प्रदेश में उच्च शिक्षा व्यवस्था कई मर्ज का शिकार है। उच्च शिक्षा के गुरुकुल जहां गुरुजन का अकाल ङोल रहे हैं, वहीं सरकार की लाख कोशिशों के बावजूद विश्वविद्यालयों की परीक्षाओं में नकल और फर्जी अंकपत्रों के गोरखधंधे का शोर अभी थमा नहीं है। तय समयसीमा में परीक्षा परिणाम घोषित करने में भी विश्वविद्यालयों को पसीने छूट रहे हैं। शिक्षकों की कमी उच्च शिक्षा में सुधार को लेकर विभिन्न मंचों से जताये जाने वाले सरोकारों के बीच कड़वी सच्चाई है कि प्रदेश के उच्च शिक्षण संस्थान शिक्षकों की जबर्दस्त कमी से जूझ रहे हैं। राज्य विश्वविद्यालयों और अशासकीय सहायताप्राप्त कॉलेजों में शिक्षकों के 40 फीसद पद खाली हैं, वहीं राजकीय कॉलेजों में एक तिहाई पद रिक्त हैं। आरक्षण को लेकर पेंच फंसा होने के कारण उच्च शिक्षा विभाग के अधीन राज्य विश्वविद्यालयों में वर्ष 2006 से लेकर 2015 के अंत तक असिस्टेंट और एसोसिएट प्रोफेसर के पदों पर नियुक्तियां नहीं हो सकीं। छात्रों के साथ इसका खमियाजा शिक्षा व्यवस्था भी भुगतती रही। हालात यह हैं कि उच्च शिक्षा विभाग के अधीन राज्य विश्वविद्यालयों में शिक्षकों के 1978 पद सृजित हैं जिनमें से लगभग आठ सौ खाली हैं। इस गतिरोध को दूर करने के लिए विश्वविद्यालय शिक्षकों के चयन में लागू आरक्षण व्यवस्था को सरकार की ओर से पिछले साल नवंबर में बदले जाने के बावजूद भर्तियों की रफ्तार सुस्त है। राजकीय कॉलेजों में सहायक प्रोफेसर के 2532 पद सृजित हैं जिनमें से 939 पर फिलवक्त कोई तैनाती नहीं है। राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालयों में प्राचार्य के 45 सृजित पदों में से 18 खाली हैं जबकि डिग्री कॉलेजों में प्राचार्य के 136 में से 43 पद रिक्त हैं। नकल का बोलबाला लाख कोशिशों के बावजूद उच्च शिक्षा व्यवस्था परीक्षाओं में नकल का दंश ङोल रही है। पिछले साल नकल की शिकायतें मिलने पर फैजाबाद के डॉ.राम मनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय को कुछ परीक्षाएं रद कर दोबारा करानी पड़ी थीं। विश्वविद्यालयों और संबद्ध कॉलेजों की परीक्षाओं में नकल का बोलबाला इस कदर है कि फरवरी में कुलाधिपति की हैसियत से राज्यपाल राम नाईक को कुलपतियों को पत्र भेजकर इस चिंता से वाकिफ करना पड़ा था। कुलपतियों को भेजे पत्र में राज्यपाल ने शैक्षिक सत्र 2015-16 की परीक्षाएं समय से कराने और उनमें नकल रोकने के लिए प्रभावी कदम उठाने का निर्देश दिया था। परीक्षाओं में नकल का मुद्दा पहले भी कुलपति सम्मेलनों में उठता रहा है। 1रिजल्ट घोषित करने में ढिलाई कई राज्य विश्वविद्यालय अभी भी परीक्षाओं के रिजल्ट तय समयसीमा के अंदर घोषित करने में नाकाम साबित हो रहे हैं। राज्य विश्वविद्यालयों को 30 जून तक अपने सभी परीक्षा परिणाम घोषित करने के राजभवन के स्पष्ट निर्देश के बावजूद इसका अनुपालन नहीं हो पा रहा है। पिछले साल 27 जुलाई को जब राज्यपाल राम नाईक ने कुलपतियों के साथ बैठक कर इसकी समीक्षा की तो राज्य विश्वविद्यालयों की ढिलाई सामने आयी थी। रिजल्ट घोषित करने के मामले में मेरठ और आगरा विश्वविद्यालय फिसड्डी साबित हुए थे। लखनऊ विश्वविद्यालय, वाराणसी के संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय और फैजाबाद के डॉ.राम मनोहर लोहिया विश्वविद्यालय के कुछ परीक्षा परिणाम घोषित होना बाकी थे। इस साल भी कई विश्वविद्यालयों के परीक्षा परिणाम 30 जून की समयसीमा के बाद घोषित हो पाये। फर्जी अंकपत्रों का गोरखधंधा विश्वविद्यालयों के कर्मचारियों की मिलीभगत से फर्जी अंकपत्र जारी करने का धंधा अभी पूरी तरह थमा नहीं है। आगरा विश्वविद्यालयों में बड़े पैमाने पर हुआ फर्जी अंकपत्रों का ‘खेल’ न सिर्फ मीडिया में सुर्खियां बना, बल्कि इसकी गूंज विदेश तक सुनाई पड़ी। इस गोरखधंधे की जांच विशेष जांच दल (एसआइटी) कर रहा है। राजकीय माध्यमिक विद्यालयों में एलटी ग्रेड शिक्षकों की भर्ती में अभ्यर्थियों द्वारा लखनऊ विश्वविद्यालय की फर्जी मार्कशीट का इस्तेमाल किये जाने के दर्जनों मामले पकड़े गए। फर्जी मार्कशीट विश्वविद्यालय के कर्मचारियों की संलिप्तता के बिना नहीं बनी होंगी लेकिन लखनऊ विश्वविद्यालय ने इस संवेदनशील प्रकरण की जांच कराने की जरूरत नहीं समझी
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