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Saturday, September 6, 2025

एमबीबीएस सत्र शुरू, मेडिकल कॉलेजों में शिक्षकों का टोटा, उत्तर प्रदेश के सभी कॉलेजों में करीब 50 फीसदी शिक्षकों के पद खाली

एमबीबीएस सत्र शुरू, मेडिकल कॉलेजों में शिक्षकों का टोटा, उत्तर प्रदेश के सभी कॉलेजों में करीब 50 फीसदी शिक्षकों के पद खाली

सभी कॉलेजों में निरंतर चल रहे हैं साक्षात्कार, फिर भी भरे नहीं जा सके पद


लखनऊ। प्रदेश के चिकित्सीय संस्थानों एवं मेडिकल कॉलेजों में चिकित्सक शिक्षकों के औसतन 50 फीसदी पद खाली हैं। हालात यह हैं कि लखनऊ के डॉ. राम मनोहर लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान में 37, केजीएमयू में 20 और जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज कानपुर में भी 16 पद खाली हैं।

ऐसे ही बड़े शहरों में स्थित मेडिकल कॉलेजों और संस्थानों में रिक्त पदों की वजह सिर्फ शिक्षकों के नाम न आने और नाम वापस लेने की प्रवृत्ति है। दरअसल, चयनित शिक्षक साक्षात्कार के बाद पद ग्रहण ही नहीं करते। यही वजह है कि करीब 50 फीसदी सीटें खाली हैं। ऐसे में सरकार के लिए मेडिकल शिक्षकों की भारी कमी को पूरा करना चुनौती बना हुआ है।


भर्ती प्रक्रिया में देरी

प्रदेश के 13 राजकीय मेडिकल कॉलेजों में चिकित्सक शिक्षकों की भर्ती प्रक्रिया पिछले तीन साल से जारी है। इसके बावजूद शिक्षकों के पद भरे नहीं जा सके हैं। प्रदेश सरकार ने हर मेडिकल कॉलेज में 27 विभागों के गठन के आदेश दिए हैं। इनमें प्रत्येक विभाग में प्रोफेसर, एसोसिएट प्रोफेसर व असिस्टेंट प्रोफेसर की नियुक्ति की जानी है। इसके लिए कुल 645 पद सृजित किए गए हैं।

इनमें अब तक 135 पद ही भरे जा सके हैं। डॉ. राम मनोहर लोहिया संस्थान में 440 में से 165 पद खाली हैं। इसी तरह केजीएमयू में 403 में से 67 और एसजीपीजीआई में भी करीब 50 फीसदी सीटें खाली हैं।


निजी प्रैक्टिस पर रोक, वेतन कम और तबादला बना मुसीबत
कई शिक्षकों ने बताया कि अनुबंध पर रखे जाने वाले चिकित्सकों को प्राइवेट प्रैक्टिस पर छूट है। स्थायी नियुक्त चिकित्सकों को निजी प्रैक्टिस (बाहर मरीज देखने) पर रोक है। असिस्टेंट प्रोफेसर के रूप में काम करने वाले चिकित्सकों को मासिक करीब 1.20 लाख रुपये वेतनमान मिलता है, जो प्राइवेट अस्पतालों की अपेक्षा काफी कम है। यही वजह है कि तीन साल सेवा करने के बाद भी चिकित्सक नौकरी छोड़ देते हैं।

“कई बार सही मिलान न होने की यह बड़ी वजह बन जाती है”
कई मेडिकल कॉलेजों के प्राचार्यों ने बताया कि चिकित्सक शिक्षकों के न आने की बड़ी वजह यह है कि कई बार उनका विषय का मिलान विभाग से नहीं हो पाता। उदाहरण के लिए, रेडियोलॉजी व रेडियो डायग्नोसिस, फॉरेंसिक मेडिसिन व मेडिकल जूरिस्प्रूडेंस, नेत्र रोग व ऑप्थैल्मोलॉजी आदि का अलग विभाग है। इस वजह से कई बार नियुक्ति की प्रक्रिया में देरी हो जाती है।

