गांव-गांव में खुले निजी स्कूलों को धड़ल्ले से मान्यता दी जा रही है और जो बिना मान्यता के चल रहे हैं उन पर भी कोई कार्रवाई नहीं हो रही है। ऐसे में परिषदीय स्कूलों में संख्या तो लगातार घटेगी ही। इन निजी स्कूलों पर नकेल कसे बिना अगर अधिकारी परिषदीय स्कूलों में घट रही संख्या को लेकर चिंतित हैं और लगातार नए-नए फरमान सुना रहे हैं तो इससे कुछ होने वाला नहीं है। जमाना बदलने के साथ-साथ आज परिषदीय स्कूलों में भी बहुत बड़े ढांचागत बदलाव की जरुरत है। हर एक किलोमीटर के दायरे में आज प्राथमिक और हर तीन किलोमीटर के दायरे में उच्च प्राथमिक स्कूल खोल तो दिए गए हैं लेकिन उनमें जरुरी संशाधनों की तरफ किसी का भी ध्यान नहीं है। आधे से ज्यादा स्कूलों में तो चहारदीवारी तक नहीं है। जिससे इन स्कूलों में शैक्षिक माहौल बनाने में अक्सर व्यवधान पैदा होता है। चहारदीवारी हो तो कम से कम बच्चे एकाग्रचित्त होकर पढ़ तो सकें। लेकिन इसकी तरफ किसी का भी ध्यान नहीं है। उधर उच्च प्राथमिक स्कूलों में शिक्षकों का भी जबरदस्त टोटा है। अधिकांश स्कूल एकल शिक्षक के सहारे चल रहे हैं। इन स्कूलों की खाकी ड्रेस भी किसी को रास नहीं आ रही है। न तो बच्चे और न ही उनके अभिभावक ही इस ड्रेस से संतुष्ट हैं। परिषदीय स्कूलों के यह बच्चे जब अपने आसपास के प्राइवेट स्कूलों के बच्चों की आकर्षक ड्रेस देखते हैं तो उन्हें अपनी ड्रेस पर तरस आता है। उधर गांव-गांव और गली-गली में खुल रहे प्राइवेट स्कूलों पर भी शासन प्रशासन कोई रोक नहीं लगा रहा है। उल्टे उन्हें धड़ल्ले से मान्यता दी जा रही है। यही नहीं बिना मान्यता के भी तमाम प्राइवेट स्कूल खुलेआम संचालित किए जा रहे हैं। शायद ही कोई ऐसा गांव होगा जहां बिना मान्यता का स्कूल न चल रहा हो। लेकिन कोई देखने वाला नहीं है। जनप्रतिनिधि भी निजी स्कूलों पर खूब मेहरबान रहते हैं और अपनी निधि से कमरे बनवाने से लेकर आरओ टंकी और हैण्डपम्प लगवाने में भी खूब दरियादिली दिखाते हैं। लेकिन परिषदीय स्कूलों को यह सौभाग्य नहीं मिल पाता। और तो और कई परिषदीय स्कूलों में लगे हैण्डपम्प अरसे से ख़राब पड़े हैं। शिक्षक जल निगम से लेकर बीडीओ तक सही करवाने की गुहार लगाते लगाते तक चुके हैं लेकिन कोई सुनवाई नहीं हो रही है। एक सरकारी स्कूल के साथ जब ऐसा व्यवहार होगा तो कैसे उस स्कूल में बच्चों की संख्या बढ़ेगी। सिर्फ गांव-गांव में सरकारी स्कूल खोल देने से ही काम नहीं चलने वाला। अगर ऊपर बैठे लोग सचमुच इन स्कूलों को निजी स्कूलों की तर्ज पर आगे बढ़ते हुए देखना चाहते हैं तो उन्हें इनमें बुनियादी जरूरतों की तरफ भी ध्यान देना होगा। इंग्लिश मीडियम स्कूलों की देखादेखी सिर्फ जुलाई के बजाय अप्रैल से शैक्षिक सत्र की शुरुआत कर देने भर से ही काम नहीं चलने वाला। बच्चों को समय से किताबें मुहैया करवाईए। हर एक स्कूल को चहारदीवारी की सुविधा दीजिये। उपहास का पात्र बनी बच्चों की ड्रेस को बदलिये। हर स्कूल को पर्याप्त शिक्षक दीजिये। स्कूल के खराब हैण्डपम्प को सही करवाने के लिए चौबीस घंटे की समयसीमा निर्धारित कीजिये। बच्चों के साथ साथ शिक्षकों के लिए भी ड्रेस निर्धारित करिये। शिक्षकों को गैर शैक्षणिक कायोंर् से मुक्त करिये। निजी स्कूलों पर नकेल कसिये और बिना मान्यता गांव-गांव में चल रहे स्कूलों को बंद करवाईये। फिर देखिये हुजूर। यह परिषदीय स्कूल किस तेज गति से आगे बढ़ते हैं। फिर यहां के शिक्षकों को बच्चों का एडमीशन करवाने के लिए अभिभावकों की खुशामद नहीं करनी पड़ेगी बल्कि यही अभिभावक जनप्रतिनिधियों और आपके पास परिषदीय स्कूलों में अपने बच्चों का एडमीशन करवाने के लिए सिफारिशी चिट्ठी लिखवाने आयेंगे।
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