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Monday, October 13, 2025

टीईटी अनिवार्यता पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर पुनर्विचार याचिका दायर करेगी बंगाल सरकार

टीईटी अनिवार्यता पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर पुनर्विचार याचिका दायर करेगी बंगाल सरकार


बंगाल की ममता सरकार सुप्रीम कोर्ट के उस आदेश पर पुनर्विचार याचिका दायर करेगी, जिसमें जिन कार्यरत प्राथमिक व उच्च प्राथमिक शिक्षक-शिक्षिकाओं ने शिक्षक पात्रता परीक्षा (टेट) उत्तीर्ण नहीं की है, उन्हें इसकी परीक्षा देने को कहा गया है। नौकरी कायम रखने के लिए उन्हें परीक्षा में उत्तीर्ण होना पड़ेगा। सूत्रों ने बताया कि पुनर्विचार याचिका के लिए राज्य के स्कूल शिक्षा विभाग की ओर से राज्य सचिवालय से अनुरोध किया गया है। वहां से हरी झंडी मिलते ही याचिका दायर कर दी जाएगी।

स्कूल शिक्षा विभाग का कहना है कि शिक्षक-शिक्षिकाओं के परीक्षा देने की तैयारी करने से स्कूलों में पठन-पाठन में व्यापक रूप से प्रभाव पड़ सकता है। आंकड़ों के अनुसार सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के फलस्वरूप बंगाल में करीब एक लाख शिक्षक-शिक्षिकाओं को परीक्षा देनी पड़ सकती है। बहुत से शिक्षकों को नौकरी खोने का भय सता रहा है। ऐसे बहुत से शिक्षक हैं, जो पिछले 15-20 वर्षों से अध्यापन कर रहे हैं। उन्हें भी परीक्षा से गुजरना पड़ेगा। मालूम हो कि उत्तर प्रदेश समेत कई राज्य इस बाबत पुनर्विचार याचिका दायर कर चुके हैं।




TET अनिवार्यता के सुप्रीम कोर्ट के आदेश के खिलाफ तामिलनाडु की रिव्यू याचिका, आदेश से पूरे मैकेनिज्म के कोलैप्स होने का जताया खतरा

नई दिल्लीः तमिलनाडु सरकार ने हाल ही में आए सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिका दायर की है, जिसमें टीचरों के लिए पात्रता परीक्षा (टीईटी) की योग्यता अनिवार्य की गई थी। 

राज्य सरकार ने पिटिशन में कहा है कि यह अनिवार्यता उन पर लागू होती है जिन्हें ऐक्ट के 1 अप्रैल 2010 से प्रभावी होने के बाद अधिसूचित मानकों के तहत नियुक्त किया गया था। 

याचिका में कहा गया है कि अगर आदेश को लागू हुआ तो पूरे मैकेनिज्म के कोलैप्स करने का खतरा है, जिसमें शिक्षकों का सामूहिक अयोग्य ठहरना और लाखों बच्चों को कक्षा शिक्षा से वंचित करना शामिल है।




टीईटी की अनिवार्यता को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती, टीईटी की अनिवार्यता पूर्व नियुक्त शिक्षकों पर लागू नहीं हो सकती

याचिका में कहा, आरटीई के संशोधन अधिनियम की धारा-2 को लागू करने से हजारों शिक्षकों की आजीविका पर संकट


नई दिल्ली। टीचर एलिजिबिलिटी टेस्ट (टीईटी) पास करने की अनिवार्यता से आहत उत्तर प्रदेश के शिक्षकों के संगठन यूनाइटेड टीचर्स एसोसिएशन ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर कर शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 (आरटीई) और इसके 2017 के संशोधन अधिनियम की वैधानिकता को चुनौती दी है। संगठन का कहना है कि अधिनियम की धारा 23 (2) और संशोधन अधिनियम की धारा-2 को लागू करने से राज्य के हजारों शिक्षकों की आजीविका पर संकट आ गया है।

याचिका में कहा गया है कि उत्तर प्रदेश में वर्षों से अलग-अलग नीतियों के तहत शिक्षक भर्ती होती रही है। वर्ष 1999, 2004 और 2007 में विशेष बीटीसी योजनाओं के तहत बीएड या बीपीएड धारक शिक्षकों की नियुक्ति हुई। इसके अलावा मृतक आश्रित कोटे से भी हजारों लोगों को शिक्षक पद पर लिया गया।

इन सभी नियुक्तियों को राज्य सरकार ने वैध माना और शिक्षक लंबे समय से सेवा में कार्यरत हैं। लेकिन एनसीटीई (राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद) ने 2010 से लेकर 2021 तक कई अधिसूचनाएं जारी कर न्यूनतम योग्यता को बार-बार संशोधित किया।

अब शिक्षकों के लिए अनिवार्य कर दिया गया है कि वे टीचर एलिजिबिलिटी टेस्ट (टीईटी) पास करें और स्नातक के साथ बीएड या यहां तक कि स्नातकोत्तर के साथ एकीकृत बीएड-एमएड होना चाहिए। संगठन ने तर्क दिया है कि कानून का पूर्व प्रभाव से प्रयोग असांविधानिक है। इससे वे शिक्षक भी अयोग्य घोषित कर दिए गए हैं, जिन्हें उनके समय की वैध नीतियों और आदेशों के तहत नियुक्त किया गया था। 