खाली पदों को लेकर विवि को आदेश
जहां भी पद खाली हैं, उसका विज्ञापन जारी कर दिया गया है। राजकीय मेडिकल कॉलेजों में खाली पदों को विश्वविद्यालयों के जरिए पूरा किया जाएगा। जहां भी रिक्त पद रहेंगे, वहां एडहॉक आधार पर नियुक्ति की जाएगी। इसके लिए विवि को आदेशित किया गया है।


“साक्षात्कार की चल रही निरंतर प्रक्रिया के बावजूद शिक्षकों की कमी बनी हुई है। सभी कॉलेजों में साक्षात्कार की प्रक्रिया चल रही है। जल्द ही रिक्त पदों को भर लिया जाएगा। जहां भी पद खाली हैं, वहां एडहॉक शिक्षकों की नियुक्ति की जाएगी। जब तक नए पदों पर नियुक्ति नहीं हो जाती, एडहॉक से काम चलता रहेगा।”  ब्रजेश पाठक, उप मुख्यमंत्री

Wednesday, September 3, 2025

मेडिकल कॉलेज में 79 फीसदी आरक्षण का शासनादेश रद्द करने के खिलाफ सरकार की अपील पर फैसला सुरक्षित

हाईकोर्ट ने सरकार से पूछा एकल पीठ के फैसले में क्या है कमी

मेडिकल कॉलेज में 79 फीसदी आरक्षण का शासनादेश रद्द करने के खिलाफ सरकार की अपील पर फैसला सुरक्षित

याची अभ्यर्थी की पास के मेडिकल कॉलेज में काउंसिलिंग कराने का दिया मौखिक निर्देश


03 सितंबर 2025
लखनऊ। इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने राज्य सरकार की अंबेडकरनगर, कन्नौज, जालौन व सहारनपुर के सरकारी मेडिकल कॉलेजों में 79 फीसदी आरक्षण के संबंध में पारित शासनादेशों को रद्द करने के एकल पीठ के फैसले के खिलाफ दाखिल विशेष अपील पर मंगलवार को सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित कर लिया है।

न्यायमूर्ति राजन रॉय व न्यायमूर्ति मंजीव शुक्ल की खंडपीठ के समक्ष राज्य सरकार की अपील पर सुनवाई हुई। अपील पर सुनवाई करते हुए, हाईकोर्ट ने राज्य सरकार के अधिवक्ता से पूछा कि उक्त निर्णय में क्या कमी है? राज्य सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता जेएन माथुर ने दलील दी कि एकल पीठ के फैसले से इन चारों मेडिकल कालेजों में दाखिलों के लिए फिर से काउंसिलिंग करनी पड़ेगी।

इससे प्रदेश के अन्य जिलों के मेडिकल कॉलेजों में दाखिलों के लिए हो रही काउंसिलिंग पर भी असर पड़ेगा। कहा कि नई काउंसिलिंग से पहले से सीट पाए अभ्यर्थी बाहर हो जाएंगे। अन्य मेडिकल कॉलेजों में काउंसिलिंग पूरी होने की वजह से उनके पास विकल्प भी नहीं बचेंगे।

उधर, याची अभ्यर्थी के अधिवक्ता मोतीलाल यादव ने एकल पीठ के फैसले को आरक्षण के कानूनी प्रावधानों के तहत कहकर इस पर पूरी तरह से अमल किए जाने का तर्क दिया। कोर्ट ने मामले की सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित कर लिया। हालांकि, याची के अधिवक्ता के मुताबिक शुरुआत में याचिका दाखिल करने वाली अभ्यर्थी सबरा अहमद को अंबेडकरनगर या पास के किसी मेडिकल कॉलेज में काउंसिलिंग में शामिल करने पर गौर करने का मौखिक निर्देश भी दिया है।




यूपी : एमबीबीएस में 23 की जगह 78% दे दिया था एससी-एसटी को आरक्षण, पिछड़ों को 13 तो सामान्य के हिस्से आई सिर्फ नौ फीसदी सीटें

