प्रमोद सिंह, हाथरस1युग चाहे जो रहा हो। मगर, शिक्षा की अहमियत अहम रही है। इस्लाम प्रवर्तक मुहम्मद साहब ने 14 सौ साल पहले कहा था, ‘इल्म के लिए अगर चीन भी जाना पड़े तो जाओ’। हालांकि, उस दौर में न तो बस, ट्रेन और जहाज थे, न ही इतने सुगम रास्ते। फिर भी तालीम पर इतना जोर। वक्त बदला। विकास के स्वरूप बदले। इस आधुनिक युग में भी शिक्षा का रंग नहीं बदला। इतनी सहूलियतों के बाद भी कुछ ‘अभागे’ शिक्षा से वंचित रहे जाते हैं। भला हो, साक्षर भारत मिशन का। जो निरक्षरों को साक्षर बना रहा है। बहरहाल, अब तक इस मिशन के तहत एक लाख से ज्यादा निरक्षर साक्षर बन चुके हैं। इसमें उनकी चाह को भी नजरअंदाज नहीं कर सकते हैं। वे हौसले की ‘खेती’ में ‘अक्षर’ की फसल उगाने में कामयाब रहे। 1लक्ष्य भेदने के करीब : साक्षर भारत मिशन के तहत गांव पंचायत स्तर पर लोक शिक्षा केंद्र चल रहे हैं। पांच साल पहले जिले को एक लाख 71 हजार 411 निरक्षरों को साक्षर बनाने का लक्ष्य दिया गया था। अब तक एक लाख 36 हजार 411 साक्षर बन चुके हैं। वर्ष में दो बार लोक शिक्षा केंद्रों पर परीक्षा होती है। निरक्षरों को प्रेरक पढ़ाते हैं।1 केंद्रों की कमी : जिले में 430 लोक शिक्षा केंद्र हैं, लेकिन संचालित सिर्फ 390 ही हैं। स्वीकृत केंद्रों के लिए कुल 860 प्रेरकों की जरूरत है। मगर, सरकार ने सिर्फ 702 प्रेरकों की ही तैनाती कर रखी है। शासन-प्रशासन गौर करे तो सभी को साक्षर बनाने का लक्ष्य समय से पहले भी भेदा जा सकता है।1बढ़ी साक्षरता दर : 2001 की जनगणना के अनुसार जिले की साक्षरता 60.05 प्रतिशत थी। साक्षर भारत मिशन के तहत गांवों में जब लोगों को साक्षर किया गया तो 2011 की जनगणना के अनुसार साक्षरता 73.31 प्रतिशत हो गई। अधिकारियों का दावा है कि अब जिले में मात्र 35 हजार लोग निरक्षर रह गए हैं।
No comments:
Write comments