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Thursday, May 19, 2016

उन्नाव : शिक्षकों ने पाए मनचाहे विद्यालय, पुरुष शिक्षकों की भी काउंसिलिंग कराते हुए स्कूल चुनने का मिला मौका

बेसिक शिक्षा अधिकारी कार्यालय में बुधवार को प्राथमिक व जूनियर स्कूलों के 184 शिक्षक-शिक्षिकाओं की प्रमोशन की काउंसिलिंग हुई। जिसके चलते सुबह के 8 बजे से ही शिक्षक-शिक्षिकाओं का जमावड़ा बीएसए परिसर में लगा था। कुछ ही घंटों में बीएसए परिसर सैकड़ों की भीड़ से पट गया। चिलचिलाती धूप व उमस के बीच शिक्षक सूची चस्पा होने का इंतजार करने लगे। तो वहीं मनचाहा स्कूल पाने के लिए शिक्षक हर जोर जुगत में लगे हुये थे। बेसिक शिक्षा अधिकारी कौस्तुभ कुमार सिंह ने प्रमोशन काउंसिलिंग सूची को तीन बार चेंज करने के बाद हरी झंडी दी। लगभग 12:45 बजे जूनियर स्कूलों में 115 स्कूलों की सूची चस्पा हो सकी और घंटों की अफरातफरी के बाद काउंसिलिंग का आगाज हुआ। सबसे पहले विकलांग महिला शिक्षकों को मौका दिया गया, जिसके बाद अन्य को बारी-बारी से बुला स्कूल चुनने का विकल्प दिया गया। जूनियर की काउंसिलिंग के बाद प्राथमिक स्कूलों के 69 पदों की काउंसिलिंग कराई गई। काउंसिलिंग देर शाम तक चलती रही। काउंसिलिंग के बाद ही बीएसए ने शिक्षको को ज्वाइनिंग लेटर भी वितरित कराए। काउंसलिंग में बीईओ रंगनाथ चौधरी, अर¨वद कुशवाहा, बिरजू भारती, पंकज गौतम, पूनम गुप्ता ने जिम्मेदारी निभाई।पहली बार पुरुषों को भी मिला स्कूल विकल्प बीएसए ने व्यवस्था में बदलाव कर महिला शिक्षकों के साथ ही पुरुष शिक्षकों की भी काउंसिलिंग कराते हुए स्कूल चुनने का विकल्प दिया। स्कूल चुनने का मौका मिलने की जानकारी से रूबरू होते ही शिक्षकों ने फैसले को सराहा। इसके पहले हुई काउंसिलिंग में पुरुष शिक्षकों को रोस्टर से स्कूल आवंटित कर दिए जाते थे।
पानी न छांव, खूब हांफे शिक्षक1बुधवार की सुबह घड़ी में 9 बजने तक आसमान से आग जैसी गर्मी बरसने लगी थी। हर चेहरा गर्मी से बेहाल हुए जा रहा था। बीएसए आफिस में खुले आसमान के नीचे मौजूद शिक्षक शिक्षिकायें सूर्य की तपन से बिलबिलाए जा रहे थे। कोई किनारा काटने की हिम्मत भी नहीं जुटा पा रहा थी कहीं नाम बुलाया जाए और मौका न मिस हो जाए। हां बीएसए परिसर में खड़े दो तीन पेड़ जरूर कुछ लोगों के लिए राहत का सबब बने। जिस नजारे को बीएसए से लेकर जिम्मेदार अफसर देख रहे थे लेकिन किसी ने भी शिक्षकों के लिए छांव तो दूर की बात पीने के पानी तक की व्यवस्था करना गवांरा नहीं समझा। विभागीय खामी को हर कोई कोस रहा था।

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