01 सितंबर 2025
लखनऊ। प्रदेश में 4 राजकीय मेडिकल कॉलेज कन्नौज, अंबेडकर नगर, जालौन और सहारनपुर में अनुसूचित जाति एवं जनजाति को 23 के बजाय 78 फीसदी आरक्षण दिया गया है। अति पिछड़े वर्ग को 13 फीसदी और सामान्य का हिस्सा सिर्फ नौ फीसदी है। निर्बल आय वर्ग (ईडब्ल्यूएस) का कोटा नहीं लागू है। ऐसे में हाईकोर्ट ने नीट 2025 की काउंसिलिंग रद्द करने का आदेश दिया है। हालांकि अब चिकित्सा शिक्षा विभाग दोबारा अपील की तैयारी में जुटा है।

प्रदेश में अनुसूचित जाति को 21, जनजाति को 2, अन्य पिछड़ा वर्ग को 27 और ईडब्ल्यूएस को 10 फीसदी आरक्षण देने की व्यवस्था है। मेडिकल कॉलेजों का निर्माण अलग अलग समय पर हुआ है। कन्नौज, अंबेडकर नगर, जालौन और सहारनपुर स्थित मेडिकल कॉलेज के निर्माण के वक्त समाज कल्याण विभाग की ओर से स्पेशल कंपोनेंट के तहत 70 फीसदी बजट दिया गया। जबकि 30 फीसदी बजट सामान्य था। उस वक्त इस बजट से हॉस्टल, प्रेक्षागृह सहित अन्य संसाधनों का निर्माण कराया गया। हाईकोर्ट में दाखिल की गई याचिका में बताया गया कि इन कॉलेजों के दाखिला लेने वाले छात्रों में हॉस्टल में 70 फीसदी अनुसूचित जाति एवं जनजाति के बच्चों को आरक्षण दिया जाना था, लेकिन विभागीय अधिकारियों की लापरवाही से इसकी गलत व्याख्या की गई।

एमबीबीएस की सीटों पर अनुसूचित जाति के 21 फीसदी और जनजाति के दो फीसदी को मिलाकर कुल 23 फीसदी की जगह 78 फीसदी आरक्षण दे दिया गया। यह व्यवस्था कई साल से चल रही है। इस वर्ष की काउंसिलिंग में भी इसी व्यवस्था के तहत सीटों आवंटित की गई हैं। ऐसे में हाईकोर्ट ने काउंसिलिंग ही रद्द कर दिया है। 



यूपी : हाईकोर्ट ने NEET-2025 के तहत दाखिले में निर्धारित सीमा से अधिक आरक्षण का शासनादेश किया निरस्त, अंबेडकरनगर, कन्नौज, सहारनपुर और जालौन मेडिकल कॉलेज के प्रवेश रद्द

50 फीसदी आरक्षण सीमा नहीं लांघ सकते – हाईकोर्ट 


लखनऊ। हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने नीट- 2025 परीक्षा के तहत कन्नौज, सहारनपुर, अंबेडकरनगर और जालौन के सरकारी मेडिकल कॉलेजों की सीटों को नए सिरे से भरने का आदेश दिया है। साथ ही यूपी सरकार के विशेष आरक्षण शासनादेश को निरस्त करते हुए राज्य सरकार को आरक्षण अधिनियम 2006 के तहत दाखिला देने को कहा है। अदालत में मेडिकल कॉलेजों की सीटें भरने के लिए निर्धारित सीमा से अधिक आरक्षण देने के शासनादेशों को चुनौती दी गई थी।

न्यायमूर्ति पंकज भाटिया की एकल पीठ ने यह फैसला नीट-2025 की अभ्यर्थी सबरा अहमद की याचिका पर दिया है। याची ने अंबेडकरनगर, कन्नौज, जालौन और सहारनपुर के सरकारी मेडिकल कॉलेजों में प्रवेश के लिए आरक्षण की स्वीकृत सीमा का मुद्दा उठाकर चुनौती दी थी। याची का कहना था कि उत्तर प्रदेश सरकार ने अनुसूचित जाति, जनजाति और ओबीसी अभ्यर्थियों को शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षण देने के लिए आरक्षण अधिनियम 2006 बनाया था। इस अधिनियम के तहत मेडिकल कॉलेजों में हुए दाखिलों में अधिनियम में दी गई आरक्षण की निर्धारित सीमा 50 फीसदी का उल्लंघन करके सीटें भरी गई। यानी शासनादेश जारी कर 50 फीसदी से अधिक आरक्षण दिया गया। यह कानून की मंशा के खिलाफ था। वहीं, राज्य सरकार की ओर से याचिका का विरोध किया गया। 



