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Thursday, December 24, 2015

शिक्षा की राहें : संभावनाओं के हाई-वे पर खड़ा भारत, कॉपी-किताब से लेकर कंप्यूटर तक : एक समग्र अवलोकन

आजादी के कई दशक बाद तक भारतीय स्कूल की कक्षाओं में कॉपी-किताब और पेंसिल दिखती थीं, लेकिन आज देश के स्कूलों की कक्षाएं स्मार्ट हो गई हैं और ब्लैक बोर्ड की जगह पावर पॉइंट प्रेजेंटेशन ने ले ली है। पिछले 80 वर्षो में हमारी उच्च शिक्षा का स्तर अंतरराष्ट्रीय पैमाने को छूने लगा है, जानकारी दे रहे हैं हेमेंद्र मिश्र

भारत की पिछले आठ दशकों की यात्र को आप किस तरह देखते हैं?पिछले अस्सी वर्षो में देश ने काफी तरक्की की है, जिसमें सबसे ज्यादा योगदान हमारे संविधान का रहा है। इसी ने भारत को एक सार्वभौम गणराज्य बनाया। आज देश में आधुनिक उद्योगों के साथ ही कई उच्च शिक्षण संस्थान हैं। विश्व स्तर पर भारत में पढ़े-लिखे इंजीनियर, डॉक्टर, अर्थशास्त्री, प्रबंधक धाक जमाए हुए हैं। अमेरिका-यूरोप के नामचीन विश्वविद्यालयों में भारतीय प्रोफेसर और डीन हैं। सिलिकॉन वैली में अब भारत से पढ़कर आए युवाओं को नए उत्पादों की खोज करते हुए आसानी से देखा जा सकता है। कुल मिलाकर इन अस्सी वर्षो में हम काफी आगे बढ़े हैं।

उन संस्थानों के बारे में बताएं, जो आजादी के बाद मील के पत्थर के रूप में उभर कर सामने आए हैं?आज आईआईटी, आईआईएम, ऑल इंडिया इंस्टीटय़ूट ऑफ मेडिकल साइंस जैसे संस्थानों का लोहा पूरी दुनिया मानती है। भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) उद्योग को हर जगह सम्मान की नजरों से देखा जाता है। हमें भूलना नहीं चाहिए कि इन सबकी नींव आजादी के बाद प्रारंभिक दो दशकों में ही रखी गई थी। आज अगर भारत की छवि एक आधुनिक राष्ट्र की बनी है, तो इसमें इन संस्थानों की बड़ी भूमिका है। वैसे सच यह भी है कि देश में पठन-पाठन का माहौल बेहतर बनाने में मीडिया ने भी काफी योगदान दिया है।

राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय मुद्दों के साथ ही साहित्य को भी अखबारों ने खूब जगह दी। हिंदी साहित्य में भी ‘हिन्दुस्तान’ अखबार का योगदान काफी अहम माना जाना चाहिए। इसने कई हिंदी-उर्दू लेखकों के सपनों को पंख दिए हैं।आने वाले दो दशकों में शिक्षा के क्षेत्र में भारत की कैसी तस्वीर उभरने वाली है?भारत के सामने अगले दो दशकों में काफी चुनौतियां आने वाली हैं।

विज्ञान, उद्योग, अनुसंधान जैसे क्षेत्रों में विकास की प्रचुर संभावनाएं हैं, मगर लचर आधारभूत ढांचा, सार्वजनिक विनियोग में गिरावट, सरकारी सेवाओं में कुछत्रुटियों के कारण देश औसत विकास दर के जाल में फंस सकता है। ठीक इसी तरह, यह तय है कि साल 2035 तक भारत सूचना प्रौद्योगिकी, बायो-टेक्नोलॉजी, रोबोटिक्स, अंतरिक्ष विज्ञान, थ्री-डी प्रिंटिंग, इंटरनेट-ऑफ-थिंग्स जैसे कई क्षेत्रों में क्रांतिकारी परिवर्तन का गवाह बनेगा। मगर सवाल यह है कि 21वीं सदी के हाई-वे पर खड़ी इन विराट संभावनाओं के लिए हम स्वयं को कितना तैयार मानते हैं?

साल 1951 में जो साक्षरता दर 18.33 फीसदी थी, वह इन दशकों में बढ़ते हुए 74.04 प्रतिशत तक पहुंच गई है। निश्चय ही, अब भी सुधार की कई गुंजाइशें हैं, कई चुनौतियों से हमें पार पाना है, मगर सच यह भी है कि पिछले 80 वर्षो में भारत में शिक्षा के क्षेत्र में क्रांतिकारी परिवर्तन आया है, जो अच्छा संकेत है।

