रामपुर : जुलाई माह की दस्तक के साथ ही स्कूल और कालेज खुल गए हैं। निजी
स्कूलों के बच्चों का एक तिहाई सिलेबस भी पूरा हो चुका है, लेकिन प्राइमरी
स्कूलों के बच्चे सिर्फ ब्लैक बोर्ड पर ही भविष्य तलाश रहे हैं। बेसिक
शिक्षा विभाग अब तक बच्चों को किताबें उपलब्ध नहीं करा सका। यहां तक कि अभी
तो प्रकाशन भी तय नहीं हो सके हैं।
प्रदेश सरकार की ओर से प्राइमरी शिक्षा के स्तर को सुधारने के लिए तमाम प्रयास किए जा रहे हैं। स्कूलों तक बच्चों को पहुंचाने के लिए मिड् डे मील, फलाहार जैसी तमाम योजनाएं संचालित की जा रही हैं। नि:शुल्क ड्रेस और किताबों की उपलब्धता के साथ ही गांवों में शिक्षा के लिहाज से सकारात्मक माहौल बनाने के प्रयास किए जा रहे हैं। बेहतर शिक्षा व्यवस्था को लेकर तमाम दावे किए जा रहे हैं, लेकिन वास्तविक परिदृश्य में बेसिक शिक्षा का स्तर गिरता जा रहा है। सरकार की ओर से यह तो कहा जाता है कि सरकारी स्कूलों के बच्चों की तुलना प्राइवेट स्कूलों के बच्चों से की जाएगी, लेकिन यह सब ऐसे हालात में जहां प्राइवेट स्कूलों के बच्चों का एक तिहाई सिलेबस समाप्त हो चुका और प्राइमरी स्कूलों के बच्चों को किताबें तक उपलब्ध नहीं हो सकी हैं। यहां तक कि विभाग की ओर से अब तक प्रकाशन भी तय नहीं किए जा सके हैं। ऐसे में आगामी दो, तीन माह तक किताबों की उपलब्धता के आसार नजर नहीं आ रहे हैं। लिहाजा, स्कूलों में शिक्षक पढ़ाएं तो पढ़ाएं क्या? इन हालात में बेसिक शिक्षा का स्तर गिरना स्वभाविक है। बच्चे ब्लैक बोर्ड के सहारे ही उज्ज्वल भविष्य की राह देख रहे हैं।
पुस्तकों की उपलब्धता के लिए निदेशालय स्तर से ही प्रकाशन आदि तय किए जाते हैं। टेंडर प्रक्रिया होती है, जिसके बाद किताबें मिलती हैं और फिर उन्हें स्कूलों तक पहुंचाया जाता है। इस बार निदेशालय से ही पुस्तकों को लेकर कोई जानकारी नहीं हैं। प्रकाशन भी तय नहीं हो सके हैं। संभव है कि जल्द ही यह काम पूरा हो और आगामी दो माह के भीतर बच्चों को पुस्तकें उपलब्ध कराई जा सकें।
- एसके तिवारी,जिला बेसिक शिक्षाधिकारी, रामपुर।
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