अदालत ने कहा- राज्य सरकार का आदेश आरक्षण अधिनियम के खिलाफ : 
कोर्ट ने कहा कि आरक्षण की सीमा तय करने वाला राज्य सरकार का आदेश साफ तौर पर आरक्षण अधिनियम 2006 के खिलाफ है। कोर्ट ने कहा कि सरकार आरक्षण की तय सीमा 50 फीसदी के नियम का बगैर किसी कानूनी प्राधिकार के उल्लंघन नहीं कर सकती। ऐसे में इन शासनादेशों को तर्कसंगत नहीं ठहराया जा सकता है। इस टिप्पणी के साथ कोर्ट ने आरक्षण सीमा का उल्लंघन करने वाले 2010 से 2015 के बीच जारी छह शासनादेशों को रद्द कर दिया।

आरक्षण अधिनियम 2006 के तहत नए सिरे से भरी जाएंगी सीटें अदालत ने राज्य सरकार को निर्देश दिया कि इन चारों मेडिकल कॉलेजों की सीटें आरक्षण अधिनियम 2006 के अनुसार भरी जाएं। सीटें भरने की सूचना पर कोर्ट ने चिकित्सा शिक्षा विभाग को आरक्षण अधिनियम 2006 के तहत इन सीटों को नए सिरे से भरने की कार्यवाही करने का निर्देश दिया। 


चारों कॉलेजों की 340 सीटें होंगी प्रभावित 
हाईकोर्ट के आदेश के बाद चारों कॉलेजों की 340 सीटों के दाखिले प्रभावित हो सकते हैं। हर कॉलेज में कुल 85 सीटें हैं। इनमें सात जनरल वर्ग के लिए, एससी वर्ग के लिए 62, एसटी वर्ग के लिए 5 व ओबीसी वर्ग के लिए 11 सीटें हैं।


दूसरे चरण की काउंसिलिंग में सीटों का वितरण बदलेगा चिकित्सा शिक्षा एवं प्रशिक्षण महानिदेशालय ने देर रात अपनी वेबसाइट पर हाईकोर्ट के फैसले की जानकारी दी है। यह भी कहा है कि दूसरे चरण की सीट मैट्रिक्स बदल सकती है। इस बारे में जल्द ही वेबसाइट पर सूचना दी जाएगी।


प्रदेश के सभी कॉलेजों पर पड़ सकता है असर
लखनऊ। प्रदेश में आठ अगस्त से शुरू हुई पहले चरण की काउंसिलिंग 28 अगस्त को पूरी हो चुकी है। दूसरे चरण की प्रकिया शुरू हो गई है। हाईकोर्ट के आदेश के बाद प्रदेश के सभी मेडिकल कॉलेजों की आरक्षित श्रेणी की सीटें प्रभावित हो सकती हैं। ऐसे में कुछ छात्रों के कॉलेज आवंटन प्रभावित होंगे।

Monday, July 28, 2025

यूपी में और महंगी हुई डाक्टरी की पढ़ाई, सरकार ने बढ़ाई निजी मेडिकल कालेजों की फीस, 1.5 से 5.50 लाख रुपये तक की वृद्धि

यूपी में और महंगी हुई डाक्टरी की पढ़ाई, सरकार ने बढ़ाई निजी मेडिकल कालेजों की फीस, 1.5 से 5.50 लाख रुपये तक की वृद्धि

