परिषदीय विद्यालयों में ड्रेस वितरण में जमकर मनमानी हुई। कहीं ड्रेस का वितरण ही नहीं किया गया तो कहीं जो ड्रेस दी गईं, उनकी गुणवत्ता इतनी खराब थी कि वह दो माह में फट गई। विभाग में ड्रेस वितरण में शुरू से ही खेल चल रहा था, जो अंत तक जारी रहा। विद्यार्थियों को बगैर नाप के ही मनमानी ढंग से दी गई ड्रेसें उनके लिए अनुप्रयोग ही साबित हो रही हैं। विभागीय जिम्मेदार सब कुछ जान कर भी इस ओर से आंखे बंद किए हैं। सर्व शिक्षा अभियान के तहत परिषदीय विद्यालयों, अशासकीय सहायता प्राप्त, अशासकीय सहायता प्राप्त माध्यमिक विद्यालयों में कक्षा एक से आठ तक में पढ़ने वाले विद्यार्थियों को नि:शुल्क ड्रेस वितरित की जाती है। प्रत्येक बच्चे को दो-दो ड्रेस उपलब्ध कराने का प्रावधान है। इसके लिए प्रत्येक विद्यालय में चार सौ रुपये के प्रति बच्चे की दर से धनराशि उपलब्ध कराई जाती है। विभागीय निर्देशानुसार विद्यालय के विद्यार्थियों को प्रबंध समिति ड्रेस का वितरण करे इसके लिए समिति के सदस्य पहले ड्रेस के कपड़े का नमूना लें और इसके बाद विद्यार्थियों की नाप ली जाए और स्थानीय दर्जी से इसकी सिलाई करा विद्यार्थियों को वितरित की जाए। इस बार जिले में चार लाख 83 हजार 797 विद्यार्थियों को ड्रेस का वितरण किया जाना था। इसके अलावा 22,051 एपीएल बालकों को भी ड्रेस वितरण कराई जानी थी। विभागीय आंकड़ों के अनुसार चार लाख 61 हजार 955 विद्यार्थियों का वितरण किया जा चुका है, लेकिन हकीकत इससे परे है। अभी भी तमाम स्कूलों में विद्यार्थियों को ड्रेस नहीं मिल पाई है। जहां ड्रेस का वितरण किया गया है। इसकी गुणवत्ता इतनी निम्न है कि विद्यार्थियों को दी गईं ड्रेस फट चुकी हैं, जबकि वितरण किए हुए अभी एक माह भी पूरा नहीं हुआ।
इस प्रकार हुआ वितरण : ड्रेस वितरण के लिए भले ही शासनादेश जारी किया गया हो, लेकिन इसका पालन कागजों में सिमट कर रह गया है। हकीकत में ड्रेस वितरण विभागीय ब्लाक प्रभारी व जनप्रतिनिधियों के साथ जुड़े लोगों के माध्यम से ही किया गया। विद्यालय के प्रधानाध्यापक और प्रबंध समिति को दरकिनार कर दिया गया। कार्यदायी संस्था विद्यालयों में धनराशि आने से पूर्व ही ड्रेसें पहुंचा चुकी थी और उनका भुगतान न चाहते हुए विद्यालय प्रधानाध्यापकों को करना पड़ा।
कुछ इस प्रकार बांटी गई ड्रेस
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