शाहजहांपुर : शैक्षिक सत्र 2016-17 एक अप्रैल से शुरू हो चुका है। पूरे जनपद में स्कूल चलो अभियान की रैली सरगर्मी के साथ निकाली गईं। नई क्लास और नई किताबों का स्वागत बच्चों द्वारा जिस गर्मजोशी के साथ करने की उम्मीद थी, वैसा कुछ भी नहीं हुआ। शहर हों या ग्रामीण परिषदीय विद्यालयों में बच्चों की उपस्थिति बेहद निराशाजनक है। ग्रामीण बच्चों का तो समझ में आता है कि वह अभिभावकों संग कृषि कार्यों में सहयोग कर रहे हैं, लेकिन शहरी बच्चों का स्कूल न आना समझ से परे है। इस समय खेतों से गेंहू कटान व संग्रहीकरण हो रहा है। जिसके चलते परिषदीय विद्यालयों से बच्चों की उपस्थिति प्रभावित हो रही है। इस संबंध में कुछ शिक्षकों ने इस तरह से अपने विचार साझा किए।सह जिला समन्वयक संदीप मिश्र ने कहा भारत में 70 प्रतिशत लोग कृषि पर निर्भर हैं। कुल राष्ट्रीय आय का 29 प्रतिशत कृषि से प्राप्त होता है। बेसिक शिक्षा विभाग की रणनीति 70 प्रतिशत लोगों के लिए तथा राष्ट्रीय आय को बढ़ाने के लिए होनी चाहिए। वहीं शिक्षिका प्रज्ञा मिश्र का कहना है कि कृषि देश का प्रमुख व्यवसाय है। देश की अधिकतम आबादी ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करती है। उच्च तकनीक उच्च शिक्षा से ही संभव है। बच्चों को विद्यालय में कृषि से जोड़कर पढाया जाए। इससे अभिभावक स्वयं बच्चों को स्कूल भेजेंगे। जबकि प्रियंका गोस्वामी ने कहा किसानों को स्कूल वाले रोजी छीनने वाले दुश्मन प्रतीत होते हैं, जोकि स्वाभाविक है। खेती उनका मुख्य व्यवसाय है। ऐसे में यदि हम उनको खेती छोड़, पढ़ने-लिखने को कहें तो यह गलत होगा। इससे कृषि व्यवसाय ही खत्म हो जाएगा। सीमा चौधरी ने कहा बच्चों को कृषि से जोड़कर ही पढ़ाना होगा। मसलन, विज्ञान में उन्नत बीज, कीटनाशक, दवाएं, जल से सिंचाई, फल सब्जियां कैसे शुद्ध उग सकती हैं। भूगोल में बीज बोने का उचित समय, मिट्टी की उर्वरा शक्ति का परीक्षण, उपयुक्त जलवायु पढ़ाया जाए तो बच्चे स्कूल से स्वत: जुडेंगे। वहीं अमिता शुक्ला का कहना है कि विद्यालय के बहुत सारे बच्चे हैं जो पिता के साथ खीरा, खरबूजा के खेत व अमरूद के बाग की रखवाली करते हैं। जब पिता खेत पर कार्य करते हैं तो खाना पहुंचाने का कार्य बच्चों के ही जिम्मे आता है। ऐसे में उत्तरदायित्व है कि बच्चों को समय सीमा में छूट दें। शिक्षिका नीरू ने बताया बच्चों को कृषि से जोड़कर पढ़ाया जाए तो उनके विद्यालय आने का रास्ता खुलेगा। मेरे संज्ञान में है पिता के कृषि के कार्यों में सहयोग करने की वजह से स्कूल कम आ रहे हैं। दोनों ही कार्य जरूरी हैं। ऐसे में शिक्षकों को चाहिए कि वह अभिभावकों को स्कूल बाद कृषि कार्यों में सहयोग लेने की बात कहें। इससे दोनों ही संतुष्ट रहेंगे तथा उपस्थिति भी प्रभावित नहीं होगी
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