एसी और नान एसी छात्रावास शुल्क में दस हजार रुपये तक की वृद्धि

31 निजी मेडिकल कालेज में से 17 को फीस बढ़ाने की दी गई अनुमति

विविध शुल्क 94,160 रुपये, जिसमें पंजीकरण से लेकर परीक्षा शुल्क तक


लखनऊ । प्रदेश के निजी मेडिकल कालेजों में एमबीबीएस की पढ़ाई महंगी हो गई है। चिकित्सा शिक्षा विभाग की फीस नियमन समिति ने सत्र 2025-26 में 31 निजी मेडिकल कालेजों में से 17 को सालाना फीस बढ़ाने की अनुमति दे दी है। इस सत्र में निजी कालेजों में एमबीबीएस में प्रवेश लेने वाले छात्र-छात्राओं को 1.55 लाख से 5.50 लाख रुपये अधिक देना पड़ेगा।

चिकित्सा शिक्षा विभाग ने निजी मेडिकल कालेजों के शिक्षण शुल्क में वृद्धि के अलावा छात्रावास व विविध शुल्क भी तय कर दिया है। एसी छात्रवास के लिए इस बार 2,02,125 रुपये सालाना शुल्क तय किया गया है, जबकि बीते सत्र में यह 1,92,500 रुपये था। इसी तरह नान एसी छात्रावास के लिए प्रत्येक छात्र को 1,73,250 रुपये प्रतिवर्ष देना होगा। बीते सत्र में यह शुल्क 1,65,000 रुपये था। इस शुल्क में मेस का खर्च भी जोड़ा गया है। यह भी हिदायत दी गई है कि छात्रावास के एक कमरे में सिर्फ दो ही छात्रों को रखा जाए।


फीस नियमन समिति ने विविध शुल्क 94,160 रुपये तय किया है। इसमें यूनिवर्सिटी पंजीकरण, विकास शुल्क, लाइब्रेरी, स्टूडेंट एसोसिएशन, जिम, स्पोर्ट्स, प्रवेश, परीक्षा शुल्क आदि को शामिल किया गया है। हास्पिटल, प्रयोगशाला आदि को शामिल करते हुए तीन लाख रुपये सिक्योरिटी राशि तय की गई है। इसे पाठ्यक्रम पूरा होने के बाद वापस किया जाएगा। निजी मेडिकल कालेजों को यह भी हिदायत दी गई है कि वो शिक्षण शुल्क साल में एक बार ही लेंगे। किसी दशा में पांच वर्षों का शिक्षण शुल्क एकमुश्त नहीं जमा कराया जाएगा।


एमडी-एमएस करना भी हुआ महंगा

अब एमडी-एमएस करना भी महंगा हो गया है। फीस नियमन समिति ने एमडी-एमएस की फीस में 10 लाख रुपये सालाना तक की वृद्धि की है। जीएस मेडिकल कालेज एंड हास्पिटल हापुड़ में पीजी की क्लीनिकल सीट के लिए 2025-26 के लिए अब 31,16,082 रुपये फीस देनी होगी। जबकि 2024-25 में इसी मेडिकल कालेज में एमडी-एमएस की एक साल की फीस 21,63,946 रुपये थी। टीएस मिश्रा मेडिकल कालेज लखनऊ में क्लीनिकल, पैथोलाजी और नान क्लीनिकल, तीनों ही वर्गों में फीस बढ़ा दी गई है। टीएस मिश्रा मेडिकल कालेज में वर्ष 2024-25 से 2025-26 में क्लीनिकल सीट में लगभग 10 लाख रुपये, पैथोलाजी में लगभग पांच लाख और नान क्लीनिकल सीट में लगभग तीन लाख रुपये बढ़ाए गए हैं।


Wednesday, January 29, 2025

सीएमओ का प्रमाणपत्र पेश करने पर ही मिलेगी यूपी बोर्ड परीक्षा ड्यूटी से छुट्टी

सीएमओ का प्रमाणपत्र पेश करने पर ही मिलेगी यूपी बोर्ड परीक्षा ड्यूटी से छुट्टी

■ बोर्ड के सचिव ने परीक्षा के लिए दिए निर्देश

■ शिक्षकों की ड्यूटी लगाने की प्रक्रिया शुरू


प्रयागराज :  124 फरवरी से प्रस्तावित 10वीं-12वीं की बोर्ड परीक्षा के लिए यूपी बोर्ड ने शिक्षकों व प्रधानाचार्यों की ड्यूटी लगाने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। यूपी बोर्ड ने हर साल की तरह साफ किया है कि उन्हीं शिक्षकों और प्रधानाचार्यों को चिकित्सकीय अवकाश मिलेगा जो मुख्य चिकित्साधिकारी (सीएमओ) का प्रमाणपत्र प्रस्तुत करेंगे।


