मौत के एक साल बाद सहायक अध्यापक बर्खास्त, हाईकोर्ट ने पूछा – किस नियम के तहत मृतक कर्मचारी के खिलाफ सेवा समाप्ति आदेश पारित किया गया?
शिक्षा निदेशक से व्यक्तिगत हलफनामा तलब, कहा-यह प्रशासनिक संवेदनहीनता का उदाहरण
प्रयागराज। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बेसिक शिक्षा में तैनात रहे शिक्षक को मौत के एक साल बाद बर्खास्त करने पर हैरानी जताई है। कोर्ट ने बेसिक शिक्षा निदेशक से व्यक्तिगत हलफनामा तलब कर पूछा है कि किस नियम के तहत मृतक कर्मचारी के खिलाफ सेवा समाप्ति आदेश पारित किया गया है।
कोर्ट का यह आदेश न्यायमूर्ति प्रकाश पाडिया की एकल पीठ ने फर्रुखाबाद में तैनात रहे मृतक शिक्षक मुकुल सक्सेना की पत्नी प्रीति सक्सेना की याचिका पर दिया है। कोर्ट ने कहा कि कोविड से मौत के एक साल बाद शिक्षक के खिलाफ बर्खास्तगी की कार्रवाई न सिर्फ गैर कानूनी है, बल्कि प्रशासनिक संवेदनहीनता का उदाहरण भी है।
सरकार बोली... फर्जी दस्तावेज से मिली थी नौकरी : सरकार की ओर से तर्क दिया गया कि मृतक ने कथित रूप से जाली दस्तावेज देकर नौकरी पाई थी और उसकी नियुक्ति शुरू से ही अमान्य मानी गई। हालांकि, कोर्ट ने इस दलील को सिरे से खारिज कर दिया। कहा कि रिकॉर्ड पर कहीं भी ऐसा नहीं है कि किसी सक्षम अधिकारी ने नियुक्ति को अमान्य घोषित किया हो।
कोर्ट की टिप्पणी: मरे व्यक्ति के खिलाफ जांच या सेवा समाप्ति की कार्यवाही न तो संभव है और न ही कानून में इसका कोई आधार है। यह समझ से परे है कि अधिकारी ने 2022 में आदेश कैसे जारी कर दिया, जबकि कर्मचारी 2021 में ही नहीं रहा।
अदालत की चेतावनीः अदालत ने निदेशक बेसिक को एक हफ्ते में हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया और चेतावनी दी कि ऐसा न करने पर उन्हें अगली तारीख पर व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होना होगा। मामले की अगली सुनवाई 16 दिसंबर को होगी।
यह है मामला : मुकुल की नियुक्ति सहायक अध्यापक के पद पर 1996 में मृतक 2021 में कोविड-19 से उनकी मृत्यु हो गई। पत्नी को पारिवारिक पेंशन मिल रही थी पर नवंबर 2022 के बाद अचानक पेंशन रोक दी गई। जानकारी करने पर फर्रुखाबाद के बीएसए की ओर से भेजे गए पत्र में बेसिक शिक्षा निदेशक के 18 जुलाई 2022 के आदेश का हवाला दिया गया। उसमें मृत कर्मचारी की सेवाएं समाप्त करने के लिए कहा गया था। इसी आधार पर दिसंबर 2022 में ट्रेजरी विभाग ने पेंशन रोक दी। इसके खिलाफ याची ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
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