बरेली1सरकारी स्कूल हैं, शिक्षक हैं, भारी भरकम बजट है, मुफ्त किताबें हैं, ड्रेस है..फिर भी अशिक्षा का अंधियारा मिट नहीं पा रहा है। जो बच्चे पढ़ भी रहे हैं, कुछ सीख नहीं पा रहे है। वजह, सरकारी सिस्टम में इच्छाशक्ति का अभाव..। बस, ग्रामीण पृष्ठभूमि के सुशील पाठक ने शिक्षा में सुधार की इसी इच्छा को जगाने और आगे बढ़ाने का बीड़ा उठाया है। हथियार भी सरकारी..सूचना का अधिकार (आरटीआइ) के जरिये। अब तक जो किया, यह हरगिज नहीं कह सकते तस्वीर बदल गई। अलबत्ता, सुधार की दिशा में पहल जरूर हुई है। 1खुद बेहतर पढ़े, बाद में गिरता गया स्तर : मूलरूप से बेहद पिछड़े कटरी के गांव नत्थूरमपुरा के रहने वाले हैं पं. सुशील पाठक। गांव में ही पढ़े-बढ़े। जब खुद पढ़ते थे तो सीमित संसाधनों में भी परिषदीय स्कूलों में पढ़ाई के क्या कहने थे। जो सीखते, गुणवत्ता होती। वक्त बदला तो सरकारी शिक्षा बेपटरी होती चली गई। कहने को सर्व शिक्षा अभियान चला मगर करोड़ों पानी में यूं ही बह गए। नतीजा उल्टा हुआ, शिक्षा का स्तर गिरता चला गया। यह किसी से छिपा भी नहीं है। 1हालात बदलने की ठानी 1करोड़ों रुपये की बंदरबांट, शिक्षकों की फौज, मोटे वेतन..। इन सब के बाद स्कूलों में बच्चों की दुर्दशा देख सुशील पाठक बेहद दुखी हुए। उसके बाद तय किया, अपने स्तर से जो होगा हालात बदलने के प्रयास करेंगे। इस काम के लिए वर्ष 2011 में श्री शिरडी साई सेवा ट्रस्ट का गठन करके बतौर सरबराकार अभियान छेड़ दिया।1यह भी करके दिखाया 1परिषदीय स्कूलों में प्रतिवर्ष जाकर पाठ्य सामग्री वितरित की। बच्चों के बीच पहुंचकर उनका जन्मदिन मनाया। आर्थिक तंगी के कारण शिक्षा की मुख्य धारा से वंचित 50 बच्चों को मान्यता प्राप्त विद्यालयों में शिक्षा प्रदान कराई। करीब 20 छात्रओं की आइटीआइ का खर्च उठाकर उन्हें शिक्षा प्रदान कराई। बता दें, सुशील पाठक शहामतगंज स्थित साईं मंदिर चलाते हैं। प्रसाद की दुकानें किराए पर उठाकर उससे खर्चा निकालते हैं। गांव में खुद की कुछ खेती भी है।’>>विद्यालयों को गोद लेकर सरकारी नुमाइंदगी को दिखा रहे आइना 1’>>वर्ष 2011 में श्री शिरडी साई सेवा ट्रस्ट का गठन कियाऔर मिलती गई कामयाबी 1वर्ष 2015 में सुशील पाठक ने जिले में शिक्षा का हाल जानने के लिए आरटीआइ डाली। जबाव में पता चला कि करीब 100 परिषदीय प्राइमरी व जूनियर हाईस्कूल शिक्षक विहीन है। 400 विद्यालय एकल शिक्षक के भरोसे चल रहे हैं। स्कूलों में छात्र संख्या भी काफी कम थी। इसकी जानकारी मिलने के बाद उन्होंने शासन-प्रशासन से लेकर राज्यपाल व राष्ट्रपति को शिकायती पत्र भेजे। केंद्र व प्रदेश सरकार का ध्यान इस ओर आकर्षित कराया। प्रयासों ने जल्द ही असर दिखाया। विद्यालयों में शिक्षकों की तैनाती की स्थिति बदली गई। इनके प्रयासों को देख जिला प्रशासन ने नत्थूरमपुरा गांव के परिषदीय स्कूल को गोद दिया है। वे इन विद्यालयों में हालात सुधारकर सरकारी तंत्र को आइना दिखा रहे हैं।1
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