सचिव भगवती सिंह की ओर से जारी पत्र में लिखा है कि बोर्ड परीक्षा में प्रायः यह देखा गया है कि कुछ प्रधानाचार्य व अध्यापक केंद्र व्यवस्थापक एवं कक्ष निरीक्षक का कार्य नहीं करना चाहते हैं और अस्वस्थता प्रमाणपत्र प्रस्तुत कर छुट्टी ले लेते हैं। इससे जिला विद्यालय निरीक्षक को परीक्षा केंद्रों पर केंद्र व्यस्थापक व कक्ष निरीक्षकों की नियुक्ति में कठिनाई का सामना करना पड़ता है।

बोर्ड परीक्षाओं के सफल संचालन के मद्देनजर यह तय किया गया है कि परीक्षा शुरू होने से पूर्व जो प्रधानाचार्य, अध्यापक, कर्मचारी चिकित्सकीय अवकाश के लिए आवेदन करें, उन्हें जिले के मुख्य चिकित्साधिकारी के पास उनकी अस्वस्थता की पुष्टि कराने और चिकित्सा आवेदन पत्र को प्रति हस्ताक्षरित कराने के लिए भेजा जाए। सीएमओ की ओर से जारी प्रमाणपत्र के आधार पर ही चिकित्सकीय अवकाश स्वीकृत किया जाए।

सचिव ने सभी सीएमओ से अनुरोध किया है कि बोर्ड परीक्षा शुरू होने के पूर्व यदि कोई प्रधानाचार्य, अध्यापक, कर्मचारी अस्वस्थता प्रमाणपत्र के लिए आवेदन करता है, तो संबंधित कार्मिक को प्रमाणपत्र जारी करने से पहले उसका सम्यक परीक्षण कर लिया जाए कि चिकित्सकीय अस्वस्थता प्रमाण पत्र देना आवश्यक है या नहीं, क्योंकि परीक्षा का कार्य अत्यंत आवश्यक एवं समयबद्ध है।

Wednesday, January 8, 2025

विश्वविद्यालयों के शिक्षक अधिकार के रूप में नहीं कर सकेंगे छुट्टी का दावा, यूजीसी रेग्यूलेशन 2025 के मसौदे में शिक्षकों के लिए दिशा-निर्देश

बार-बार मेडिकल लीव के नाम पर छुट्टी पर जाने वाले शिक्षकों पर होगी सख्ती  

विश्वविद्यालयों के शिक्षक अधिकार के रूप में नहीं कर सकेंगे छुट्टी का दावा, यूजीसी रेग्यूलेशन 2025 के मसौदे में शिक्षकों के लिए दिशा-निर्देश


नई दिल्ली । अब विश्वविद्यालयों के शिक्षक छुट्टी का अधिकार के रूप में दावा नहीं कर सकेंगे। जब सेवा की अनिवार्यता की आवश्यकता हो, तो छुट्टी स्वीकृत करने वाले प्राधिकारी के पास किसी भी प्रकार की छुट्टी को अस्वीकार करने या रद्द करने का विवेकाधिकार सुरक्षित है। हालांकि, अनुशासनात्मक आधार को छोड़कर शिक्षक को छुट्टी पर जाने के लिए बाध्य भी नहीं किया जाएगा। 


खास बात यह है कि बार-बार मेडिकल लीव के नाम पर छुट्टी पर जाने वाले शिक्षकों पर सख्ती होने वाली है। यदि कोई थोड़े- थोड़े अंतराल पर बीमारी के नाम पर छु‌ट्टी मांगता है तो उसे मेडिकल अथॉरिटी से शारीरिक जांच के लिए भेजा जाएगा, ताकि बीमारी का सही पता लग सके। इसके आधार पर तय होगा कि संबंधित शिक्षक को अभी घर पर आराम करना है या फिर ड्यूटी के लिए फिट है। 

