संवाद सूत्र, नांगलसोती : परिषदीय विद्यालयों में परीक्षाफल घोषित कर नवीन सत्र शुरु हो गया है। ऐसे में परिषदीय विद्यालयों के सामने पुस्तकों की समस्याओं से जूझने की परेशानी प्रबल है। परिषदीय विद्यालय को विभाग प्राइवेट विद्यालयों की तर्ज पर संचालित करना चाहता है, लेकिन ऐसे में विभाग की पुरानी पुस्तकों से सत्र शुरु करने की व्यवस्था मजाक बन रही है।1बेसिक शिक्षा विभाग परिषदीय विद्यालयों को निजी स्कूलों की तरह संचालित करना चाहता है। इसके मद्देनजर अप्रैल माह से नवीन सत्र प्रारंभ हो गया है। यह व्यवस्था पिछले वर्ष से लागू है। विभाग स्कूलों को प्राइवेट विद्यालयों के नक्शे कदम पर सरकार द्वारा सत्र आरंभ करने का समय बदल दिया गया है, लेकिन विभाग बिना पुस्तकों के इसके क्रियान्वयन में लगा है। विभाग से पुस्तकों की कोई ठोस व्यवस्था नहीं है। सत्र प्रारंभ होने के बाद पुस्तकें सिर्फ बच्चों की ही समस्या नहीं है, शिक्षकों के लिए भी पुस्तकों की व्यवस्था करना तेढ़ी खीर है। 30 मार्च को परीक्षाफल वितरण करने के बाद जागरुकता कार्यक्रम चलाकर परिषदीय विद्यालयों में नामांकन बढ़ाने के लिए प्रयास किए जा रहे हैं, लेकिन पुस्तकों के अभाव में नए नामांकन होने वाले बच्चों की पढ़ाई कराना बड़ा सवाल है। विभागीय स्तर से पुस्तकों के लिए मांग पत्र कई माह पहले शासन को भेजा जा चुका है, लेकिन अभी तक पुस्तकों की उपलब्धता के बारे में जिम्मेदार अफसरों के पास कोई जवाब नहीं है। पुरानी किताबों से शिक्षा की अलख विभाग चाहता है कि परिषदीय विद्यालयों में पढ़ने वाले बच्चों से सत्र की समाप्ति के बाद पुस्तकें ले ली जाए और नई कक्षाओं में बच्चों को दोबारा से वितरण कर दी जाए, लेकिन योजना पूरी तरह मजाक बन रही है। परिषदीय विद्यालयों में अध्यनरत अधिकांश बच्चे पुस्तकें नष्ट कर देते हैं और गुम कर देते हैं। पुस्तकें वापसी का औसत कम है। विभाग चाहता है कि प्राइवेट स्कूलों की तर्ज पर परिषदीय विद्यालय संचालित हो, लेकिन आधे सत्र के निकलने तक बच्चों को पुस्तकें उपलब्ध नहीं कराई जाती है। ऐसे में प्राइवेट स्कूलों की तर्ज पर परिषदीय विद्यालयों को संचालित करना बड़ी चुनौती है। उधर इस संबंध में उत्तरप्रदेश प्राथमिक प्राथमिक संघ के उपाध्यक्ष सुधीर कुमार का कहना है कि परिषदीय विद्यालयों में यह योजना मजाक बन रही है। छोटे बच्चे पुस्तकें नष्ट कर देते हैं। विभाग के अप्रैल माह से सत्र शुरु करने का स्वागत है, लेकिन समय से पुस्तकों की उपलब्धता भी होनी चाहिए।
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