क दौर था, जब कक्षाओं में सिर्फ कॉपी-किताब और पेंसिल ही दिखती थीं। चंद अपवादों को छोड़ दें, तो स्कूल भवन बदहाली में होते थे। शिक्षकों की दशा कोई बेहतर नहीं थी और देश की साक्षरता दर भी 20 फीसदी से नीचे थी। मगर समय का पहिया आगे बढ़ा, तो कक्षाएं स्मार्ट क्लास में बदलने लगीं। बच्चे की-बोर्ड से खेलने लगे। कंप्यूटर, अंग्रेजी सहित विदेशी भाषाएं भी पढ़ाई का हिस्सा बन गईं। शिक्षक भी स्मार्ट हुए। एनिमेशन और पावर पॉइंट प्रेजेंटेशन उनकी नई कलम बनें। शिक्षा व्यवस्था की यह तस्वीर सिर्फ प्राथमिक या माध्यमिक शिक्षा तक ही सिमटी नहीं रही, बल्कि उच्च और उच्चतर शिक्षा भी ऐसे ही बदलावों का गवाह बनी। साल 1951 में जो साक्षरता दर 18.33 फीसदी थी, वह इन दशकों में बढ़ते हुए 74.04 प्रतिशत तक पहुंच गई है।

निश्चय ही, अब भी सुधार की कई गुंजाइशें हैं, कई चुनौतियों से हमें पार पाना है, मगर सच यह भी है कि पिछले 80 वर्षो में भारत में शिक्षा के क्षेत्र में क्रांतिकारी परिवर्तन आया है।आज हमारे देश में शिक्षा का जो स्वरूप है, वह कई उतार-चढ़ाव के बाद इस मुकाम पर पहुंचा है। इसमें सबसे महत्वपूर्ण है, 14 जुलाई, 1964 को गठित कोठारी आयोग। तत्कालीन यूजीसी अध्यक्ष दौलत सिंह कोठारी के नेतृत्व में बने इस आयोग में पांच विदेशी शिक्षाविद् भी थे। इसी आयोग की सिफारिश के बाद देशभर में 10+2+3 पैटर्न पर शिक्षा प्रणाली का मानकीकरण हुआ। बुनियादी विषय के तौर पर विज्ञान को शामिल करने के साथ ही नारी शिक्षा पर भी इस आयोग ने खासा जोर दिया।

यही वजह है कि जब 1968 में शिक्षा नीति की घोषणा हुई, तो उसमें इसके कई सुझाव थे। मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा, शिक्षकों की स्थिति और वेतनमान में संशोधन, शिक्षा के समान अवसर और विज्ञान शिक्षा पर जोर जैसी नीतियां कोठारी आयोग की सिफारिशों की ही देन हैं। इसी तरह 1976 में 42वें संविधान संशोधन के तहत शिक्षा को राज्य सूची से निकालकर समवर्ती सूची में रखने की पहल भी शिक्षा व्यवस्था में सुधार की मजबूत बुनियाद बनी।

वर्ष 1986 में प्रधानमंत्री राजीव गांधी के कार्यकाल के दौरान आई नई शिक्षा नीति ‘नेशनल पॉलिसी ऑन एजुकेशन’ (एनपीई) भी मील का पत्थर साबित हुई। यह नीति कई उद्देश्यों के साथ तैयार की गई थी। शिक्षा में विषमताओं को खत्म करने पर विशेष जोर और खासकर महिलाओं, अनुसूचित जातियों व जनजातियों को शिक्षा मुहैया कराने का उसमें संकल्प था। इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय भी इसी नीति की देन है। इन तमाम प्रयासों के बाद शिक्षा को अधिकार बनाना ही शायद बचा रह गया था, जिसे दिसंबर, 2002 में 86वें संविधान संशोधन में पूरा कर दिया गया। इस संशोधन के तहत अनुच्छेद 21ए को संशोधित करते हुए शिक्षा को मौलिक अधिकार बना दिया गया। बच्चों के लिए मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा अधिनियम एक अप्रैल, 2010 को पूरी तरह लागू हो गया। विकास की इस यात्र में आईआईटी, आईआईएम जैसे संस्थान भी अस्तित्व में आए।बिड़ला इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट टेक्नोलॉजी (बिमटेक) के निदेशक हरिवंश चतुर्वेदी कहते हैं,‘पिछले 80 वर्षो की बड़ी उपलब्धि उस आधारभूत ढांचे का निर्माण होना भी है, जिसके बलबूते 21वीं सदी में भारत को एक आर्थिक ताकत और उभरती महाशक्ति की पहचान मिली है। इसमें निश्चय ही प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू का बड़ा हाथ है, जिन्होंने आधुनिक उद्योगों के साथ ही उच्च शिक्षण संस्थानों की नींव रखकर भारत को एक आधुनिक राष्ट्र बनाने की महायात्र शुरू की थी।’ वाकई पिछले आठ दशकों में देश की शिक्षा व्यवस्था में बड़ा बदलाव आया है। आधुनिक शिक्षा गांवों की ओर तेजी से बढ़ी है। गांव-गांव में निजी स्कूल दिखने लगे हैं। वैश्विक बोलचाल की भाषा होने के कारण अंग्रेजी सीखने और समझने की ललक ग्रामीण बच्चों में भी बढ़ी। कभी महिला शिक्षा को लेकर उदासीन रहने वाला भारतीय समाज आज अपनी लड़कियों के हाथों में भी किताबें थमाने लगा है। शिक्षा के क्षेत्र में भारत तेजी से प्रगति कर रहा है। केंद्रीय और निजी विश्वविद्यालयों में विदेशी छात्रों की बढ़ती संख्या इसका प्रमाण है कि अपने देश में शिक्षा के क्षेत्र में काफी काम हो रहा है।

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