शिक्षकों के साथ भेदभावपूर्ण व्यवहार
याचिका में कहा गया है कि यह प्रावधान अनुच्छेद 14 का उल्लंघन करता है क्योंकि समान परिस्थितियों वाले शिक्षकों के साथ भेदभावपूर्ण व्यवहार हो रहा है। साथ ही यह यह अनुच्छेद 21 का भी उल्लंघन भी है, क्योंकि लंबे समय से सेवा दे रहे शिक्षक-शिक्षिकाओं को अचानक नौकरी और आजीविका से वंचित किया जा रहा है।

संगठन का कहना है कि टीईटी की अनिवार्यता पूर्व नियुक्त शिक्षकों पर लागू नहीं हो सकती क्योंकि उनमें से कई बीएड धारक हैं और नियमों के अनुसार वे टीईटी में बैठ ही नहीं सकते। याचिका में यह भी कहा गया है कि केंद्र सरकार की ओर से लाए गए संशोधन राज्य सरकारों की भर्ती नीतियों को पीछे से बदल रहे हैं। यह संघीय ढांचे और राज्यों की शक्ति में दखल है। याचिका में आरटीई अधिनियम की धारा 23 (2) और 2017 संशोधन अधिनियम की धारा 2 को असांविधानिक घोषित करने की मांग की गई है। साथ ही मांग की गई है कि इन प्रावधानों के तहत शिक्षकों की सेवा समाप्त करने की कार्रवाई पर रोक लगाई जाए।

'मौलिक अधिकारों के विरुद्ध'
यूटा के प्रदेश अध्यक्ष राजेंद्र सिंह राठौर ने इस अधिनियम संशोधन को मौलिक अधिकारों के विरुद्ध तथा असंवैधानिक बताया। उनका का कहना है कि प्रदेश के काफी शिक्षक ऐसे हैं जो अब टीईटी के लिए आवेदन ही नहीं कर सकते। 2001 से पहले इंटर, बीटीसी के आधार पर नियुक्त काफी शिक्षक जिनकी सेवा अभी पांच वर्ष से अधिक है। मृतक आश्रित कोटे में अनुकंपा के तहत इंटर शैक्षिक योग्यता के आधार पर नौकरी पाने वाले अध्यापक टीईटी के लिए आवेदन नहीं कर सकते हैं। ऐसे में पहले नियुक्त शिक्षकों इससे राहत दी जानी चाहिए।



अध्यापकों के लिए टीईटी की अनिवार्यता पर सुप्रीम कोर्ट से पुनर्विचार का अनुरोध, सरकारों पर राहत का दबाव बनाने के साथ ही आदेश पर पुनर्विचार करने की रणनीति 


अखिल भारतीय प्राथमिक शिक्षक संघ ने दाखिल की पुनर्विचार याचिका, उम्र और तमिलनाडु की भी दस्तक

नई दिल्ली: टीईटी की अनिवार्यता के सुप्रीम कोर्ट के आदेश के खिलाफ शिक्षकों ने कानूनी लड़ाई का मन बनाया है। सरकार के छोर पर राहत का दबाव बनाने के साथ ही शिक्षकों ने आदेश पर पुनर्विचार करने की गुहार लगाई है। शिक्षक संघ के अलावा उत्तर प्रदेश सरकार और तमिलनाडु सरकार ने भी सुप्रीम कोर्ट में फैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिकाएं दाखिल की हैं। तमिलनाडु सरकार का कहना है कि टीईटी की अनिवार्यता उन्हीं शिक्षकों पर लागू होती है जिनकी नियुक्ति आरटीई कानून लागू होने के बाद हुई। यह अनिवार्यता उन शिक्षकों पर लागू नहीं होती जिनकी नियुक्ति इस कानून के लागू होने के पहले के नियम कानूनों के तहत हुई।

सुप्रीम कोर्ट ने गत एक सितंबर को दिए आदेश में कक्षा एक से आठ को पढ़ाने वाले सभी शिक्षकों (जिनकी नौकरी पांच वर्ष से ज्यादा बची है) के लिए दो वर्ष के भीतर टीईटी पास करना अनिवार्य किया है। पांच वर्ष से कम बची नौकरी वालों को अगर प्रोन्नति पानी है तो उनके लिए टीईटी अनिवार्य है। इस आदेश का सबसे ज्यादा असर आरटीई कानून लागू होने से पहले हुई नियुक्तियों पर है। 


अखिल भारतीय प्राथमिक शिक्षक संघ ने सुप्रीम कोर्ट से टीईटी की अनिवार्यता के आदेश पर पुनर्विचार का अनुरोध करते हुए कहा कि इस फैसले का देश भर में करीब 10 लाख उन शिक्षकों पर प्रभाव पड़ रहा है। इन शिक्षकों की नियुक्ति शिक्षा का अधिकार (आरटीई) कानून लागू होने से पहले लागू नियम कानूनों के मुताबिक हुई है। उन शिक्षकों के लिए नियुक्ति के समय टीईटी (शिक्षक पात्रता परीक्षा) की अनिवार्यता नहीं थी और अब उनमें से ज्यादातर 50 वर्ष से ज्यादा आयु के हैं। संघ का कहना है कि टीईटी की अनिवार्यता को पूर्व प्रभाव से लागू करने से बड़ी संख्या में शिक्षक बर्खास्त होंगे, उन्हें प्रोन्नति नहीं मिलेगी उनका जीवनयापन का अधिकार प्रभावित होगा।

