परिषदीय स्कूल का नाम सुनते ही दिमाग में टूटा-फूटा भवन, जमीन पर बैठे बच्चे और अटक-अटक कर हंिदूी की किताब पढ़ने की तस्वीर सामने आती है। सालों से लाखों खर्च कर चल रहे सरकारी भी इस तस्वीर को बदलने में कामयाब नहीं हो सके हैं, लेकिन इस अंधेरी हकीकत में ताजनगरी का एक स्कूल उम्मीद की नई रोशनी दिखा रहा है। कहने को यह भी परिषदीय स्कूल है, लेकिन बच्चों के पढ़ाई के स्तर से लेकर व्यवस्थाएं तक निजी स्कूलों से कहीं कमतर नहीं दिखतीं। यह सब मुमकिन हुआ है केवल शिक्षकों के समर्पण और प्रतिबद्धता से।
थाना एमएम गेट के बराबर एक छोटी सी गली में प्राथमिक और जूनियर विद्यालय चलते हैं। विद्यालय भवन को बाहर से देखने पर लगता है कि यहां भी अन्य सरकारी विद्यालयों की तरह होगा। मगर अंदर जाते ही लगा कि ये स्कूल कुछ अलग है। जगह कम थी, लेकिन अधिकांश बच्चे बैंच पर बैठे थे। जिनको बैंच नहीं मिली वो जमीन पर थे। सबकी साफ यूनीफार्म और गले में प्राइवेट स्कूल की तरह आइकार्ड लटका था। 1छात्र संसद भी गठित: विद्यालय के सभी शिक्षकों का है कि उनके यहां के बच्चे निजी स्कूलों के बच्चों से किसी भी स्तर पर कम न हो। इसके लिए स्कूल में छात्र संसद भी गठित की जाती है। कक्षा आठ की सुनैना छात्र संसद की प्रधानमंत्री और पदमा शिक्षा मंत्री है। सबको अपने दायित्व का निर्वहन करना होता है।
सामान्य ज्ञान भी मजबूत, सबने दिए फटाफट जवाब: स्कूल की दीवारों पर कई वैज्ञानिकों के फोटो लगे हुए हैं। जब छात्रों से उन ह4िस्तयों के बारे में पूछा तो फटाफट उनके बारे में बता दिया। प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री और राष्ट्रपति के नाम सबको पता थे। कुछ बच्चों ने तो अमेरिका के नए राष्ट्रपति के बारे में भी बताया। 1माता-पिता से करवाते हैं सम्मानित: शिक्षक शिवकुमार शर्मा ने बताया कि हर बच्चों पर विशेष ध्यान दिया जाता है। स्कूल में बच्चों ने क्या सीखा इसके लिए हर महीने होने वाली अभिभावक बैठक में बच्चों के अभिभावकों से बुलाया जाता है। बच्चे उनके सामने किताब पढ़ते हैं और सवालों के जवाब देते हैं। बिना रुके किताब पढ़ने और सही जवाब देने वाले बच्चों को उनके अभिभावकों से ही सम्मानित किया जाता है। जो बच्चे बेहतर नहीं कर पाते उन्हें अगली बार दोबारा मौका दिया जाता है।
चार दिन नहीं आए तो शिक्षक घर पर: विद्यालय में लगातार बिना बताए चार दिन छुट्टी करने वाले छात्रों के घर पर शिक्षक जाते हैं। पिछले दिनों तीन छात्रओं ने स्कूल छोड़ दिया था, ऐसे में शिक्षक घर पहुंचे और अभिभावकों को समझाया। तब वो स्कूल आईं।
सबको स्वेटर और नए जूते: शिक्षकों ने बताया कि सभी लोग आपसी सहयोग और कुछ संस्थाओं के मदद से बच्चों की जरूरतों को पूरा करते है। सभी बच्चों को नए स्वेटर और नए जूते दिए गए हैं। शिक्षकों की तरह बच्चे भी मन लगाकर पढ़ते हैं। उन्हें अपनी किताब-कॉपियों से भी प्यार है। इसके लिए सब शिक्षक के साथ मिलकर स्कूल में किताबों पर जिल्द चढ़ाते हैं। 1आठवीं के बाद सबका एडमिशन: जूनियर विद्यालय की प्रधानाध्यापिका ने बताया कि उनके यहां से आठवीं पास करने वाली छात्रएं घर नहीं बैठतीं। पिछले साल की सभी छात्रओं ने पास के कॉलेज में कक्षा नौ में एडमिशन लिया है।
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