विवि अनुदान आयोग (यूजीसी) ने यूजीसी रेग्यूलेशन 2025 के ड्रॉफ्ट के साथ पहली बार दिशा-निर्देश भी बनाए हैं। इसमें पहली बार शिक्षकों के लिए पांच बिंदुओं पर सामान्य कर्तव्य भी निर्धारित किए थे। नए दिशा-निर्देशों के मुताबिक, शिक्षक को केवल उनके अनुरोध पर ही छुट्टी दी जा सकती है। 

सक्षम प्राधिकारी शिक्षक के अनुरोध/सहमति के बिना, आवेदित छुट्टी को मंजूरी दे सकता है। इसके अलावा छुट्टी की प्रकृति में कोई बदलाव नहीं करेगा। छुट्टी के दौरान शिक्षक किसी अन्य रोजगार, व्यापार या व्यवसाय में खुद को शामिल नहीं करेगा, चाहे वह पूर्णकालिक हो या अंशकालिक। इसमें आकस्मिक प्रकृति की सार्वजनिक सेवा या ऐसे अन्य कार्य में छूट दी गई है।

Saturday, February 24, 2024

अब एमबीबीएस के छात्र भी पढ़ेंगे आयुष का ककहरा

अब एमबीबीएस के छात्र भी पढ़ेंगे आयुष का ककहरा

• आयुष मंत्रालय की पहल पर पाठ्यक्रम में होगा शामिल

एकीकृत स्वास्थ्य सेवाओं को बढ़ावा देने पर पूरा जोर
 
लखनऊ : अब एमबीबीएस के छात्र अपने पाठ्यक्रम में आयुष की भी पढ़ाई कर सकेंगे। उन्हें आयुर्वेद, होम्योपैथी व यूनानी इत्यादि का आधारभूत ज्ञान देने के लिए यह कदम उठाया जा रहा है। आयुष मंत्रालय की पहल पर जल्द इसे पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाया जाएगा। एकीकृत स्वास्थ्य सेवाओं को बढ़ावा देने पर पूरा जोर दिया जा रहा है। एलोपैथ के विद्यार्थी आयुर्वेद व होम्योपैथी इत्यादि का ज्ञान अर्जित कर इस विधा के चिकित्सकों के साथ मिलकर रोगियों का उपचार करेंगे तो अच्छे परिणाम सामने आएंगे और आयुष को बढ़ावा मिलेगा।


आयुष मंत्रालय के सलाहकार डा. कौस्तुभ उपाध्याय के मुताबिक राष्ट्रीय आयुर्विज्ञान आयोग (एनएमसी), राष्ट्रीय होम्योपैथी आयोग (एनएचसी) और भारतीय चिकित्सा प्रणाली के लिए गठित राष्ट्रीय आयोग (एनसीआइएसएम) इन तीनों के विशेषज्ञों की टीम पाठ्यक्रम तैयार करने में जुटी है। 


योग को पहले से ही एमबीबीएस की पढ़ाई कर रहे विद्यार्थियों के पाठ्यक्रम में जोड़ा गया है। अब पाठ्यक्रम में उन्हें आयुष का विकल्प भी दिया जाएगा। जब एलोपैथ के डाक्टर व आयुष के डाक्टर आपस में मिलकर काम करेंगे तो एक-दूसरे की चिकित्सा पद्धति के प्रति आदर का भाव भी बढ़ेगा।


अभी एमबीबीएस की पढ़ाई पूरी करने वाले छात्रों को आयुष अस्पतालों में 10 दिन के विशेष प्रशिक्षण के लिए भेजा जाता है। अब देश में धीरे-धीरे एकीकृत स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराने के लिए एकीकृत चिकित्सालय बनाने पर जोर दिया जा रहा है। यहां एक छत के नीचे ही एलोपैथी, आयुर्वेद व होम्योपैथी आदि के चिकित्सक आपस में मिलकर रोगी का इलाज करेंगे। राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत कोई भी मनपसंद विषय पढ़ने की आजादी मिलेगी। देश भर में 12 हजार आयुष वेलनेस सेंटर भी खोले जाएंगे।