शिक्षक संघ ने वकील आरके सिंह के जरिये दाखिल पुनर्विचार याचिका में कहा कि एनसीटीई ने 23 अगस्त, 2010 को अधिसूचना जारी कर न्यूनतम योग्यता में टीईटी को जोड़ दिया। लेकिन अधिसूचना का पैरा चार नई तय न्यूनतम योग्यता से उन शिक्षको को छूट देता है जो अधिसूचना जारी होने की तारीख से पहले नियुक्त हो चुके हैं। इसलिए जो शिक्षक 23 अगस्त, 2010 से पहले नियुक्त हुए, उन्हें टीईटी से छूट है। 

कोर्ट ने अधिसूचना को ऐसे पढ़ा है जैसे कि कोई छूट थी ही नहीं, ऐसे में फैसले में स्पष्ट रूप से खामी है जिस पर पुनर्विचार की जरूरत है। यह भी कहा कि बाद में आए विधायी व कार्यकारी आदेशों में भी एनसीटीई की दी छूट जारी रहेगी। एनसीटीई ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल हलफनामे में स्पष्ट किया कि जिन शिक्षकों की नियुक्ति 23 अगस्त, 2010 के पहले हुई है उन्हें नौकरी में बने रहने या प्रोन्नति के लिए टीईटी करने की जरूरत नहीं। ये भी कहा गया कि उत्तर प्रदेश समेत कई राज्यों में शिक्षकों की भर्तियां प्रतियोगी परीक्षा से होती है।




टीईटी प्रकरण में सुप्रीम कोर्ट पहुंचे शिक्षक संगठन, टीईटी की अनिवार्यता के खिलाफ की गई याचिकाएं 

एआईपीटीएफ शिक्षकों के हित में मैदान में उतरा

सुप्रीम कोर्ट द्वारा प्राथमिक विद्यालयों के शिक्षकों के लिए टीईटी अनिवार्य किए जाने के बाद देश और प्रदेश से एक के बाद एक पुनर्विचार याचिका दाखिल की जा रही हैं


लखनऊ । शिक्षकों के लिए शिक्षक पात्रता परीक्षा (टीईटी) की अनिवार्यता व दो वर्षों में इसे पास किए जाने के सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के खिलाफ पुनर्विचार याचिका दाखिल कर दी गई है। भारतीय प्राथमिक शिक्षक संघ (एआईपीटीएफ) के राष्ट्रीय अध्यक्ष व उप्र प्राथमिक शिक्षक संघ (यूपीपीएसएस) के प्रदेश अध्यक्ष सुनील कुमार पांडेय ने बताया कि पुनर्विचार याचिका दाखिल कर दी गई है और कोर्ट से शिक्षकों के लिए राहत की मांग की गई है।

पूरे देश में ऐसे 20 लाख शिक्षक हैं, जिन्हें सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद टीईटी पास करना होगा। वहीं उत्तर प्रदेश में ऐसे 1.86 लाख शिक्षक हैं, जिन्हें टीईटी पास करना होगा। एआईटीपीएफ के नेशनल काउंसलर नरेश कौशिक का कहना है कि शिक्षकों के हितों को बचाने के लिए मजबूती के साथ कोर्ट में पक्ष प्रस्तुत किया जाएगा। हमें उम्मीद है कि सुप्रीम कोर्ट से राहत मिलेगी। राज्य सरकार इस मामले में पहले ही याचिका दायर कर चुकी है।




टीईटी अनिवार्यता के विरोध में अखिल भारतीय प्राथमिक शिक्षक संघ दाखिल करेगा पुनर्विचार याचिका 

 अखिल भारतीय प्राथमिक शिक्षक संघ की सोमवार को हुई ऑनलाइन बैठक में टीईटी अनिवार्यता के विरोध में सर्वोच्च न्यायालय में पुनर्विचार याचिका दाखिल किए जाने का निर्णय लिया गया। 


राष्ट्रीय अध्यक्ष सुशील कुमार पांडेय ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट में मजबूत तथ्यों के साथ लड़ाई लड़ेंगे। साथ ही सड़क से लेकर संसद तक शिक्षकों की सेवा को सुरक्षित करने के लिए संघर्ष करेंगे। वहीं 15 अक्तूबर तक काली पट्टी बांधकर शिक्षण कार्य करने व हस्ताक्षर अभियान पूर्व की भांति चलता रहेगा। 




टेट की अनिवार्यता के विरोध में आज से काली पट्टी बांधकर काम करेंगे शिक्षक

लखनऊ। टीईटी अनिवार्य किए जाने के बाद शिक्षकों ने एनसीटीई नियमावली में संशोधन की मांग की है। इसके लिए शिक्षकों ने दूसरे चरण के आंदोलन की घोषणा की है। अखिल भारतीय प्राथमिक शिक्षक संघ की ओर से इसकी शुरुआत नवरात्र के पहले दिन सोमवार से की जा रही है।

संघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष सुशील कुमार पांडेय ने बताया कि 22 सितंबर से 15 अक्तूबर तक शिक्षक काली पट्टी बांधकर शिक्षण कार्य करेंगे। साथ ही इस दौरान सभी जिलों में हस्ताक्षर अभियान चलाएंगे। हस्ताक्षर अभियान की कॉपी सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश, राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, केंद्रीय शिक्षा मंत्री को ईमेल से भेजा जाएगा।

उन्होंने कहा कि देश भर के शिक्षकों को टीईटी की बाध्यता से मुक्त करने व केंद्र सरकार के 2017 एनसीटीई की नियमावली में संशोधन किए जाने की मांग करेंगे। इसके बाद भी शिक्षकों को राहत नहीं मिली तो आगे के आंदोलन की घोषणा की जाएगी। 



टीईटी मामले में शिक्षकों का पक्ष सही से रखने की मांग

 लखनऊः कक्षा एक से आठवीं तक शिक्षक बने रहने के लिए शिक्षक पात्रता परीक्षा (टीईटी) की अनिवार्यता को लेकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ प्रदेश सरकार ने पुनर्विचार याचिका दाखिल कर दी है। अब शिक्षक संगठनों की ओर से शिक्षा विभाग को लिखे पत्र में यह मांग की गई है कि सरकार इस मुद्दे पर सही से पक्ष रखे, क्योंकि आदेश के बाद से कई तरह की भ्रम की स्थिति उत्पन्न हो गई है।

विशिष्ट बीटीसी शिक्षक वेलफेयर एसोसिएशन उत्तर प्रदेश के पदाधिकारियों का कहना है कि इस फैसले से प्रदेश के करीब 1.5 लाख और देशभर के लगभग 10 लाख शिक्षक प्रभावित हो रहे हैं। ये वे शिक्षक हैं जिन्हें शिक्षा अधिकार कानून (आरटीई एक्ट) के तहत 23 अगस्त 2010 को राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद (एनसीईटी) की अधिसूचना के आधार पर नियुक्त किया गया था। उस अधिसूचना में स्पष्ट किया गया था कि पहले से नियुक्त शिक्षकों को टीईटी करने की आवश्यकता नहीं है। 

संगठन के प्रदेश अध्यक्ष संतोष तिवारी ने कहा कि इंटरनेट मीडिया में यह गलत प्रचारित किया जा रहा है कि केंद्र सरकार ने 2017 में धारा 23(2) में संशोधन कर सभी शिक्षकों के लिए टीईटी अनिवार्य कर दिया है। दरअसल, यह संशोधन केवल अप्रशिक्षित शिक्षकों को प्रशिक्षण पूरा करने के लिए समय-सीमा बढ़ाने के लिए किया गया था, न कि पहले से नियुक्त शिक्षकों पर लागू करने के लिए।

 संयुक्त मोर्चा महासचिव दिलीप चौहान ने बताया कि कोर्ट का आदेश खेल के बीच में नियम बदलने जैसा है। वरिष्ठ उपाध्यक्ष शालिनी मिश्रा ने भी इसे त्रुटिपूर्ण करार दिया। संगठन के विधि विशेषज्ञ अरुण कुमार और विधि सलाहकार आमोद श्रीवास्तव ने कहा कि इस फैसले का पूर्वव्यापी प्रभाव नहीं होना चाहिए। उन्होंने सरकार से मांग की है कि वह सुप्रीम कोर्ट में अपना पक्ष रखते हुए स्थिति स्पष्ट करे।





अनिवार्य टीईटी को लेकर सीएम योगी से मिले एमएलसी,  सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दाखिल करने की मांग की 

लखनऊ। सुप्रीम कोर्ट द्वारा शिक्षकों के लिए टीईटी अनिवार्य किए जाने के बाद से प्रदेश भर के शिक्षकों की धड़कनें बढ़ी हुई हैं। इसी क्रम में भाजपा एमएलसी देवेंद्र प्रताप सिंह ने शनिवार को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मुलाकात की।


 उन्होंने इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दाखिल करने की मांग की। एमएलसी ने बताया कि शिक्षकों के चयन के लिए अलग-अलग समय में अलग-अलग योग्यता निर्धारित थी। ऐसे में इंटर, बीपीएड-सीपीएड, बीएड प्राथमिक स्तर पर अब टीईटी के लिए अर्ह नहीं हैं।

न्यायालय के फैसले से प्रदेश के काफी शिक्षकों और उनके परिवारों का भविष्य अंधकारमय होने का खतरा है। शिक्षकों में काफी निराशा है। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दाखिल करने के साथ ही सरकार अपनी विधायी शक्तियों का प्रयोग करते हुए नया कानून बनाने व संशोधित करने पर भी चर्चा की गई। एमएलसी ने बताया कि सीएम ने इस मामले में सकारात्मक कार्यवाही का आश्वासन दिया है। 




टीईटी से राहत के लिए प्रधानमंत्री और शिक्षामंत्री को भेजा जा रहा ज्ञापन, शिक्षक संगठनों की ओर से राहत देने की मांग हुई तेज

