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Friday, April 8, 2016

आरटीई का मखौल : नर्सरी में गरीब छात्रों के दाखिले पर अड़ंगा, अब निजी स्कूलों को नर्सरी में भी देना होगा मुफ्त दाखिला, फीस प्रतिपूर्ति का बहाना लेकर लगा रहे अड़ंगा


लखनऊ : निजी स्कूल गरीब छात्रों को मुफ्त में दाखिला देने में तरह-तरह का अड़ंगा लगाते हैं। कक्षा एक से लेकर आठ तक निजी स्कूलों में गरीब छात्रों के लिए करीब 25 हजार सीटें हैं मगर यह अधिकतम दो प्रतिशत तक ही भरी हैं। अब इस वर्ष सरकार की ओर से नर्सरी क्लास में भी शिक्षा का अधिकार अधिनियम (आरटीई) के तहत 25 प्रतिशत सीटों पर दाखिले के आदेश जारी हुए हैं तो निजी स्कूलों ही हवाइयां उड़ी हुई हैं। अब वह इनमें दाखिले के लिए शुल्क प्रतिपूर्ति के नियम और तरह-तरह की अड़ंगे लगा रहे हैं।

इधर जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी कार्यालय में अभी तक करीब 250 आवेदन आरटीई के तहत निश्शुल्क दाखिले के लिए आ चुके हैं। सत्यापन के बाद पहले चरण में 16 को दाखिला देने की हरी झंडी दे दी गई है। 1राजधानी में निजी स्कूलों में करीब 25 हजार सीटें आरटीई के तहत निश्शुल्क दाखिले के लिए आरक्षित हैं। पिछले वर्ष सबसे अधिक 677 विद्यार्थी कक्षा एक से कक्षा आठ तक निजी स्कूलों में दाखिला पाए। यानी मात्र दो प्रतिशत ही सीटें भर पाईं। वहीं इस शैक्षिक सत्र में अभी तक निश्शुल्क दाखिले के लिए 250 आवेदन आ चुके हैं। पहले चरण में दाखिले के लिए 16 विद्यार्थी पात्र पाए गए हैं, बाकी सत्यापन का काम चल रहा है। फिलहाल अब सरकार की ओर से नर्सरी कक्षा में भी 25 प्रतिशत सीटों पर गरीब विद्यार्थियों को दाखिला देने की हरी झंडी दे दी है।

अब निजी स्कूलों का तर्क है कि जब आरटीई के तहत 6 वर्ष से 14 वर्ष की आयु तक के विद्यार्थियों को दाखिला देने का नियम है और शिक्षा विभाग की ओर से कक्षा एक से आठ तक दाखिला लेने वाले विद्यार्थियों की शुल्क प्रतिपूर्ति के तौर पर 450 रुपये देने का प्रावधान है तो आखिर दाखिला कैसे दें। यही नहीं प्री-प्राइमरी की मान्यता शिक्षा विभाग देता ही नहीं है तो फिर निश्शुल्क दाखिले का क्या मतलब है। फिलहाल वह नर्सरी में भी गरीब विद्यार्थियों को निश्शुल्क दाखिला देने के आदेश से परेशान हैं और इसकी काट ढूंढ़ रहे हैं।

गरीबों के लिए अलग स्कूल खोलकर नहीं बच सकते : राजधानी में सभी बड़े कांवेंट स्कूल अपने यहां पर अलग-अलग नाम से गरीब घरों के विद्यार्थियों के लिए स्कूल चलाते हैं। उनकी पढ़ाई शाम को होती है या फिर अलग से। आरटीई एक्सपर्ट आमिर हुसैन कहते हैं कि यह अच्छी बात है कि वह अलग से स्कूल चलाकर गरीबों को पढ़ा रहे हैं, लेकिन आरटीई के तहत एक कक्षा में 75 प्रतिशत छात्र जो फीस देकर पढ़ रहे हैं उन्हीं के साथ 25 प्रतिशत गरीब छात्रों को पढ़ाना अनिवार्य है। 1आरटीई के तहत दाखिले के पात्र : एससी, एसटी व ओबीसी के विद्यार्थी, ऐसे बच्चे जिनके अभिभावक की वार्षिक आय एक लाख से कम हो, बीपीएल कार्ड धारक अभिभावकों के बच्चों को निजी स्कूलों में 25 प्रतिशत सीटों पर निश्शुल्क दाखिला देने का प्रावधान है।

