हाईकोर्ट ने सरकार से पूछा एकल पीठ के फैसले में क्या है कमी
मेडिकल कॉलेज में 79 फीसदी आरक्षण का शासनादेश रद्द करने के खिलाफ सरकार की अपील पर फैसला सुरक्षित
याची अभ्यर्थी की पास के मेडिकल कॉलेज में काउंसिलिंग कराने का दिया मौखिक निर्देश
03 सितंबर 2025
लखनऊ। इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने राज्य सरकार की अंबेडकरनगर, कन्नौज, जालौन व सहारनपुर के सरकारी मेडिकल कॉलेजों में 79 फीसदी आरक्षण के संबंध में पारित शासनादेशों को रद्द करने के एकल पीठ के फैसले के खिलाफ दाखिल विशेष अपील पर मंगलवार को सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित कर लिया है।
न्यायमूर्ति राजन रॉय व न्यायमूर्ति मंजीव शुक्ल की खंडपीठ के समक्ष राज्य सरकार की अपील पर सुनवाई हुई। अपील पर सुनवाई करते हुए, हाईकोर्ट ने राज्य सरकार के अधिवक्ता से पूछा कि उक्त निर्णय में क्या कमी है? राज्य सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता जेएन माथुर ने दलील दी कि एकल पीठ के फैसले से इन चारों मेडिकल कालेजों में दाखिलों के लिए फिर से काउंसिलिंग करनी पड़ेगी।
इससे प्रदेश के अन्य जिलों के मेडिकल कॉलेजों में दाखिलों के लिए हो रही काउंसिलिंग पर भी असर पड़ेगा। कहा कि नई काउंसिलिंग से पहले से सीट पाए अभ्यर्थी बाहर हो जाएंगे। अन्य मेडिकल कॉलेजों में काउंसिलिंग पूरी होने की वजह से उनके पास विकल्प भी नहीं बचेंगे।
उधर, याची अभ्यर्थी के अधिवक्ता मोतीलाल यादव ने एकल पीठ के फैसले को आरक्षण के कानूनी प्रावधानों के तहत कहकर इस पर पूरी तरह से अमल किए जाने का तर्क दिया। कोर्ट ने मामले की सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित कर लिया। हालांकि, याची के अधिवक्ता के मुताबिक शुरुआत में याचिका दाखिल करने वाली अभ्यर्थी सबरा अहमद को अंबेडकरनगर या पास के किसी मेडिकल कॉलेज में काउंसिलिंग में शामिल करने पर गौर करने का मौखिक निर्देश भी दिया है।
यूपी : एमबीबीएस में 23 की जगह 78% दे दिया था एससी-एसटी को आरक्षण, पिछड़ों को 13 तो सामान्य के हिस्से आई सिर्फ नौ फीसदी सीटें
01 सितंबर 2025
लखनऊ। प्रदेश में 4 राजकीय मेडिकल कॉलेज कन्नौज, अंबेडकर नगर, जालौन और सहारनपुर में अनुसूचित जाति एवं जनजाति को 23 के बजाय 78 फीसदी आरक्षण दिया गया है। अति पिछड़े वर्ग को 13 फीसदी और सामान्य का हिस्सा सिर्फ नौ फीसदी है। निर्बल आय वर्ग (ईडब्ल्यूएस) का कोटा नहीं लागू है। ऐसे में हाईकोर्ट ने नीट 2025 की काउंसिलिंग रद्द करने का आदेश दिया है। हालांकि अब चिकित्सा शिक्षा विभाग दोबारा अपील की तैयारी में जुटा है।
प्रदेश में अनुसूचित जाति को 21, जनजाति को 2, अन्य पिछड़ा वर्ग को 27 और ईडब्ल्यूएस को 10 फीसदी आरक्षण देने की व्यवस्था है। मेडिकल कॉलेजों का निर्माण अलग अलग समय पर हुआ है। कन्नौज, अंबेडकर नगर, जालौन और सहारनपुर स्थित मेडिकल कॉलेज के निर्माण के वक्त समाज कल्याण विभाग की ओर से स्पेशल कंपोनेंट के तहत 70 फीसदी बजट दिया गया। जबकि 30 फीसदी बजट सामान्य था। उस वक्त इस बजट से हॉस्टल, प्रेक्षागृह सहित अन्य संसाधनों का निर्माण कराया गया। हाईकोर्ट में दाखिल की गई याचिका में बताया गया कि इन कॉलेजों के दाखिला लेने वाले छात्रों में हॉस्टल में 70 फीसदी अनुसूचित जाति एवं जनजाति के बच्चों को आरक्षण दिया जाना था, लेकिन विभागीय अधिकारियों की लापरवाही से इसकी गलत व्याख्या की गई।
एमबीबीएस की सीटों पर अनुसूचित जाति के 21 फीसदी और जनजाति के दो फीसदी को मिलाकर कुल 23 फीसदी की जगह 78 फीसदी आरक्षण दे दिया गया। यह व्यवस्था कई साल से चल रही है। इस वर्ष की काउंसिलिंग में भी इसी व्यवस्था के तहत सीटों आवंटित की गई हैं। ऐसे में हाईकोर्ट ने काउंसिलिंग ही रद्द कर दिया है।