लखनऊ। सुप्रीम कोर्ट द्वारा सभी शिक्षकों के लिए टीईटी अनिवार्य किए जाने के बाद शिक्षक संगठनों ने इससे राहत देने की मांग तेज कर दी है। अलग-अलग संगठनों ने बृहस्पतिवार को भी इसके लिए प्रधानमंत्री, शिक्षा मंत्री व स्थानीय जनप्रतिनिधियों के माध्यम से ज्ञापन भेजा।

विशिष्ट बीटीसी शिक्षक वेलफेयर एसोसिएशन की ओर से प्रधानमंत्री, शिक्षा मंत्री व प्रमुख सचिव स्कूल शिक्षा को इसके लिए पत्र भेजा गया। प्रदेश अध्यक्ष संतोष तिवारी ने पत्र लिखकर अभियान की शुरुआत की।

प्रदेश महासचिव दिलीप चौहान ने बताया कि राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद की अधिसूचना 23 अगस्त 2009 में कहा गया है कि शिक्षक को शिक्षण कार्य करने के लिए न्यूनतम योग्यता डिप्लोमा (बीटीसी या समकक्ष) या बीएड के साथ ही छह माह का विशिष्ट बीटीसी प्रशिक्षण होना अनिवार्य है।

वरिष्ठ उपाध्यक्ष शालिनी मिश्रा, विधि सलाहकार आमोद श्रीवास्तव ने कहा कि प्रदेश भर से शिक्षक पत्र लिखकर प्रधानमंत्री, शिक्षा मंत्री व सचिव को इससे अवगत कराएंगे। साथ ही यह मांग करेंगे कि केंद्र सरकार इससे उच्चतम न्यायालय को अवगत कराए ताकि 23 अगस्त 2010 के पूर्व नियुक्त शिक्षकों में जो भ्रम की स्थिति पैदा हुई है, उससे राहत मिल सके।

दूसरी तरफ एक अन्य शिक्षक संगठन की ओर से बृहस्पतिवार से अपने जिले के जनप्रतिनिधियों के माध्यम से पीएम व शिक्षा मंत्री को ज्ञापन भेजने की शुरुआत की गई है। शिक्षक नेता सुशील कुमार पांडेय ने बताया कि 20 सितंबर तक यह अभियान चलेगा। गलत तथ्यों को सर्वोच्च न्यायालय में रखने से शिक्षकों के सामने यह समस्या पैदा हुई है। केंद्र सरकार शिक्षा के अधिकार अधिनियम में संशोधन कर शिक्षकों की सेवा को सुरक्षित करने का काम करे।



टीईटी की अनिवार्यता को लेकर केंद्र सरकार पर दबाव बनाने के लिए उत्तर प्रदेश में शिक्षकों का विरोध शुरू, अक्तूबर में दिल्ली कूच की तैयारी 

सुप्रीम कोर्ट द्वारा सभी शिक्षकों के लिए शिक्षक पात्रता परीक्षा (टीईटी) अनिवार्य किए जाने के आदेश के बाद प्रदेश भर के शिक्षक चिंतित और डरे हुए हैं। अगर केंद्र सरकार और शिक्षा मंत्रालय इस मामले में हस्तछेप नहीं करते हैं तो उनके सामने बडी विकट स्थिति उत्पन्न हो जाएगी।

इसी क्रम में उत्तर प्रदेश बीटीसी शिक्षक संघ के आह्वान पर बुधवार को प्रदेश भर से शिक्षकों द्वार पहले दिन ही 97890 पत्र प्रधानमंत्री के नाम भेजा गया। यह कार्यक्रम 20 सितंबर तक चलेगा। इस दौरान प्रदेश भर के शिक्षक प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से 25 अगस्त 2010 से पहले नियुक्त शिक्षकों को टीईटी से छूट देने की मांग करेंगे।

संघ के प्रदेश अध्यक्ष अनिल यादव ने कहा की 55 साल का शिक्षक कैसे परीक्षा पास कर पायेगा। अब शिक्षक बच्चों को पढ़ाए या अब खुद पढ़े। उन्होंने कहा की केंद्र सरकार के कानून और सुप्रीम कोर्ट के ताजा आदेश से प्रदेश के काफी शिक्षकों की नौकरी पर संकट गहराया है। केंद्र सरकार व एनसीटीई चाहे तो शिक्षकों को राहत मिल सकती है। अगर इस समस्या का समाधान नहीं निकलता है तो अक्तूबर में देश भर के शिक्षक दिल्ली के जंतर-मंतर पर धरना देंगे।दू

सरी ओर एक शिक्षक संगठन की ओर से प्रदेश भर में जिला मुख्यालयों पर बुधवार को प्रदर्शन कर डीएम के माध्यम से पीएम को ज्ञापन दिया गया। संगठन के सुशील कुमार पांडेय ने मांग की कि आरटीई लागू होने से पहले के शिक्षकों को इससे मुक्त रखा जाए। आरटी ई एक्ट में संशोधन किया जाए। 

वहीं विशिष्ट बीटीसी शिक्षक वेलफेयर एसोशिएशन 11 से 25 सितम्बर के बीच पीएम और शिक्षा मंत्री को पत्र भेजकर इस मामले में हस्तक्षेप की अपील करेंगे। प्रदेश अध्यक्ष संतोष तिवारी ने हम पत्र लिखकर सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए फैसले को चुनौती देने के लिए अभियान चलाएंगे। प्रदेश महासचिव दिलीप चौहान ने कहा कि संगठन शिक्षकों के लिए हर स्तर पर लड़ाई लड़ेगा।