मुफ्त में ड्रेस किताबें तो अभी दी ही नहीं जा रहीं : निजी स्कूलों में आरटीई के तहत निश्शुल्क दाखिला लेने वाले विद्यार्थियों को दिल्ली सहित अन्य राज्यों में निश्शुल्क ड्रेस व किताबें भी दिलाई जा रही हैं। इसके लिए सरकार फीस के साथ इस पर हुए खर्च की भी प्रतिपूर्ति कर रही है। विशेषज्ञ बताते हैं कि यूपी में अभी ऐसा नहीं हो पा रहा। यही कारण है कि यहां निजी स्कूल गरीब छात्रों को महंगी ड्रेस व किताबें खरीदने के नाम पर परेशान करते हैं।

निजी स्कूलों में कोचिंग संचालकों का बड़ा नेटवर्क काम कर रहा है। यह नामचीन स्कूलों में अपने एक्सपर्ट भेजकर विद्यार्थियों को बकायदा क्लास में पढ़ाते हैं। इसकी एवज में छात्रों से अलग से फीस वसूलते हैं। राजधानी में कई बड़े स्कूलों में तो कोचिंग क्लासेज के ऑफिस भी खुले हुए हैं। अभिभावकों को सहूलियत देने के नाम पर उन्हें ठगा जा रहा है। लुआक्टा के पूर्व अध्यक्ष डॉ. मौलिन्दु मिश्र कहते हैं कि निजी स्कूल हर चीज में कमाई का रास्ता खोज ही लेते हैं। स्कूलों में खुले कोचिंग संस्थानों के कार्यालय में अभिभावक मोल-तोल भी नहीं कर पाता। हां स्कूल को कोचिंग की ओर से एक माटी रकम जरूर मिलती है।

अभिभावकों की जेब ढीली करने में वैन संचालक भी पीछे नहीं : अभिभावकों की जेब ढीली करने में वैन संचालक व बस संचालक भी पीछे नहीं हैं। यह स्कूलों से साठगांठ करके मोटी रकम अभिभावकों से लेते हैं। तीन से पांच किलोमीटर के न्यूनतम पंद्रह सौ से लेकर अठ्ठारह सौ रुपये लिए जाते हैं। हर साल यह अपना किराया बढ़ाते हैं। 20 मई से 30 जून तक जब स्कूल बंद रहता है तब भी पूरे महीने का किराया यह अभिभावकों से वसूलते हैं। उप्र माध्यमिक शिक्षक संघ के प्रदेशीय मंत्री व प्रवक्ता डॉ. आरपी मिश्र कहते हैं कि अधिकारियों की ढिलाई से स्कूल बेलगाम हो गए हैं।

प्री-प्राइमरी क्लास की मान्यता शिक्षा विभाग ने किसे दी है यह हमें बताया जाएफिर शुल्क प्रतिपूर्ति भी कक्षा एक से की जाती है और छह वर्ष से 14 वर्ष तक के बच्चों को निश्शुल्क दाखिला देने का प्रावधान है तो फिर नर्सरी में मुफ्त में दाखिला निजी स्कूल कैसे लें। - मधुसूदन दीक्षित, वरिष्ठ उपाध्यक्ष इंडिपेंडेंट स्कूल फेडरेशन ऑफ इंडिया


नर्सरी क्लास में भी गरीब छात्रों को निश्शुल्क दाखिला देने के स्पष्ट आदेश दिए गए हैं। कई गरीब छात्रों ने इस सत्र में नर्सरी में दाखिला लेने के लिए आवेदन भी किया है। जो नियम है उसे हर हालत में लागू करवाया जाएगा।  -प्रवीण मणि त्रिपाठी, बीएसए

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