यूपी : हाईकोर्ट ने NEET-2025 के तहत दाखिले में निर्धारित सीमा से अधिक आरक्षण का शासनादेश किया निरस्त, अंबेडकरनगर, कन्नौज, सहारनपुर और जालौन मेडिकल कॉलेज के प्रवेश रद्द
50 फीसदी आरक्षण सीमा नहीं लांघ सकते – हाईकोर्ट
लखनऊ। हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने नीट- 2025 परीक्षा के तहत कन्नौज, सहारनपुर, अंबेडकरनगर और जालौन के सरकारी मेडिकल कॉलेजों की सीटों को नए सिरे से भरने का आदेश दिया है। साथ ही यूपी सरकार के विशेष आरक्षण शासनादेश को निरस्त करते हुए राज्य सरकार को आरक्षण अधिनियम 2006 के तहत दाखिला देने को कहा है। अदालत में मेडिकल कॉलेजों की सीटें भरने के लिए निर्धारित सीमा से अधिक आरक्षण देने के शासनादेशों को चुनौती दी गई थी।
न्यायमूर्ति पंकज भाटिया की एकल पीठ ने यह फैसला नीट-2025 की अभ्यर्थी सबरा अहमद की याचिका पर दिया है। याची ने अंबेडकरनगर, कन्नौज, जालौन और सहारनपुर के सरकारी मेडिकल कॉलेजों में प्रवेश के लिए आरक्षण की स्वीकृत सीमा का मुद्दा उठाकर चुनौती दी थी। याची का कहना था कि उत्तर प्रदेश सरकार ने अनुसूचित जाति, जनजाति और ओबीसी अभ्यर्थियों को शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षण देने के लिए आरक्षण अधिनियम 2006 बनाया था। इस अधिनियम के तहत मेडिकल कॉलेजों में हुए दाखिलों में अधिनियम में दी गई आरक्षण की निर्धारित सीमा 50 फीसदी का उल्लंघन करके सीटें भरी गई। यानी शासनादेश जारी कर 50 फीसदी से अधिक आरक्षण दिया गया। यह कानून की मंशा के खिलाफ था। वहीं, राज्य सरकार की ओर से याचिका का विरोध किया गया।
अदालत ने कहा- राज्य सरकार का आदेश आरक्षण अधिनियम के खिलाफ :
कोर्ट ने कहा कि आरक्षण की सीमा तय करने वाला राज्य सरकार का आदेश साफ तौर पर आरक्षण अधिनियम 2006 के खिलाफ है। कोर्ट ने कहा कि सरकार आरक्षण की तय सीमा 50 फीसदी के नियम का बगैर किसी कानूनी प्राधिकार के उल्लंघन नहीं कर सकती। ऐसे में इन शासनादेशों को तर्कसंगत नहीं ठहराया जा सकता है। इस टिप्पणी के साथ कोर्ट ने आरक्षण सीमा का उल्लंघन करने वाले 2010 से 2015 के बीच जारी छह शासनादेशों को रद्द कर दिया।
आरक्षण अधिनियम 2006 के तहत नए सिरे से भरी जाएंगी सीटें अदालत ने राज्य सरकार को निर्देश दिया कि इन चारों मेडिकल कॉलेजों की सीटें आरक्षण अधिनियम 2006 के अनुसार भरी जाएं। सीटें भरने की सूचना पर कोर्ट ने चिकित्सा शिक्षा विभाग को आरक्षण अधिनियम 2006 के तहत इन सीटों को नए सिरे से भरने की कार्यवाही करने का निर्देश दिया।
चारों कॉलेजों की 340 सीटें होंगी प्रभावित
हाईकोर्ट के आदेश के बाद चारों कॉलेजों की 340 सीटों के दाखिले प्रभावित हो सकते हैं। हर कॉलेज में कुल 85 सीटें हैं। इनमें सात जनरल वर्ग के लिए, एससी वर्ग के लिए 62, एसटी वर्ग के लिए 5 व ओबीसी वर्ग के लिए 11 सीटें हैं।
दूसरे चरण की काउंसिलिंग में सीटों का वितरण बदलेगा चिकित्सा शिक्षा एवं प्रशिक्षण महानिदेशालय ने देर रात अपनी वेबसाइट पर हाईकोर्ट के फैसले की जानकारी दी है। यह भी कहा है कि दूसरे चरण की सीट मैट्रिक्स बदल सकती है। इस बारे में जल्द ही वेबसाइट पर सूचना दी जाएगी।
प्रदेश के सभी कॉलेजों पर पड़ सकता है असर
लखनऊ। प्रदेश में आठ अगस्त से शुरू हुई पहले चरण की काउंसिलिंग 28 अगस्त को पूरी हो चुकी है। दूसरे चरण की प्रकिया शुरू हो गई है। हाईकोर्ट के आदेश के बाद प्रदेश के सभी मेडिकल कॉलेजों की आरक्षित श्रेणी की सीटें प्रभावित हो सकती हैं। ऐसे में कुछ छात्रों के कॉलेज आवंटन प्रभावित होंगे।