टीईटी अनिवार्यता के विरुद्ध आंदोलन करेंगे यूपी के शिक्षक

प्रभावित शिक्षक बुधवार से पीएम को भेजेंगे पांच लाख पत्र

बीटीसी शिक्षक संघ 10 से 20 सितंबर तक चलाएगा अभियान

 लखनऊ : सुप्रीम कोर्ट द्वारा सभी शिक्षकों के लिए टीईटी (शिक्षक पात्रता परीक्षा) अनिवार्य किए जाने के आदेश के बाद देशभर के प्राथमिक और जूनियर हाई स्कूलों में कार्यरत लगभग एक करोड़ शिक्षक आंदोलन की तैयारी में जुट गए हैं। 

उत्तर प्रदेश बीटीसी शिक्षक संघ के अनुसार 10 से 20 सितंबर तक प्रदेश के शिक्षक प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को करीब पांच लाख पत्र भेजेंगे। इन पत्रों में 2011 से पहले नियुक्त शिक्षकों को टीईटी से छूट देने की मांग की जाएगी। 

शिक्षक संगठनों का कहना है कि केंद्र सरकार के कानून और सुप्रीम कोर्ट के ताजा आदेश से देश के करीब 30 लाख शिक्षकों की नौकरी पर संकट गहराया है। केंद्र सरकार चाहे तो शिक्षकों को राहत मिल सकती है। इसी उद्देश्य से संघ ने 10 से 20 सितंबर तक पत्र भेजने का अभियान चलाने का निर्णय लिया है। शिक्षक नेताओं ने चेतावनी दी कि यदि केंद्र सरकार इस मुद्दे पर सकारात्मक पहल नहीं करती है तो अक्टूबर में देशभर के शिक्षक दिल्ली के जंतर-मंतर पर धरना देंगे। जरूरत पड़ने पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश के खिलाफ पुनर्विचार याचिका भी दाखिल की जाएगी। इसके लिए वरिष्ठ अधिवक्ताओं का एक पैनल निर्णय का अध्ययन कर रहा है।

आंदोलन को नैतिक समर्थन देंगे शिक्षामित्र : शिक्षक अपने आंदोलन को व्यापक बनाने के लिए शिक्षामित्रों को साथ जोड़ना चाहते हैं, लेकिन शिक्षामित्रों ने साफ किया है कि वे सीधे आंदोलन में हिस्सा नहीं लेंगे बल्कि नैतिक समर्थन देंगे। पहले जब शिक्षामित्र आंदोलनरत थे, तब सहायक अध्यापकों ने उन्हें नैतिक सहयोग दिया था।




टीईटी के खिलाफ शिक्षक संगठन हो रहे लामबंद,  सुप्रीम कोर्ट के फैसले से चिंतित प्रदेश भर के शिक्षक धीरे-धीरे आंदोलन की राह पर चल निकले 

उत्तर प्रदेशीय शिक्षक संघ ने 16 को प्रदेशव्यापी आंदोलन का किया एलान

लखनऊ। सभी शिक्षकों के लिए टीईटी अनिवार्य किए जाने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले से चिंतित प्रदेश भर के शिक्षक धीरे-धीरे आंदोलन की राह पर चल निकले हैं। शिक्षक संगठन इस मुद्दे को लेकर लामबंद होने लगे हैं। उत्तर प्रदेशीय प्राथमिक शिक्षक संघ की रविवार को लखनऊ स्थित शिक्षक भवन में हुई बैठक में 16 सितंबर को प्रदेशव्यापी प्रदर्शन की घोषणा की गई है।

प्रदेश अध्यक्ष डॉ. दिनेश चंद्र शर्मा ने कहा कि टीईटी को लेकर केंद्र सरकार की ओर से बनाए गए कानून के क्रम में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय से देश भर के 20 लाख शिक्षकों के सामने संकट खड़ा हुआ है। प्रदेश में भी इससे प्रभावित होने वालों की बड़ी संख्या है। संघ इसके लिए हर स्तर पर संघर्ष करेगा। बैठक में निर्णय लिया गया कि केंद्र सरकार द्वारा बनाए गए कानून में संशोधन के लिए 16 सितंबर को सभी बीएसए कार्यालयों पर प्रदर्शन किया जाएगा। साथ ही डीएम के माध्यम से पीएम को संबोधित ज्ञापन भेजा जाएगा। उन्होंने आंदोलन में सभी शिक्षकों से शामिल होने का आह्वान किया।

संघ के महामंत्री संजय सिंह ने बताया कि जल्द एक प्रतिनिधिमंडल इस मामले में केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान से मिलेगा। जरूरत पड़ी तो इसके लिए कानूनी लड़ाई लड़ी जाएगी। बैठक में कोषाध्यक्ष शिव शंकर पांडेय, वरिष्ठ उपाध्यक्ष राधे रमण त्रिपाठी, प्रांतीय पदाधिकारी, जिला पदाधिकारी शामिल हुए। 


