मंशा तो अच्छी थी पर अव्यवस्था की भेंट चढ़ गई। विद्यालयों में बच्चों को खाना खाने के लिए बर्तन देने की योजना पूरी तरह से फ्लाप साबित हो गई है। धनतेरस से बच्चों को बर्तन वितरण तो शुरु कर दिया गया लेकिन उसके बाद से ठप पड़ा है। अब बैग वितरण की बात कही जा रही है लेकिन बच्चों तक बर्तन नहीं पहुंच पाए हैं और जुगाड़ के बर्तन से बच्चे खान खा रहे हैं। विद्यालयों में शिक्षा से ज्यादा मिड-डे मील पर शासन गंभीर है। प्रदेश सरकार ने बच्चों को खाने के साथ दूध और फिर हर सोमवार को मौसमी फल खिलाने की योजना चलाई है। वैसे अभी तक विद्यालयों में बच्चों को खाने और दूध पिलाने का इंतजाम है लेकिन उसके लिए संसाधन नहीं हैं या तो बच्चे बैग में बर्तन रखकर लाते या फिर उन्हें विद्यालयों में जुगाड़ से खाना होता। इस समस्या को दूर करने का सरकार ने इंतजाम किया था और विद्यालयों में बच्चों को एक-एक भोजन थाली और गिलास देने की योजना चलाई। जिसमें बच्चों को एक थाली और गिलास दिया जाना था। धनतेरस पर इसकी शुरुआत भी हुई और शासन स्तर से जारी फरमान में नवंबर तक वितरण पूरा किया जाना था लेकिन धीरे धीरे दिसंबर बीत रहा है लेकिन बच्चों को बर्तन नहीं मिल पाए हैं। देखा जाए तो नगर क्षेत्र के कुछ विद्यालयों में ही बर्तन वितरण किया गया और किसी भी विकास खंड में बच्चों को बर्तन नहीं मिल पाए हैं। अब बर्तन क्यों नहीं दिए गए और कब तक दिए जाएंगे इसका किसी के पास कोई उत्तर नहीं है। 1113 रुपये 30 पैसे के हैं बर्तन 1विद्यालयों के बच्चों को दी जाने वाली थाली और गिलास का शासन स्तर से मानक तय किया गया है। थाली और गिलास के सेट की 113 रुपये 30 पैसे कीमत तय की है। आपूर्तिकर्ता संस्थाएं बर्तन पहुंचाने का काम करेंगी और फिर बर्तनों की जांच व अन्य प्रक्रिया पूरी करने के बाद भुगतान दिया जाएगा।
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