लखनऊ।
राजधानी के परिषदीय विद्यलायों में चार हजार दिव्यांग बच्चे...लेकिन
उन्हें पढ़ाने वाले शिक्षक सिर्फ 29। वो भी संविदा पर। इनमें भी प्रत्येक
विशेष शिक्षक को अलग-अलग स्कूलों में जाकर 20-20 दिव्यांग बच्चों को
शैक्षिक सपोर्ट देने की अनिवार्यता। जी हां, सर्व शिक्षा अभियान के तहत
परिषदीय विद्यालयों में विशिष्ट आवश्यकता वाले दिव्यांग बच्चों की पढ़ाई
कुछ इसी तरह से चल रही है। जबकि ऐसे बच्चों को रेगुलर शैक्षिक सपोर्ट देने
की जरूरत है। लेकिन ऐसा न करके दो-तीन दिन छोड़-छोड़ कर उनकी शिक्षा की गाड़ी
चलाई जा रही है।दरअसल, प्रदेश के परिषदीय विद्यालयों में सामान्य बच्चों
के साथ-साथ विशेष आवश्यकता वाले (मूक बधिर, दृष्टिबाधित व मानसिक मंद आदि)
2,62,879 बच्चों की शिक्षा की भी व्यवस्था की गई है। इनमें राजधानी के करीब
चार हजार दिव्यांग बच्चे भी शामिल हैं। जिन्हें पढ़ाने के लिए 29 इटीनरेंट
व रिसोर्स (विशेष) शिक्षक संविदा पर तैनात हैं। नि:शक्तजन अधिनियम-1995 के
अनुसार सभी दिव्यांग बच्चों को समान अवसर, संरक्षण एवं पूर्ण भागीदारी दी
जानी चाहिए। लेकिन परिषदीय विद्यालयों में सामान्य बच्चों की तरह पढ़ने
वाले दिव्यांग बच्चों को शिक्षा का पूरा अवसर नहीं मिल पा रहा।
- अलग-अलग स्कूल में जाकर शिक्षा देने की व्यवस्था
एक विशेष शिक्षक को यूनिट (मूक बधिर, दृष्टिहीन, मानसिक मंदित, लर्निंग
डिसेबिल्ड) के अनुसार कम से कम तीन और अधिकतम छह से आठ विद्यालयों में 20
बच्चों को शैक्षिक सपोर्ट देने की जिम्मेदारी है। ऐसे में जिन दिव्यांग
बच्चों को सोमवार को विशेष शिक्षक पढ़ाएगा, उनकी पढ़ाई का अगला नंबर बुधवार
से पहले नहीं आएगा। यह क्रम पूरे सप्ताह चलता है। इस व्यवस्था से दिव्यांग
बच्चों की पढ़ाई प्रभावित हो रही है।कुछ दिन की ट्रेनिंग में सामान्य
शिक्षक कैसे पढ़ाएंशिक्षा का अधिकार अधिनियम के अंतर्गत सभी बच्चों को एक
समान शिक्षा की व्यवस्था का प्रावधान किया गया है। ऐसे में परिषदीय
विद्यालयों में दिव्यांग बच्चों को भी सामान्य बच्चों के साथ शिक्षा देने
की व्यवस्था है। लेकिन सामान्य शिक्षक इन दिव्यांग बच्चों को शैक्षिक
सपोर्ट देने में सक्षम नहीं होते। बावजूद इसके शासन ने ऐसे बच्चों की
रेगुलर शिक्षा की पर्याप्त व्यवस्था नहीं की। राज्य परियोजना कार्यालय का
दावा है कि विशेष शिक्षकों के साथ ही सामान्य शिक्षकों को भी वर्ष में एक
बार कुछ दिन ट्रेनिंग दी जाती है।
भारतीय
पुनर्वास परिषद के नियमों के अनुसार एक विशेष शिक्षक को पांच दिव्यांग
बच्चों की शिक्षा की जिम्मेदारी दी जानी चाहिए। लेकिन राज्य परियोजना
निदेशालय ने अपने हिसाब से एक शिक्षक को 20 बच्चों को शैक्षिक सपोर्ट देने
की जिम्मेदारी दे रखी है। ऐसे बच्चों को अतिरिक्त सपोर्ट की जरूरत होती है।
लेकिन एक भी रेगुलर शिक्षक ऐसे बच्चों के लिए नहीं है। जिम्मेदार भी
सिर्फऔपचारिकता निभा रहे हैं। शिक्षकों के नियमितीकरण के लिए हम आंदोलन कर
रहे हैं और जरूरत पड़ी तो सड़क पर उग्र प्रदर्शन भी करेंगे।लोकेश कुमार दूबे,
प्रदेश अध्यक्ष, विशेष शिक्षा-शिक्षक (इटीनरेंट व रिसोर्स टीचर) वेलफेयर
एसोसिएशन
प्रदेश में 2, 62,879 दिव्यांग
बच्चों को शिक्षित करने केलिए 2,432 इटीनरेंट व रिसोर्स शिक्षक हैं।
इनकेअलावा हम सामान्य शिक्षकों को भी वर्ष में एक बार ट्रेनिंग देते हैं
ताकि वे ऐसे बच्चों को पढ़ा सकें।
-कमलेश प्रियदर्शी, योजना प्रभारी, राज्य
परियोजना निदेशालय
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