10 सितंबर को जिलों में होगा प्रदर्शन

लखनऊ। शिक्षकों के एक अन्य गुट ने टीईटी की अनिवार्यता को समाप्त करने के लिए प्रदेश के सभी जिला मुख्यालयों पर 10 सितंबर को प्रदर्शन की घोषणा की है। शिक्षक नेता सुशील कुमार पांडेय ने बताया कि सभी जिलों में डीएम के माध्यम से प्रधानमंत्री, केंद्रीय शिक्षा मंत्री व सीएम को संबोधित ज्ञापन दिया जाएगा।



टीईटी की अनिवार्यता के मुद्दे पर लंबी लड़ाई लड़ेगा AIPTF 

नई दिल्लीः नौकरी में बने रहने के लिए टीईटी की अनिवार्यता के मामले में शिक्षक संघ ने लंबी लड़ाई के लिए कमर कस ली है। शिक्षकों को राहत दिलाने के लिए अखिल भारतीय प्राथमिक शिक्षक संघ सरकार पर नियम-कानून में संशोधन करने का दबाव बनाएगा। शिक्षक संघ मांग करेगा कि जिन शर्तों पर नियुक्ति हुई थी, उन्हीं पर शिक्षकों की नौकरी जारी रहनी चाहिए और उन्हें प्रोन्नति मिलनी चाहिए। अगर नियुक्ति के समय टीईटी (शिक्षक पात्रता परीक्षा) जरूरी नहीं थी, तो अब इसे अनिवार्य नहीं किया जा सकता। हालांकि, सरकार पर राहत देने का दबाव बनाने के साथ-साथ शिक्षक संघ ने कानूनी विकल्प भी तलाशने शुरू कर दिए हैं और वकीलों से विचार-विमर्श चल रहा है।

सुप्रीम कोर्ट ने गत एक सितंबर को दिए फैसले में कहा है कि कक्षा एक से आठ तक के छात्रों को पढ़ाने वाले सभी शिक्षकों को दो वर्ष के भीतर टीईटी पास करनी होगी। इसमें नाकाम रहने वालों को अनिवार्य सेवानिवृत्ति दे दी जाएगी। प्रोन्नति के लिए भी टीईटी पास करना अनिवार्य है। सिर्फ जिनकी नौकरी पांच वर्ष से कम बची है, उन्हें टीईटी से छूट है। लेकिन, प्रोन्नति पाने के लिए उन्हें भी टीईटी पास करनी होगी। कोर्ट का आदेश पूरे देश के लिए है। इससे शिक्षकों में हड़कंप मचा हुआ है, क्योंकि देशभर में लाखों शिक्षक हैं, जिन्होंने टीईटी नहीं किया है। 2011 से पहले नियुक्त हुए शिक्षकों की नौकरी पर तलवार लटक गई है। 

शिक्षकों की नौकरी पर संकट को देखते हुए अखिल भारतीय प्राथमिक शिक्षक संघ सक्रिय हो गया है। संकट का हल ढूंढने और वकीलों से विचार-विमर्श के लिए संघ के अध्यक्ष सुशील पांडेय, सचिव मनोज कुमार सहित विभिन्न राज्यों से कई शिक्षक नेता दिल्ली आए हुए हैं। सुशील कहते हैं कि शिक्षक संघ टीईटी अनिवार्य करने के कोर्ट के फैसले से राहत के लिए सरकार से बात करेगा और दबाव बनाएगा। जो शिक्षक पहले भर्ती हुए थे, वे उस समय के नियमों के साथ नियुक्त हुए थे। उनका अधिकार है कि उनकी नौकरी उन्हीं सेवा शर्तों के मुताबिक जारी रहे और उन्हीं पर प्रोन्नति दी जाए।




टीईटी बना शिक्षकों की टेंशन, सुप्रीम फैसले से बढ़ी बेचैनी, NCTE की संशोधित गाइडलाइन वापस लेने की बढ़ रही मांग

लखनऊ। सुप्रीम कोर्ट द्वारा शिक्षकों के लिए टीईटी अनिवार्य किए जाने के बाद से प्रदेश के 4.50 लाख से अधिक शिक्षकों की धड़कनें बढ़ी हुई हैं। शिक्षक खुद को दोराहे पर खड़ा पा रहा है। अब यह तय किया जा रहा है कि वह इस निर्णय पर पुर्नविचार के लिए सुप्रीम कोर्ट में अपील करें या फिर आंदोलन का रास्ता अपनाएं।


उत्तर प्रदेशीय प्राथमिक शिक्षक संघ की ओर से सात सितंबर को इस मुद्दे पर महत्वपूर्ण बैठक बुलाई गई है। बैठक में केंद्र सरकार पर इस मामले में हस्तक्षेप करने की रणनीति बनाई जाएगी। साथ ही इस मामले में आगे और क्या किया जाए इस पर भी निर्णय लिया जाएगा।

संघ के प्रदेश अध्यक्ष डॉ. दिनेश चंद्र शर्मा ने बताया कि सभी जिलों के जिलाध्यक्ष व प्रदेश के पदाधिकारी इस बैठक में शामिल होंगे। उनसे वार्ता कर आगे का निर्णय लिया जाएगा। उन्होंने बताया कि हम प्रदेश व केंद्र सरकार से मिलकर अपना पक्ष रखेंगे और शिक्षक विरोधी एक्ट वापस लेने की मांग करेंगे। यदि सरकार मांग नहीं मानती है तो देशव्यापी आंदोलन का निर्णय लिया जा सकता है।

