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Saturday, September 6, 2025

एमबीबीएस सत्र शुरू, मेडिकल कॉलेजों में शिक्षकों का टोटा, उत्तर प्रदेश के सभी कॉलेजों में करीब 50 फीसदी शिक्षकों के पद खाली

एमबीबीएस सत्र शुरू, मेडिकल कॉलेजों में शिक्षकों का टोटा, उत्तर प्रदेश के सभी कॉलेजों में करीब 50 फीसदी शिक्षकों के पद खाली

सभी कॉलेजों में निरंतर चल रहे हैं साक्षात्कार, फिर भी भरे नहीं जा सके पद


लखनऊ। प्रदेश के चिकित्सीय संस्थानों एवं मेडिकल कॉलेजों में चिकित्सक शिक्षकों के औसतन 50 फीसदी पद खाली हैं। हालात यह हैं कि लखनऊ के डॉ. राम मनोहर लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान में 37, केजीएमयू में 20 और जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज कानपुर में भी 16 पद खाली हैं।

ऐसे ही बड़े शहरों में स्थित मेडिकल कॉलेजों और संस्थानों में रिक्त पदों की वजह सिर्फ शिक्षकों के नाम न आने और नाम वापस लेने की प्रवृत्ति है। दरअसल, चयनित शिक्षक साक्षात्कार के बाद पद ग्रहण ही नहीं करते। यही वजह है कि करीब 50 फीसदी सीटें खाली हैं। ऐसे में सरकार के लिए मेडिकल शिक्षकों की भारी कमी को पूरा करना चुनौती बना हुआ है।


भर्ती प्रक्रिया में देरी

प्रदेश के 13 राजकीय मेडिकल कॉलेजों में चिकित्सक शिक्षकों की भर्ती प्रक्रिया पिछले तीन साल से जारी है। इसके बावजूद शिक्षकों के पद भरे नहीं जा सके हैं। प्रदेश सरकार ने हर मेडिकल कॉलेज में 27 विभागों के गठन के आदेश दिए हैं। इनमें प्रत्येक विभाग में प्रोफेसर, एसोसिएट प्रोफेसर व असिस्टेंट प्रोफेसर की नियुक्ति की जानी है। इसके लिए कुल 645 पद सृजित किए गए हैं।

इनमें अब तक 135 पद ही भरे जा सके हैं। डॉ. राम मनोहर लोहिया संस्थान में 440 में से 165 पद खाली हैं। इसी तरह केजीएमयू में 403 में से 67 और एसजीपीजीआई में भी करीब 50 फीसदी सीटें खाली हैं।


निजी प्रैक्टिस पर रोक, वेतन कम और तबादला बना मुसीबत
कई शिक्षकों ने बताया कि अनुबंध पर रखे जाने वाले चिकित्सकों को प्राइवेट प्रैक्टिस पर छूट है। स्थायी नियुक्त चिकित्सकों को निजी प्रैक्टिस (बाहर मरीज देखने) पर रोक है। असिस्टेंट प्रोफेसर के रूप में काम करने वाले चिकित्सकों को मासिक करीब 1.20 लाख रुपये वेतनमान मिलता है, जो प्राइवेट अस्पतालों की अपेक्षा काफी कम है। यही वजह है कि तीन साल सेवा करने के बाद भी चिकित्सक नौकरी छोड़ देते हैं।

“कई बार सही मिलान न होने की यह बड़ी वजह बन जाती है”
कई मेडिकल कॉलेजों के प्राचार्यों ने बताया कि चिकित्सक शिक्षकों के न आने की बड़ी वजह यह है कि कई बार उनका विषय का मिलान विभाग से नहीं हो पाता। उदाहरण के लिए, रेडियोलॉजी व रेडियो डायग्नोसिस, फॉरेंसिक मेडिसिन व मेडिकल जूरिस्प्रूडेंस, नेत्र रोग व ऑप्थैल्मोलॉजी आदि का अलग विभाग है। इस वजह से कई बार नियुक्ति की प्रक्रिया में देरी हो जाती है।

खाली पदों को लेकर विवि को आदेश
जहां भी पद खाली हैं, उसका विज्ञापन जारी कर दिया गया है। राजकीय मेडिकल कॉलेजों में खाली पदों को विश्वविद्यालयों के जरिए पूरा किया जाएगा। जहां भी रिक्त पद रहेंगे, वहां एडहॉक आधार पर नियुक्ति की जाएगी। इसके लिए विवि को आदेशित किया गया है।


“साक्षात्कार की चल रही निरंतर प्रक्रिया के बावजूद शिक्षकों की कमी बनी हुई है। सभी कॉलेजों में साक्षात्कार की प्रक्रिया चल रही है। जल्द ही रिक्त पदों को भर लिया जाएगा। जहां भी पद खाली हैं, वहां एडहॉक शिक्षकों की नियुक्ति की जाएगी। जब तक नए पदों पर नियुक्ति नहीं हो जाती, एडहॉक से काम चलता रहेगा।”  ब्रजेश पाठक, उप मुख्यमंत्री

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