सरकारी स्कूलों में बच्चों को भोजन से लेकर यूनिफार्म तक बांटा जा रहा है। इस पर करोड़ों रुपये खर्च हो रहे हैं लेकिन बिन किताब के यह सबकुछ कितना सार्थक है इसका अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है। अब आलम यह है कि छह माह बाद किताब तो बांटे नहीं और पढ़ाई का हिसाब लेने के लिए विभाग ने पूरी तैयारी कर ली है। जिले के 654 परिषदीय उच्च प्राथमिक और 1810 प्राथमिक विद्यालयों में पढ़ने वाले करीब ढाई लाख बच्चों को पठन-पाठन के लिए शासन से किताब मंगाई गई थी लेकिन छह महीने बीतने के बाद भी अब तक पूरी किताब नहीं आ सकी। आलम यह है कि अप्रैल से शुरू हुए इस शैक्षिक सत्र का छह महीने बीतने के बाद 15 अक्टूबर से अर्धवार्षिक परीक्षा भी शुरू हो रही है। 1 ऐसे में सवाल उठता है कि जब किताब ही नहीं बंटी तो बच्चे परीक्षा क्या देंगे। उनकी पढ़ाई का वास्तविक मूल्यांकन कैसे होगा। सूत्रों की मानें तो किताबों की कमी को पूरा करने के लिए पुरानी किताबें बांटी गईं लेकिन वह किताबें पर्याप्त नहीं है। शिक्षक भी दबी जुबान से कहते हैं कि जब किताब ही नहीं मिली तो बच्चों की पढ़ाई कितनी होगी। स्कूल में तो पढ़ाई करा दी गई लेकिन घर पर जब तक बच्चे होमवर्क नहीं करते तब तक उनमें ग णवत्ता नहीं आती। उधर, इस संबंध बीएसए अमरनाथ सिंह ने कहा कि जितनी किताबें शासन से मिली थीं उतनी किताबें बांट दी गई हैं। कुछ बच्चों को पुरानी किताबें भी दी गई हैं।
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