डॉ. शर्मा ने कहा कि किसी भर्ती के पूर्व सरकार द्वारा संबंधित पद के लिए जो भी योग्यता निर्धारित की जाती है उसको पूरा करने वाले अभ्यर्थी ही भर्ती किये जाते हैं। प्रदेश सरकार द्वारा समय समय पर शिक्षकों की भर्ती के लिए जो भी योग्यता निर्धारित की गई, उसको पूरा करने पर ही शिक्षक भर्ती हुए हैं।

ऐसे में 25-30 साल पहले निर्धारित योग्यता पर नियुक्त शिक्षकों पर वर्तमान भर्ती के लिए निर्धारित योग्यता थोपने को बनाया गया कोई भी कानून केवल काला कानून ही कहा जाएगा। 23 अगस्त 2010 की एनसीटीई की गाइडलाइन में संशोधन देश भर के शिक्षकों के साथ धोखा है। इसी संशोधन के तहत सुप्रीम कोर्ट ने देश भर के बेसिक शिक्षकों को दो साल में टेट करना अनिवार्य कर दिया है। अन्यथा सेवा से अनिवार्य सेवानिवृत्ति देने का आदेश जारी किया है।

आरटीई एक्ट का उल्लंघन
विशिष्ट बीटीसी शिक्षक वेलफेयर एसोसिएशन के प्रदेश अध्यक्ष संतोष तिवारी ने कहा है कि आरटीई एक्ट में साफ कहा गया है कि 2010 के पूर्व नियुक्त शिक्षकों के लिए टीईटी की अनिवार्यता नही है। ऐसे में सर्वोच्च न्यायालय के आदेश ने शिक्षकों को अंदर से हिला दिया है। संगठन इसके लिए हर सम्भव लड़ाई लड़ेगा। प्रांतीय महासचिव दिलीप चौहान ने कहा 20 से 25 साल नौकरी करने के बाद अचानक से यह कह देना कि बिना टीईटी सेवा से बाहर होना पड़ेगा। यह शिक्षकों और उनके परिवार के साथ बहुत बड़ा अन्याय है।



सुप्रीम कोर्ट के फैसले से आहत शिक्षक नहीं मनाएंगे शिक्षक दिवस, टीईटी मामले में केंद्र सरकार से हस्तक्षेप की अपील

लखनऊ। सुप्रीम कोर्ट द्वारा एक सितंबर को दिए आदेश में शिक्षण सेवा में बने रहने या पदोन्नति पाने के लिए शिक्षक पात्रता परीक्षा (टीईटी) को अनिवार्य करने से शिक्षक आहत हैं। अदालती फैसले से निराश शिक्षकों ने पांच सितंबर को शिक्षक दिवस नहीं मनाने का फैसला किया है। शिक्षक संगठनों ने कहा कि इस निर्णय से देश भर में 10 लाख से अधिक शिक्षकों की नौकरी पर संकट मंडरा रहा है। संगठनों ने इस मामले में केंद्र सरकार से हस्तक्षेप की अपील की है।


उत्तर प्रदेशीय प्राथमिक शिक्षक संघ के प्रदेश अध्यक्ष डॉ. दिनेश चंद्र शर्मा ने कहा है कि नौकरी पर मंडराते खतरे के बीच शिक्षक दिवस नहीं मनाने का फैसला किया गया है। संगठन की ओर से पांच सितंबर को किए जाने वाले सम्मान के कार्यक्रम भी स्थगित कर दिए गए हैं। कहा, सरकार शिक्षक दिवस पर जिन शिक्षकों को सम्मानित करेगी उन्हें दो साल का सेवा विस्तार मिलेगा। अगर उनकी नौकरी ही नहीं बचेगी तो इस सेवा विस्तार व सम्मान का वो क्या करेंगे? उन्होंने पीएम व केंद्रीय शिक्षा मंत्री से मामले में हस्तक्षेप कर शिक्षकों के साथ न्याय करने की अपील कही। कहा, देश भर के किसी शिक्षक की नौकरी प्रभावित नहीं होगी, यही घोषणा शिक्षकों के लिए वास्तविक सम्मान होगा।

प्राथमिक शिक्षक संघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष बासवराज गुरिकर, राष्ट्रीय महासचिव कमलाकांत त्रिपाठी, महामंत्री उमाशंकर सिंह व विनय तिवारी ने केंद्रीय शिक्षा मंत्री को पत्र भेजकर फैसले पर पुनर्विचार करने और जरूरत पर संसद से कानून पास कराने की मांग की। 

उप्र. बीटीसी शिक्षक संघ के प्रदेश अध्यक्ष अनिल यादव ने शिक्षा मंत्रालय पर टीईटी को लेकर किए गए संशोधन को छिपाने का आरोप लगाया। विशिष्ट बीटीसी शिक्षक वेलफेयर एसोसिएशन के प्रांतीय महासचिव ने भी संगठन शिक्षक दिवस न मनाने की घोषणा की है। शिक्षक नेता सुशील पांडेय ने पीएम को पत्र लिखकर सहानुभूति पूर्वक फैसला लेने का आग्रह किया है। 

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