज, नवेद अंसारी, दीपक कुमार, तसलीम सरदार ऐसे हैं, जो मृतक आश्रित में नियुक्त हुए थे। यही वजह है कि सरकारी स्कूलों में बच्चों की संख्या दिन-प्रतिदिन घटती जा रही है। सरकारी स्कूलों की बदहाली के चलते गरीब तबके के लोगों के लिए भी प्राइवेट स्कूलों में बच्चों को पढ़ाना मजबूरी बन गया है। सूबे की सरकार स्कूलों में फल, दूध एवं एमडीएम वितरण पर तो ध्यान दे रही है, मगर बच्चों की पढ़ाई की फिक्र जरा भी नहीं है।
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